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An Old Debt To Settle Part-3

(महत्वपूर्ण सूचना – कथा के इस अंक में कुछ अंक तिरंगा की जिद्दी नामक कॉमिक से लिए गए ताकि कथा की मौलिकता और दृश्यों में जुड़ाव बना रहे। )

तिरंगा तुरंत संभला और तीरों के आने की दिशा में नज़रें घुमाई पर तब तक वह हत्यारा भाग चुका था। तिरंगा उस अंधेरे सुनसान स्टेडियम में बिल्कुल निरुत्तर खड़ा था। आश्चर्यचकित, ठगा सा बिल्कुल। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। दहाका का मृत शरीर उसकी आँखों के सामने निश्चल पड़ा हुआ था। दहाका अपने साथ कई सारे सवालों के जवाब भी ले गया था। इसी उधेड़बुन में तिरंगा आसपास के क्षेत्र को ध्यान से देखने लगा कि शायद कोई सुराग मिल जाये पर उसे ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। दहाका से हुई लड़ाई ने सब कुछ नष्ट कर दिया था। उसके आगे बढ़ने के रास्ते बंद हो रहे थे। तभी उसने ध्यान से दहाका की लाश को देखा और उसकी आंखें चमक उठी। तिरंगा समझ चुका था ये तीर चलाने वाले हाथ किसके हैं। तिरंगा के लिए वहाँ अब कुछ नहीं बचा था। वह अपने बेस की तरफ चल पड़ा। उसके दिमाग में 4 साल पहले के दृश्य घूमने लगे।

चार साल पहले- के.एम. कॉलेज, कंप्यूटर साइंस लैब

अभय अपनी कम्प्यूटर क्लास में प्रोग्रामिंग में व्यस्त था। उसे हमेशा से कंप्यूटर साइंस के प्रति बहुत आकर्षण था। इसलिए कॉलेज में उसने कंप्यूटर साइंस विषय ही लिया। वह प्रोग्रामिंग में बहुत दक्ष था पर उसके पिता हवलदार रामनाथ देशपांडे चाहते थे कि वो पुलिस में भर्ती हो और कमिश्नर के पद तक पहुँचे। अभय भी चाहता था कि अपने पिता का सपना पूरा करे पर उसका प्रेम कंप्यूटर की तरफ भी बहुत ज्यादा था। वह क्लास में बैठा काम कर ही रहा था कि अचानक 5-6 गुंडों ने धड़ाधड़ क्लास में प्रवेश किया और सबको धमकी देकर बाहर जाने को कहा। क्लास के सारे विद्यार्थी बिना कोई प्रश्न किये चुपचाप बाहर निकलने लगे। अभय भी निकलने को हुआ तो उसे रोक दिया गया।

गुंडा 1: तू किधर चला चिकने? तेरे लिए ही तो ये सारा प्रोग्राम सेट किया गया। प्रोग्रामिंग का बहुत शौक है ना तुझे? आज तेरी सारी प्रोग्रामिंग निकालते हैं हमलोग। राजा भैया क्लासरूम खाली है आ जाइये।

तभी क्लासरूम में राजा ने प्रवेश किया। राजा वहाँ के ही सांसद का बेटा था और अभय का सहपाठी भी। कॉलेज में उसकी गुंडागिरी और नेतागिरी दोनों चलती थी। कोई उससे टकराना नहीं चाहता था। वह कॉलेज भी उसके पिता के डोनेशन से चलता था इसलिए वहाँ का प्रिंसिपल भी अपना मुँह बंद रखता था। हर बार कॉलेज का प्रेसिडेंशियल इलेक्शन राजा ही निर्विरोध जीतते आ रहा था। पर इस बार उसके खिलाफ अभय खड़ा हुआ था। और यह बात उसके अहंकार को चोट कर गयी थी।

क्लास में घुसते ही राजा ने अभय की छाती पर एक लात जमाई। अभय उछल कर औंधे मुँह नीचे गिर पड़ा। उसका चश्मा छिटक कर टूट गया था।

राजा: बहुत उड़ रहा था कल मानसी और शिखा के सामने। मुझे थप्पड़ मारा था ना तूने। अब उठ और थप्पड़ मार के दिखा दोबारा। ले मार। ये ले ये कर दिया मैंने अपना गाल आगे। चल मार थप्पड़। उठ बे अब घूर क्या रहा है ऐसे?

