अभय बदहवास सा भागा जा रहा था। जैसे कोई अनहोनी होने से रोकनी थी उसे। वो दौड़ता हुआ विश्वविद्यालय के कुछ दूरी पर बनी उस बिल्डिंग के पास पहुँचा। पर उसके करने लायक अब कुछ नहीं था। बिल्डिंग जल के ध्वस्त हो चुकी थी और उसके साथ ही उन दरिन्दों के ख़िलाफ़ सारे सबूत भी।
वो सड़क पर ही घुटनों के बल बैठ गया। उसके महीनों की मेहनत सब एक झटके में खत्म हो गयी थी। तभी उसे अचानक कुछ याद आया और वो लगभग उड़ता हुआ भंगार बन चुकी बिल्डिंग के पास पहुँचा। मलबे को इधर उधर फेकने लगा।
“नहीं नहीं नहीं।।।।
अब और नहीं।
नहीं मानसी तुम नहीं जा सकती ऐसे।
पहले मेरा परिवार और अब तुम नहीं।”
मानसी की क्षत विक्षत लाश पड़ी हुई थी अभय के सामने।
कुछ भी तो नहीं कर पाया था वो। जो तिरंगा बन के पूरी दिल्ली का संरक्षक बना घूमता है आज वो कुछ भी नहीं कर पाया था अपनी सबसे अज़ीज़ इंसान को बचाने के लिए।
ये सब उस पहेली के साथ शुरू हुआ था जो तिरंगा के लिए छोड़ी गई थी लाल किले के गेट के पास। कोई था जो तिरंगा की असलियत जानता था। जो न सिर्फ ये जानता था कि अभय ही तिरंगा है बल्कि वो उसके पूरे वजूद को खत्म करने की आकांक्षा भी रखता था। उस पहेली के साथ एक धमकी भरा पत्र संलग्न था। आगे तिरंगा न बनने की धमकी। अन्यथा ऐसे ही उसके नए परिवार को भी खत्म कर दिया जाएगा।
ब्रह्मांड रक्षक हैड्क्वाटर्स।
तिरंगा: इस सिचुएशन में क्या करूँ ध्रुव?
ध्रुव: क्या तुम चाहते हो इस जगह ब्रह्मांड रक्षक हस्तक्षेप करें?
तिरंगा: नहीं बस यहाँ आने का कारण सिर्फ ये बताना था कि अब परमाणु और शक्ति को और भी ज्यादा सजग रहना होगा। क्योंकि अगले कई दिनों तक मैं सक्रिय नहीं हो पाऊंगा। या हो सकता अब तिरंगा दिल्ली की सड़कों पर नज़र ही न आये।
ध्रुव: तिरंगा सिर्फ एक ही बात कहूंगा कि तुम्हारे बारे में सिर्फ एक इंसान जानता है और उसने तुम्हारे परिवार को खत्म करने की धमकी दी है। मेरा परिवार तो हमेशा निशाने पर रहता है। अभी अलकेमिस्ट वाला केस सबसे बड़ा उदाहरण है। तो क्या हर सुपरहीरो केवल इस डर से क्राइम फाइटिंग छोड़ दे कि उसके परिवार के ऊपर ख़तरा है? फिर बाकी लोगों के परिवारों का क्या होगा?
तिरंगा: मैं समझ गया ध्रुव। थैंक्स। अब मैं शांत दिमाग से कुछ सोच पाऊंगा।
तिरंगा वापस अभय के रूप में कहीं निकल गया। वो एक ऐसी जगह जा रहा था जहाँ वो वापस कभी भी नहीं आना चाहता था।
X-Squad Headquarters
कर्नल एक्स-रे: आओ अभय उर्फ भारत। या यूं कहूं कि आओ तिरंगा। ये सालों बाद कैसे याद किया X-squad को?
अभय: मुझे पता था एक्स-रे के दुनिया में मेरी असलियत के बारे में कोई जान सकता है तो वो है सिर्फ ये संगठन। और मेरी सारी याददाश्त आने के बाद मुझे सब कुछ याद आ चुका है। एजेंट देशभक्त तो खत्म हो चुका था पर तुमने सालों अपने अंडरकवर एजेंट्स लगा रखे थे मुझपर नज़र रखने के लिए। पर तुम्हें इतनी नीच हरकत करने की ज़रूरत क्यों पड़ी। तूने मानसी को मार डाला कमीने।
अभय ने एक्स-रे की गर्दन दबोच ली थी। उसने किसीे तरह अपनी गर्दन छुड़ाई।
एक्स रे: होश में आओ अभय। तुम्हारे बारे में हमें सालों से पता था। अगर कुछ करना रहता तो हम पहले ही कर चुके होते। पर हम किसी की व्यक्तिगत ज़िन्दगी में हस्तक्षेप नहीं करते। हमारा काम बस देश के दुश्मनों को ख़त्म करना है।
अभय: तो किसने किया है ये काम? अभय आज सब कुछ भूल के उस दरिंदे को ये एहसास दिलाएगा के दरिंदगी क्या होती है।
एक्स रे: मैंने कहा ना हमें किसी की व्यक्तिगत ज़िन्दगी से कोई लेना देना नहीं। पर अगर तुम कह रहे हो तो हम पता लगाने की कोशिश करते हैं। और तब तक तुम चाहो तो वापस X Squad में शामिल हो सकते हो।
अभय: नहीं इस घिनौने संगठन से मैं हमेशा के लिए नाता तोड़ चुका हूँ। याद रखना एक्स रे अगर किसी भी तरह मेरे जीवन में जो हो रहा है उसमें तुम्हारा हाथ हुआ तो इस संगठन को जड़ सहित उखाड़ फेंकेगा अभय।
कहकर अभय निकल गया।
एक्स रे: उफ्फ बला गयी। अब तुम बाहर आ सकते हो अजनबी।
एक मास्क लगाए अजनबी बाहर आता है।
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स्थान- दिल्ली।
