Shopping Cart

An Old Debt To Settle Part-2

तिरंगा लगभग दस दिनों से दिल्ली की सड़कों पर नज़र नहीं आया था। परमाणु और शक्ति अपने कामों को बखूबी अंजाम दे रहे थे पर रात की कालिमा चढ़ते ही तिरंगा  जो ग्राउंड लेवल पर अपराध का खात्मा करता था उसकी बहुत ज्यादा कमी खल रही थी। और इस बात ने अपराधियों के हौसलों को दोगुना कर रखा था।
.
चंडीगढ़ के रास्ते दिल्ली आने वाली सड़क पर अभी चहल पहल कम थी। एक नव दंपत्ति मनाली से घूम कर आ रहे थे । अचानक सड़क पर बड़े बड़े पत्थरों को गिरा देख उनको रुकना पड़ा। कार के रुकते ही चारों तरफ से गुंडों ने घेर लिया।

गनपॉइंट पर कार का दरवाजा खुलवा कर उनका बॉस बोला, ”क्या समझ रखे थे? सरजू दादा के इलाके से बिना टैक्स दिए निकल जाओगे?”

पति: जो लेना है ले लो भाई पर हमें जाने दो।

सरजू दादा: वो तो हम लेंगे ही। हाहाहाहा। छीन लो रे सब कुछ गुर्गों। और तू गाड़ी की चाभी इधर दे चिकने।

सरजू दादा कार की चाभी छीन लेता है।

एक गुंडा: सरजू दादा ये लौंडिया की अंगूठी नहीं निकल रही है।

सरजू दादा: खून खराबा तो मैं चाहता नहीं था पर अब कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। काट दे उंगली ससुरी का।

अचानक पति ने गुंडो को धक्का दिया। “भाग अवनि भाग”, वो पत्नी का हाथ पकड़ कर भागा।
और पीछे से गुंडों की बंदूकें गरज उठीं। पर इससे पहले की उनको कोई भी गोली छू पाती हवा में सरसराती आयी एक ढाल जिसको देख के गुंडों के जेहन में भी सरसरी दौड़ गयी।
.
“जब  भी कोई गोली बनना चाहेगी किसी निर्दोष का काल,
तब तब वहाँ उसे बचाने को पहुंचेगी  ये तीन रंगी ढाल।”
.
और इसके साथ ही गुंडों की हँसी और धमकियाँ चीखों में बदलतीं चली गई।
सरजू दादा ने संभल के अपनी AK-56 राइफल का मुंह खोल दिया। पर गोलियाँ कब तिरंगा के लबादे को भी छू पायी हैं? तिरंगा ने करामाती नट की भाँति हवा में ही गोलियों को छकाते हुए सरजू दादा के थोबड़े पर ज़ोर से प्रहार किया जिससे उसकी नाक टूट गई।

सरजू दादा: आह! हमने तो सुना था तिरंगा ने क्राइम फाइटिंग छोड़ दी है। तुम कहाँ से आ गए?

तिरंगा: आंखों में वहशीपन लेकर निकलते हो जो तुम करने दंगा।
क्यों भूल जाते हो कि हर मोड़ पर खड़ा मिलेगा तुम्हे ये तिरंगा।
अब बता तुझे कैसे पता चला कि तिरंगा अब दिल्ली में सक्रिय नहीं है?

सरजू दादा: मुझे कुछ नहीं मालूम। हम सबको एक गुमनाम टिप मिली थी कि अब तिरंगा ने क्राइम फाइटिंग छोड़ दी है। इतने दिनों से तुम सक्रिय नहीं थे तो हमने भी मान लिया था।

तिरंगा: तिरंगा अब कहीं नहीं जाएगा। अब कोई कहीं जाएगा तो वो होगी सेंट्रल जेल जहाँ तुम जैसे अपराधी जाएंगे।

तिरंगा ने सबको बाँध कर पुलिस को कॉल कर दिया। और खुद वहाँ से निकल पड़ा।
वो रात अपराधियों के लिए कयामत की रात थी। हर गली-चौराहे, नुक्कड़ पर, बार में, क्लब में, रेव पार्टीज़ में तिरंगा पहुँच रहा था। अपराधियों को तोड़ कर बस एक ही सवाल कर रहा था, “किसने विश्विद्यालय के पास वाली बिल्डिंग को आग लगाई थी?”