अभय चुपचाप उठा और अपने कपड़े झाड़ कर बिना कुछ बोले बाहर जाने लगा। राजा ने उसका कॉलर पकड़ कर खींच लिया।

अभय: देखो राजा मैं ये फालतू के झगड़े में नहीं पड़ना चाहता। कल तुम्हारी गलती थी। तुमने जबरदस्ती मानसी का हाथ पकड़ लिया था। वह हरकत थप्पड़ खाने लायक ही थी। कल मैंने तुम्हें मारा और आज तुमने मुझे। हिसाब बराबर हो गया। अब जाने दो मुझे। घर के लिए देर हो रही है।

कहकर अभय ने झटके से अपना कॉलर राजा के हाथ से छुड़ाया। वह जैसे बाहर निकलने को हुआ तो उसके पीछे से राजा ने फिर प्रहार किया।

“मारो $#@$#@ को। राजा को चैलेंज किया है इसने। यह दो कौड़ी का हवलदार का बेटा राजा को चैलेंज कर रहा है। औकात भूल गया है ये अपनी। औकात बतानी ज़रूरी है इसे। औकात बतानी बहुत ज़रूरी है। मार कर हड्डी पसली तोड़ दो %$#@&* की।”, राजा चिल्लाया।

इसके साथ ही सारे गुंडे अभय पर पिल पड़े। लात, घूंसों, डंडों, चेन, हॉकी स्टिक और लोहे के सरियों से उसे मारा जाने लगा। अभय दर्द से चीख रहा था पर उसकी चीखों और कराहों का गुंडों पर उल्टा असर हो रहा था। उनके हाथ पैर और तेज़ी से चल रहे थे। अभय नीचे गिरा हुआ ज़मीन सूंघ रहा था और मार खाये जा रहा था।

तभी एक आदमी चिल्लाते हुए आया, “अरे भागो रे। शहर में आग लग गयी है। चारों तरफ दंगे भड़क उठे हैं। भागो।”

लगभग तुरंत ही राजा आपाधापी में अपने गुंडों को लेकर अभय को उसी हाल में अधमरा छोड़ कर निकल गया। अभय ज़मीन पर ही गिरा हुआ था। उसके मुँह से खून निकल रहा था। उसके पूरे शरीर में चोटें आई थीं। उसकी सफेद शर्ट धूल से भर गई थी। फिर भी वह किसी तरह हिम्मत कर के उठा और हल्का लंगड़ाते हुये बाहर की तरफ निकल पड़ा।

स्थान- भारतनगर

चारों तरफ भीषण आगजनी हो रही थी। चारों तरफ हथियारबंद लोग एक दूसरे को काटने और जलाने में लगे हुए थे। शहर आज अपना वीभत्स रूप देख रहा था। हर तरफ जलती हुई गाड़ियाँ, भागते चिल्लाते लोग, टूटी-जली दुकानें और शहर में दंगा करते दंगाई ही दिखाई पड़ रहे थे। हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच ऐसा हिंसात्मक मंज़र कभी नहीं देखा गया था।

अभय पागल हो गया था ये सब देख के। “क्या हो गया मेंरे देश को? ये मेरा देश है? ये है सोने की चिड़िया? क्या सिर्फ इसलिए स्वतंत्रता सेनानियों ने इतनी कुर्बानियाँ दी थी? क्या इसलिए गांधीजी ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। ताकि जिन लोगों को आज़ादी दिलाये वो लोग आपस में ही कट मरें? धर्म के नाम पर कब तक खून बहता रहेगा? कब तक लाशें बिछती रहेंगी?”, अभय चिल्लाये जा रहा था और लड़ते कटते लोगों को एक दूसरे से अलग किये जा रहा था।

पर एक साधारण नौजवान की बात भला कोई क्यों सुनता। भीषण आगजनी के बीच अभय को एक नन्हा सा बच्चा रोता बिलखता हुआ दिखा। उसकी आँखें चारों तरफ देख रही थी जैसे वो किसी को ढूंढ रहा हो। उसकी आँखों से लगातार आँसू गिरे जा रहे थे।