एक बूढ़ा बड़ी दाढ़ी वाला हट्टा कट्टा इंसान करोल बाग के पास एक उजाड़ हो चुके खंडहर की तरफ बढ़ रहा था। वो खुद में बड़बड़ा रहा था, “मेरी लैब, मेरा सब कुछ तो जल कर खाक हो गया। और अभी मैं तिरंगा भी नहीं बन सकता। सबसे पहले मुझे शिखा और आँटी को सुरक्षित करना होगा तब मैं शांत दिमाग से कुछ सोच पाऊंगा। मैं ब्रह्मांड रक्षकों को बोल सकता था इनको सुरक्षा प्रदान करने लिए पर उससे मेरी सीक्रेट आइडेंटिटी को खतरा था। सारी चीज़ें मुझे ही करनी होगी। और इसलिए मैंने इस जगह को ढूंढा है। यहाँ कोई भी आता जाता नहीं है इसलिए इस जगह को बैकअप के लिए रखा था मैंने।” वो बूढ़ा अभय ही था।
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अभय खंडहर के अंदर पहुँचता है। बहुत से चमगादड़ उड़ते हुए बाहर निकले। अभय टोर्च की सहायता से बढ़ते जा रहा था। अचानक उसके बढ़ते कदम ठिठक गए। उसने बायें रखी शिवाजी की मूर्ति घुमाई और एक बेआवाज़ तरीके से एक तहखाने का दरवाजा खुला। अभय उसमे उतरता चला गया।
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तहखाना एक पूरी आधुनिक लैब लग रहा था। और पास में एक शीशे के कमरे में तिरंगा की ड्रेस, बेल्ट और ढाल रखे थे। और उसके पास रखा था न्याय स्तम्भ।
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“मुझे कुछ तैयारियां करनी होंगी। मैं तिरंगा बन नहीं सकता तो क्या हुआ वो देशभक्ति का जज़्बा सिर्फ मेरी यूनिफार्म से नहीं है।” कहकर अभय ने न्याय स्तम्भ को एक साधारण बूढ़े की लाठी का स्वरूप दिया।
वो उसी बूढ़े के रूप में अपने घर पहुँचा। दरवाजा खटखटाने पर शिखा ने दरवाजा खोला।
शिखा: जी कहिये अंकल क्या चाहिए?
अभय: बेटा बहुत प्यास लगी है थोड़ा पानी मिल सकता है?
शिखा: जी अंदर आइये।
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दरवाजा बंद कर के अंदर बैठते ही, “ये क्या है अभय भैया? क्या वैसा ही कुछ हो रहा है जैसा आपको डर था?” शिखा बोली। अभय ने कोड लैंग्वेज व्यवहार किया था जिससे शिखा समझ गई थी कि ये अभय है।
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अभय: पहले ये बताओ आँटी कहाँ है?
शिखा: माँ! इधर आओ।
अभय: आँटी मुझे आप दोनों को खुद के बारे में कुछ बताना है।
आँटी: यही के तुम तिरंगा हो?
अभय: (चौंकते हुए खड़ा हो गया) आपको कैसे पता?
आँटी: बेटा मैं भी तुम्हारी माँ हूँ। मुझे बहुत पहले से पता था। पर मेरे लिए ये महत्वपूर्ण है कि तुम मेरे बेटे हो। बाकी तुम जो भी हो मुझे उससे मतलब नहीं।
अभय ने आँटी को गले लगाते हुए कहा,”आँटी मैं बहुत ही मुश्किल में फंसा हुआ हूँ। पर उससे निकलने के लिए आप दोनों को सुरक्षित करना ज्यादा जरूरी है।”
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स्थान- करोल बाग का वही खंडहर।
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“यहाँ आप दोनों सुरक्षित हैं। ये जगह मेरा नया बेस ऑफ ऑपरेशन्स होगा। यहाँ दो महीने तक का सारा खाने पीने का इंतज़ाम कर दिया है।,” कहकर अभय दोनों को लेके अंदर तहखाने में पहुँच गया।
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शिखा: wow अभय भैया। आपने तो मिलिट्री तक से निपटने के साधन जुटा रखे हैं।
अभय: और मैं तुझसे थोड़ी मदद चाहता हूँ शिखा। तुझे बस यहाँ से इस बेस को कंट्रोल और ऑपरेट करना है। और समय समय पर मेरी मदद भी करनी है वो भी यहीं से। और चाहे कोई भी सिचुएशन आये यहाँ से तुमलोगों को नहीं निकलना है। वादा करो मुझसे।
शिखा: वादा करती हूँ भैया।
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अगले 4-5 दिन अभय पूरे बेस का कंट्रोल सिस्टम सेट करता रहा और कुछ ज़रूरी गैजेट्स और न्याय स्तम्भ ले लिया। अपनी तिरंगा यूनिफॉर्म और ढाल को कुछ देर गौर से देखा और उन्हें पहन कर तिरंगा निकल पड़ा अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े केस को सुलझाने। शिखा और उसकी माँ को सुरक्षित करने के बाद अब वो आराम से तिरंगा बन सकता था।
Written By- Pradip Burnwal
Kamaal ka lekhan hai apka isme koi shak nahi 👍
Suspense accha banaya hu hai aur kahani ki shuruaat hi aise hoti hai ki readers ka interested badhata raheta hai aur use yahi iccha hoti hai ki ise padhte hi jaaye yahi ek acche writer ki pahechan hoti hai ❤️
Agla part padhne ki utsukata aur badh gayi hai ab. 🙏🏽
Bahot badhiya.😍