तिरंगा पर पागलपन सवार था। मानसी की अकस्मात मौत ने उसके अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा दिया था।
गुरुग्राम के 7 बैरल ब्रू, सोई 7 पब, नई दिल्ली के ब्लूज़ क्लब, ब्लू बार, सूत्रा गैस्ट्रोपब और बहुत सारी रेव पार्टीज सब में आज हड़कंप मचा हुआ था। कोई भी तिरंगा के कहर से बचा नहीं था। अपराधियों में त्राहि त्राहि मची हुई थी। जॉन दादा, टुंडा भाई, पीटर दादा, असलम भाई, मंगल भाई सब पूरे गैंग सहित एक रात में ही पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे। पर इस बार कुछ अलग था। इस बार कोई भी सही सलामत नहीं था। इस बार हर एक के हाथ पैर और दांत टूटे हुए थे। अंडरवर्ल्ड और गैंगस्टर्स को कहीं से भी तिरंगा बख्शने के मूड में नहीं था।

रात भर की खोज के बाद एक सूत्र तिरंगा के हाथ लगा। कोई दहाका नाम का अरसोनिस्ट दिल्ली में कदम रख चुका था। और एक गुंडे की ज़ुबान पर उसी का नाम आया था। तिरंगा को क्लू मिल चुका था। पर रात की कालिमा को धीरे धीरे सुबह की किरणें धो रही थी। और रात भर की मेहनत के बाद तिरंगा को आराम के साथ साथ प्लानिंग की भी ज़रूरत थी। वो वापस अपने नए बेस पर बूढ़े के भेष में पहुँच गया।

सुबह के 11 बज चुके थे। अभय सो कर उठ चुका था और अब उसको थोड़ी तैयारी करनी थी क्योंकि इस नए रोग खलनायक के बारे में वो कुछ नहीं जानता था। शिखा चाय और नाश्ता ले आयी थी। अभय पूरे दिन व्यस्त रहा बीच बीच में शिखा को निर्देश देता रहता। अभय ने इस बेस में मौजूद कंट्रोल पैनल को पूरी दिल्ली और एनसीआर के सीसीटीवी कैमरों से कनेक्ट कर लिया था। आज उसकी कंप्यूटर साइंस की डिग्री काम आ रही थी। उसने अपनी ढाल निकाली। उसकी हैंडल के पास मौजूद स्विच को दबाया तो सारे नेज़े बाहर आ गए। उसने क्षतिग्रस्त नेज़ों को बदला और हर ब्लेड के साथ अलग अलग टाइप के कैप्सूल संलग्न किये। और हर तरह के कैप्सूल के लिए हैंडल के पास एक बटन भी संलग्न कर दिया। तिरंगा की ढाल अब मामूली नहीं थी। एक खतरनाक हथियार बन चुकी थी।