अभय दौड़ते हुए उसके पास आया। “तुम यहाँ सड़क पर कैसे आये बेटा? तुम्हारा घर कहाँ है? तुम्हारी माँ कहाँ है?”, अभय ने उस मासूम से पूछा। बच्चे ने एक तरफ इशारा कर के कहा,“मेरा घर वो जल रहा है। कुछ लोग तलवारें लेके घर में घुस गए थे। उन्होंने पापा को मार दिया और घर भी जला दिया। फिर माँ को पता नहीं कहाँ ले गए। तब से माँ को ढूंढ रहा हूँ। वो कहाँ गयी अंकल? वो आयेगी न? मुझे बहुत भूख लगी है। माँ पता नहीं कहाँ है?” बच्चा लगातार रो रहा था।

अभय सन्न रह गया। इस हालत में भी लोगों के वहशीपन में कमी नहीं थी।

अभय: तुम रोओ मत बेटा। तुम्हारी माँ आ जायेगी। चलो पहले तुम्हारी भूख का इंतज़ाम करता हूँ। फिर तुमको किसी सुरक्षित जगह पर छोड़ दूंगा। तुम वहाँ से कहीं मत जाना। प्रॉमिस करो।

बच्चा: प्रोमिस अंकल।

अभय ने आसपास नज़रें दौड़ाई। एक टूटा हुआ दुकान दिखा। वहाँ कोई नहीं था और अभय के पास कोई चारा भी नहीं था। उसने वहाँ से कुछ चिप्स और चॉकलेट्स बच्चे को दिया। फिर वह उसे लेकर पास के ही एक अनाथाश्रम पहुँचा। वहाँ दंगाई नहीं पहुँचे थे। अनाथाश्रम एक ऐसी जगह थी जहाँ कोई हिन्दू नहीं था और ना कोई मुस्लिम। सब हालात के शिकार थे और किस्मत के सताये हुए थे। उसने बच्चे को वहाँ के वार्डन को सौंपा और पुलिस स्टेशन की तरफ ये पता करने भागा कि आखिर पुलिस क्यों नहीं रोक रही दंगे को?

भारतनगर पुलिस स्टेशन

आमतौर पर जहाँ चोर-लुटेरों, बलात्कारियों, हत्यारों, पॉकेटमारों, आतंकवदियों, दंगाईयों की चीखें गूंजा करती हैं, वहाँ आज एक देशभक्त की चीख़ों से पूरा पुलिस स्टेशन गूंज रहा था। एक देशभक्त पुलिसवाला जिसकी ईमानदारी की लोग कसमें खाते थे।

हवलदार रामनाथ देशपांडे चीखे जा रहा था। उसके ऊपर ज़ुल्म पर ज़ुल्म हो रहे थे। उसकी चीख़ों से जैसे लॉकअप की दीवारें ढहने को बेताब थीं। उसने उन रिश्वत के पैसों को लेने से इनकार कर दिया था जो दंगाइयों को न रोकने के लिए मिले थे। एस.एच.ओ. पाल कुमार बाकी पुलिसवालों के साथ रामनाथ को टॉर्चर किये जा रहा था।

पालकुमार: हरामजादे! हमसे गद्दारी। तुझे ही एक चर्बी चढ़ी है ईमानदारी की। जब तुझे बोला गया है कि हब्शी को मत रोक। उसे छूट दी गयी है दंगा फैलाने की तो तुझे देशभक्ति के कीड़े ने काट लिया। याद रख तू एक टुच्चा सा हवलदार है बस और इससे ज्यादा तेरी औकात नहीं। ये मेरा पुलिस स्टेशन है और यहाँ मेरा राज चलता है।

रामनाथ देशपांडे: (कराहते हुए) तुझ जैसों के कारण ही हमारा देश भ्रष्टाचार की आग में जल रहा है। मैं हर एक की करतूत ऊपर बताऊंगा। तू बचेगा नहीं पालकुमार। तुझे और तेरे सारे साथियों को जेल की हवा खिलायेगा ये हवलदार रामनाथ।

लगभग उसी वक़्त अभय वहाँ पहुँचा। खिड़की से ही सारा माज़रा देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। वह वहीं खिड़की के पास से झांक कर सारा माज़रा देखने लगा।

पालकुमार: हाहाहाहा! क्या कहा तूने? हमें जेल की हवा खिलायेगा? कैसे खिलायेगा? इस पुलिस स्टेशन से निकलकर बाहर जा पायेगा तब ना? मारो इस हरामखोर को। आज इसकी कब्र यहीं बना देंगे।

कॉन्स्टेबल अहमद: पर सर् यहाँ इसको खत्म करने पर बहुत लफड़ा होगा। एक पुलिसवाले की हत्या वो भी पुलिस स्टेशन में? बहुत सवालों के जवाब देने पड़ेंगे हमें।

पालकुमार: तो तुम्हारे पास बेहतर सुझाव है ?