शाम हो चुकी थी। अँधेरे ने आकाश को घेर लिया था। तिरंगा बहुत सी चीज़ों से लैस ग्रेटर नोएडा की तरफ बढ़ रहा था। उस गुंडे से मिली जानकारी के अनुसार दहाका बुद्धा स्टेडियम में ही छुपा हुआ था। तिरंगा ये समझ रहा था कि डायरेक्ट अटैक करना सही रणनीति नहीं है। वो बुद्धा स्टेडियम के कुछ दूरी पर ही एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया और वहाँ से नाईट विज़न दूरबीन की सहायता से अंदर की स्थिति का जायज़ा लेने लगा। उसे सब कुछ स्पष्ट नज़र आ रहा था पर कुछ संदेहास्पद नहीं नज़र आया। पर कुछ देर वहाँ बैठे रहने पर स्टेडियम के उत्तर-पूर्व दिशा में मौजूद फ्लड लाइट्स टावर के नीचे कुछ लोग संदिग्ध अवस्था में दिखे। तिरंगा इतनी दूरी से उनके होठों को पढ़ भी नहीं पा रहा था। उसने नज़र रखना ज़ारी रखा। कुछ देर बाद वो लोग टावर से हट कर एक कार्यालय नुमा मकान की तरफ बढ़ने लगे। तिरंगा बहुत ध्यान से उनकी हरकतें देख रहा था। वो सारे लोग अंदर घुस गए और दो हट्टे कट्टे गुंडे बाहर आकर पहरा देने लगे। तिरंगा उन लोगों के घुसते समय दरवाजे पर मौजूद लॉक का पासकोड डालते समय उनके उंगलियों की गतिविधि ध्यान से देख रहा था। अब ऊपर चढ़े रहने का कोई मतलब नहीं था।
.
.
इसी वक्त एक अनजान जगह पर-

अजनबी: कर्नल मुझे संदेह हो रहा है तिरंगा कोई बड़ा गुल  खिलाने वाला है। उसपर पागलपन सवार है। कहीं वो हम तक ना पहुँच जाए।

एक्स रे: चिंता मत कीजिये। वो आप तक कभी नहीं पहुँच सकता। अरे जब इतने सालों तक उसे कोई अंदाज़ा नहीं हुआ तो आज क्या होगा।

अजनबी: पता नहीं। उसका ये रौद्र रूप आज तक नहीं दिखा। और उसने अपने परिवार को जाने कहाँ छुपा लिया है। हमारे हाथ का सबसे बड़ा ट्रम्प कार्ड उसका परिवार ही है कर्नल। उन्हें ढूंढो कहीं से भी। अपने संगठन को इस काम पर ही लगा दो।

एक्स रे: हाँ मैं अपने सबसे अच्छे एजेंट्स को इस काम पर लगाता हूँ। आप चिंता मत कीजिये।
.
.
.
स्थान- बुद्धा स्टेडियम ग्रेटर नोएडा।
समय- रात के 11 बज चुके थे।

तिरंगा पेड़ से नीचे उतर कर स्टेडियम की तरफ बढ़ गया। स्टेडियम की चारदीवारी पर रस्सी अटका कर  तिरंगा ऊपर चढ़ गया। वहाँ कंटीली तारें लगी थी जिनमें शर्तिया विद्युत दौड़ रहा था। तिरंगा ने अपना न्याय स्तम्भ निकाला और ज़मीन पर पटकते ही उसने उस क्षेत्र की विद्युत ऊर्जा को कुछ देर के लिए सोख लिया। इतना समय काफी था तिरंगा के उन कंटीली तारों को पार करने के लिए। स्टेडियम के अंदर जगह जगह पर गुंडे पहरा दे रहे थे। एक ज़रा सी आहट सबको सतर्क कर सकती थी। हर जगह गुंडे जोड़ों में थे। एक जोड़े पर तिरंगा ऊपर से कूदा और दोनों के मुँह पर हाथ रख कर घुटने दोनो के सिर पर रखते हुए गिरा दिया। दोनों वहीं ढेर हो गए। उसने दोनों को अंधेरे में छिपा दिया। और एक जोड़े पर उसने एक कैप्सूल का बटन दबाते हुए ढाल फेकी। एक नेज़े से नर्व गैस का कैप्सूल फूटा और वो दोनों भी बेहोश हो गए। उनके शरीरों को भी उसने छुपा दिया। तीसरे जोड़े के पीछे छुपते हुए पहुँचा और दोनों के सिरों को लड़ाकर उनको भी मैदान से बाहर कर दिया। तिरंगा बहुत खामोशी से सबका सफाया करता जा रहा था। अब बस उस मकान के बाहर वो आखिरी दो गुंडे बचे थे। तिरंगा ने फिर एक बटन दबाते हुए ढाल फेकी। उससे विद्युत चुम्बकीय पल्स निकला जिसने न सिर्फ थोड़ी देर के लिए दोनों गुंडों को अंधा कर दिया बल्कि वहाँ मौजूद सीसीटीवी कैमरे को भी ध्वस्त कर दिया। तिरंगा लगभग उड़ता हुआ वहाँ पहुँचा और दोनों गुंडों को एक एक घूंसे में ही बेहोश कर दिया। अब रास्ता साफ था। उसने पासकोड डालने की कोशिश की। दूसरी बार में ही वह दरवाजे के अंदर था।

इधर उस मकान के अंदर-

एक गुंडा कंट्रोल रूम में बैठा ट्रांसमीटर पर चिल्ला रहा था, “कक्का, अब्दुल, बीपड़े, टिंडे, गोगे, गुरु, कहाँ मर गए सब? उफ्फ किसी से संपर्क क्यों नहीं हो पा रहा है?”

धड़ाम की आवाज़ के साथ दरवाजा टूटा और गुंडे की आंखों में खौफ बैठ गया।

“जितने बिछा रखे थे तुमने बाहर मुस्टंडे ,
सारे बेहोश पड़े हैं होकर लंगड़े और टुंडे।”

तिरंगा ने सीधे उसकी गर्दन दबोची और पूछा, “बता दहाका कौन है और कहाँ है?”

गुंडा हँसने लगा और बोला, “आखिर तुमने अपनी मौत को खोज ही लिया। हाहाहाहा।”

तिरंगा अगर तुरंत ही वहाँ से न हट जाता तो उस कांच के बल्ब का शिकार हो जाता जो ज़मीन से टकराते ही फूटी और आग की लपटें निकल उठी। तिरंगा ने पीछे मुड़कर देखा और उसकी आँखें सिहर उठी। भयानक, भयावह, डरावनी, लंबी चौड़ी आग की लपटों से घिरी आकृति खड़ी थी।

दहाका: तो तुम मुझे ढूंढ रहे थे तिरंगा? आज तक एक बात नहीं समझ आयी के गीदड़ की जब मौत आती है तो वो शहर की तरफ ही क्यों भागता है।

तिरंगा ने इतनी डरावनी आवाज़ कभी नहीं सुनी थी। पर वो भी न्याय और इंसाफ का योद्धा ऐसे ही नहीं था। उसने भी भयंकर हूंकार भरी,
“मौत तो सत्य है, वो आनी है उसे रोक पाया है कौन,
तय ये होना है यहाँ शहर कौन है और गीदड़ कौन।”

तिरंगा ने छलांग लगाकर एक उड़ती किक दहाका के चेहरे पर मारी और तुरंत ही उसे उसके नाम का मतलब समझ आ गया। तिरंगा के बूटों के रबर सोल्स गर्मी से पिघलने लगे थे। दहाका ने तुरंत सफेद फॉस्फोरस से भरी काँच के बल्ब तिरंगा की तरफ फेके और तिरंगा ने भी अपने ढाल का एक बटन दबाया और उसके नेज़ों से बहुत से कैप्सूल्स निकले जिन्होंने उन बल्बों से टकराकर न सिर्फ उन्हें हवा में ही फोड़ दिया बल्कि उनसे पैदा होने वाली आग को भी वहीं ठंडा कर दिया। इस प्रतिक्रिया से दहाका सन्न रह गया।

तिरंगा ने हँसते हुए कहा, “मुझे हर इस तरह के हमले की उम्मीद थी दहाका और इसलिए मैं पूरी तैयारी के साथ आया हूँ। ये कैप्सूल्स दो भागों में बंटे हुए हैं। ऊपर के भाग में क्लीन एजेंट FS 49 C2 भर हुआ है जो आग को ठंडा कर रहा है और उसके साथ ही दूसरा भाग फूट  जाता है जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड शुष्क बर्फ के रूप में भरी हुई है जो आग को बुझा देती है। तुम बच नहीं सकते दहाका।”