अहमद: सर् भारतनगर पहले से ही दंगों की आग में झुलस रहा है। इसके हाथ की उंगलियाँ और ज़ुबान काट कर इसे बीच में ही कहीं फेंक देते हैं। लोगों को लगेगा कि दंगाइयों ने ऐसा किया है। ये किसी को कुछ बताने लायक भी नहीं रहेगा। जिंदगी भर तिल तिल कर मरेगा और हमलोगों पर कोई सवाल भी नहीं उठा पायेगा।

पालकुमार: वाह अहमद वाह! क्या लाजवाब आईडिया दिया है। ऐसा ही करेंगे हमलोग, ऐसा ही करेंगे। हाहाहाहा! अहमद मैं तुम्हारी तरक़्क़ी की सिफ़ारिश कमिशनर से करूँगा। काट दो रे इस @#%!*#% रामनाथ की उंगलियाँ और ज़ुबान। इसकी सारी चर्बी यहीं उतार देते हैं।

उसने पुलिस स्टेशन के बाकी स्टाफ और दंगा फैलाने वाले गुण्डे हब्शी के साथ मिल कर रामनाथ की सारी उंगलियां और जीभ काट दी ताकि वो किसी को कुछ बताने लायक न रहे। ये सब देखकर अभय सन्न रह गया। वह वहाँ कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि फिर उसके बाकी परिवार की जान भी खतरे में पड़ जाती। वो वापस अपने घर की तरफ भागा। रास्ते में एक जगह दंगाइयों का गुट बच्चों को मारने जा रहा था। अभय पर पहले ही पागलपन सवार था। वह उनके बीच जा घुसा और उनसे सीधे भीड़ गया। दंगाई संख्या में ज्यादा थे। उन्होंने अभय को घेर लिया और मारने लगे। अभय कुछ देर तक टक्कर देता रहा पर वह अकेली जान बिना कोई हथियार के उन रौद्ररूपी भीड़ से क्या सकता। उन्होंने उसे उछाल कर दूर फेंक दिया। अभय जहाँ गिरा वहाँ उसे छत्रपति शिवाजी की टूटी मूर्ति दिखी।

“उफ्फ दंगाइयों ने महान शिवाजी की मूर्ति को भी नहीं छोड़ा।”, अभय गुस्से से चिल्लाया।

तभी उसकी नज़र मूर्ति के पास गिरी शिवाजी की ढाल पर पड़ी। उसने ढाल उठायी और वापस उन गुंडों की तरफ बढ़ा। उसने वहाँ भीड़ में मौजूद हर दंगाई को उस ढाल और अपने प्रशिक्षण और युद्ध कौशल की मदद से धराशायी कर दिया। उसने बच्चों को सुरक्षित किया और शिवाजी की ढाल लेकर अपने घर की तरफ भागा। अपने पिता की हालत उसके दिमाग में घूम रही थी।

वह पागलों की तरह भागा जा रहा था और बड़बड़ाये जा रहा था, ”बस बहुत हुआ। अब और नहीं। इस दंगे को पुलिस रोकेगी नहीं और आम आदमी खुद ही दंगों की आग में लिप्त हो गया है। इसे रोकने के लिए कुछ और चाहिए, कोई और चाहिए।”
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तिरंगा अचानक अतीत के पन्नों से बाहर निकला। वह अपने बेस पहुँच चुका था। बेस पहुँचते ही वह सो गया। और जब उसकी आँखें खुली तो सूरज सिर पर था और शिखा चाय लेकर खड़ी थी। अभय ने मुस्कुराते हुए शिखा के सिर पर हाथ फेरा। आज उसका खुद का परिवार नहीं था पर कोई तो था जिसे वो परिवार कह सके। एक लाडली बहन और एक माँ जैसे प्यार करने वाली देवी स्वरूप औरत।

अभय: वो लौट आया शिखा।

शिखा: कौन लौट आया भैया?

अभय: कफन लौट आया है। मैं जब दहाका को काबू में कर के कुछ उगलवाने जा रहा था तो सनसनाते हुए तीरों ने आकर  दहाका का जिस्म बेध दिया। वो तीर सामान्य तीरों से भिन्न थे। उन्हें देखते ही मैं पहचान गया कि ये कफन के द्वारा छोड़े गए तीर हैं। पर मुझे एक बात समझ नहीं आ रही है।

शिखा: कौन सी बात भैया?

अभय: कफ़न देशभक्तों और तिरंगा का बहुत बड़ा दुश्मन तो ज़रूर है पर उसने हमेशा अकेले ही काम किया है। इस बार वो किसी के साथ मिलकर काम कर रहा है। मुझे दहाका की बात याद आ गयी। वो कह रहा था कि मुझे अपने अतीत में झांक कर देखना चाहिए कि मैंने क्या भूल की है। कोई दरार छोड़ रखी है मैंने। कहीं कफ़न ही तो नहीं है वो दरार वो भूल जिसे मैं अनदेखा कर रहा हूँ। कफ़न बहुत बार मेरे सामने बहुत बड़ा चैलेंज बन कर सामने आया है। और वो मेरे सबसे बड़े दुश्मनों में से एक है भी। तुझे याद है शिखा मैं तिरंगा क्यों बना था।

शिखा: बहुत अच्छी तरह से भैया। उस दंगे को कौन भूल सकता है जिसने भारतनगर को जला कर राख कर दिया था। जो आज भी इस गौरवशाली देश के ऊपर एक बदनुमा दाग बन कर रह गया है। कौन भूल सकता है जब इंसान इंसान न रहा था बस हिन्दू और मुसलमान रहा था।

अभय: उस रोज़ जब पापा की हालत देख कर मैं घर आया था तो मेरा पूरा घर आग की लपटों में जलकर राख हो चुका था और साथ ही राख हो गईं थीं मेरी माँ और मेरी जान से प्यारी छोटी बहन गुड़िया। (अभय रुआंसा हो गया था।)

शिखा: बस करो भैया और कितना उस बात को याद करोगे। क्या मैं तुम्हारी छोटी बहन नहीं? क्या माँ आपकी माँ नहीं?

अभय: नहीं रे पगली। तुमलोग ही तो मेरी दुनिया हो। पर अब कफ़न ने काफी बाहर की दुनिया देख ली है। उसे सेंट्रल जेल फिर से भेजने का समय आ गया है। और उस बार उसके विरुद्ध मैं खुद भारत के रूप में केस लड़ूंगा और उसे फांसी के तख्ते पर चढ़ा कर दम लूंगा। शिखा इस बार दिल्ली में तुम मेरी आँखें बनोगी।

शिखा: वो कैसे?

अभय शिखा को एक बड़े हॉल में ले जाता है जो एक पूरी उच्च तकनीकी लैब रहती है। वहाँ एक बहुत बड़ा मॉनिटर रहता है जिससे दिल्ली की सारी ट्रैफिक लाइट्स संसक्त कर दी गयी थी। मॉनिटर में छोटे छोटे पिक्सेल्स लगे हुए थे जो अलग अलग कैमरों से जुड़ी हुई थी। उसके संचालन के लिए एक बहुत बड़ा कंट्रोल सिस्टम लगा हुआ था जिसमे बहुत से विभिन्न प्रकार के बटन्स थे। अभय शिखा को हर बटन का महत्व बता रहा था। उस कंट्रोल पैनल से बेस का सिक्योरिटी सिस्टम का प्रचालन भी होता था।

उस खंडहर नुमा इमारत के अंडरग्राउंड में तिरंगा ने पूरे सिक्योरिटी सिस्टम का बहुत ही शानदार ढांचा तैयार कर रखा था। धातुई कमरे और उनके ऊपर मोटी कंक्रीट का आवरण, मोटी लेड की चादरों से बने मोटे मोटे दरवाजे बाहरी हमलों से रक्षा करने में काफी सक्षम थे।

“ये पूरा बेस परमाणु और प्रोबोट की मदद से तैयार हो पाया है। इसे ऐसे ही किसी आपात स्थिति के लिए तैयार किया गया था।”, अभय शिखा को बता रहा था।