“अभी तो खेल शुरू हुआ है बच्चे।”, कहकर दहाका ने हाईड्रोजन से भरे बुलबुले तिरंगा पर हाई प्रेशर से छोड़े और अपने हाथ मे लगे पैनल से छोटा सा धमाका किया और सारे बुलबुले एक एक कर के फटने लगे। तिरंगा ने तुरंत ही अपने आप को अपने लबादे में ढक लिया। उसके एस्बेस्टस से बने लबादे ने आग को अपने ऊपर ही झेल लिया। यह देखकर दहाका गुस्से से आग बबूला हो गया और पागलों की तरह दाएं हाथ में लगे पैनल से आग छोड़ने लगा। तिरंगा कुछ देर तो उछल कूद कर के बच गया।

दहाका: कितनी देर बचेगा तिरंगा? तेरी मौत तो आज मेरे हाथ ही लिखी है।

तिरंगा ने आखिर में अपना न्याय स्तंभ निकाला और ज़मीन में धम्म से पटका और सारी आग की लपटें उसमें समा गयीं। तिरंगा ने अपनी ढाल को दहाका पर दे मारा और उसके नेज़ों से निकले दसों अग्निशामक कैप्सूलों ने दहाका के जलते हुए शरीर से भी आग की लपटें सोख ली और उसे काला कोयला बना डाला।

“ये न्याय स्तम्भ है दहाका। ये विश्वास की ऊर्जा से चलता  है। न्याय और सत्य के इस दंड में किसी भी तरह की ऊर्जा को सोखने की शक्ति है और उसे पलट कर वार करने की भी। अब बता क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे।” कहकर तिरंगा ने उसपर लात घूंसों की बरसात कर दी।

दहाका: हाहाहाहा। तिरंगा मेरी तुझसे कोई दुश्मनी नहीं है। मैं तो बस एक कॉन्ट्रैक्ट किलर हूँ। अपने अतीत में झाँको तिरंगा। देखो तुमने क्या भूल की है। कौन सी ऐसी एक दरार छोड़ रखी है तुमने? क्या तुम्हें याद भी है तुम क्यों तिरंगा बने थे? याद करो सब कुछ क्योंकि आने वाले दिनों में तुम्हारा पूरा अस्तित्व खत्म होने वाला है।

यह कहकर दहाका बेहोश हो गया। तिरंगा सोच में पड़ गया। अगर दहाका होश में होता तो कुछ पूछ सकता था। पर अब उसे उसके होश में आने का इंतज़ार करना था। अचानक हवा में कुछ सरसराने की आवाज़ आयी औऱ तिरंगा एक पल के सौंवे हिस्से में ही अपनी जगह छोड़ चुका था। इसके साथ ही बहुत सारे तीर दहाका के शरीर में धंस चुके थे। उसने मौत की आखिरी हिचकी ली और शांत हो गया।

Written By- Pradip Burnwal

One comment

  1. dhruvparekh60

    Part 2………..
    Bahot hi dhansu full to action aur bhi jyada suspence se bharpur.🤯
    Dialogue bahot kamaal ke likhe hai, isse pata chalta hai aapne tiranga ko bahot acchi tarah padha hai, balki apne style se aur bhi bahetar banaya hai. 👍
    Suspense bahot aacha create kiya hai.
    Mera favourite part “wo teen rangi dhaal” wala tiranga style dialogue aur action scenes ki likhawat. ❤️
    Jitni taarif ki jaye kam hai. 🙏🏽

Comments are closed.

Free India Shipping

On all orders above ₹499

Quality Assurance

Wide range of Comics

100% Secure Checkout

Credit/Debit Card, Wallet

Home
Account
Cart
Store