उस पूरे बेस के चारों तरफ प्रोक्सिमिटी सेंसर्स लगे हुए थे जो विद्युत चुंबकीय क्षेत्र के परिवर्तन के सिद्धांत पर तैयार किये गए थे। किसी भी बाहरी व्यक्ति या पशु-पक्षी के उस क्षेत्र के दायरे में आते ही विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र प्रभावित हो जाता था और बेस के अंदर अलार्म बज जाता था। और बाहर मौजूद स्टील्थ कैमरों की मदद से अंदर बैठा व्यक्ति बाहर की मौजूदा हालात को देख सकता था। एक मिनी आंतरिक राडार सिस्टम भी लगा हुआ था जो आसपास के क्षेत्र में गुज़रते हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर्स पर नज़र रखता था ड्रोन्स भी इसकी रेंज से बाहर नहीं जा सकते थे। इसके अलावा एक गुप्त रास्ता बेस से एक किलोमीटर की दूरी पर खुलता था जो आपात स्थिति में बाहर निकलने का ज़रिया था। अभय बारी बारी वो सारी चीज़ें शिखा को समझा रहा था। अचानक उसके दिमाग़ में कुछ कौंधा।
अभय: शिखा मुझे वो सुराग मिल गया। तुमने ही अभी बताया कि मैं उन दंगों की वजह से तिरंगा बना था। यही वो दरार है जो आज तक भर नहीं पाई। कफ़न अकेला काम नहीं कर रहा है। यह पहली बार होगा जब वह ख़ुद किसी के हाथ की कठपुतली बना हुआ है। वह दंगा किसी राजनैतिक साज़िश का हिस्सा था शिखा। तब मुझे कहीं कोई सबूत या गवाह या ऐसा कोई सुराग नहीं मिल पाया था जिससे असली गुनहगार तक पहुँचा जा सके। पर आज हाथ में एक शख्स  तो आया है। कफ़न। वो पहले अकेला था पर इस पूरी घटना से यही बात सामने आ रही है। अब कफ़न के ज़रिये ही मैं असली साज़िशकर्ता तक पहुँचूँगा। आज रात कफ़न की आज़ादी की आखिरी रात होगी शिखा। मुझे पता है वो कहाँ मिलेगा। पर वो मेरे सबसे पुराने और सबसे खतरनाक दुश्मनों में से एक है। और दहाका जैसे दुश्मन के ठीक उलट वो मुझे और मेरे तरीकों को बहुत अच्छी तरह से जानता है। और मुझे पूरा विश्वास है ये सारी समस्या उसी की खड़ी की हुई है। पर अब कफ़न के दिन लद गए।

शिखा: मुझे पूरा भरोसा है भैया कि आज वो बच नहीं सकता आपसे। बस अपना ध्यान रखना। देश के एक बहुत बड़े षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश अब तुम्हें ही करना है भैया।

सूरज ढल चुका था। अब दिल्ली के वातावरण में तिरंगा के उदय होने का समय हो चुका था। तिरंगे लबादे के साथ तीन रंगी ढाल और हाथों में दुनिया भर के लोगों के न्याय और विश्वास से चलने वाली ऊर्जा समेटे अशोक स्तंभ के तीनों शेरों को अपना रिसीवर बनाये हुए न्याय स्तम्भ लिए वो देश का बेटा निकल चुका था देश पर कलंक बन चुके कफ़न को मिटाने।

एक्स स्क्वाड हेडक्वार्टर्स-

कर्नल एक्स रे: सर् मुझे तिरंगा के नए अड्डे का पता चल गया है। उसने बहुत परेशान कर लिया हमें। जैसे हड्डी देखते ही कुत्ता दौड़ा आता है वैसे ही कफ़न नामक हड्डी फेकते ही तिरंगा अपने जाल में फंस गया। अब उसके परिवार को कब्ज़े में लेकर आखिरी पत्ता फेंकने की देरी है बस।

अजनबी: शाबाश कर्नल। तुम्हें अपनी टीम में शामिल करना ज़ाया नहीं गया। कफ़न को तिरंगा का ध्यान बंटाने के काम पर लगाओ और अपनी टीम भेज दो तिरंगा के परिवार को लेने।

एक्स रे: कफ़न जैसे हत्यारे को सिर्फ तिरंगा का ध्यान बंटाने के लिए क्यों भेज रहे सर्? वह तो तिरंगा को खत्म भी कर सकता है।

अजनबी: हाहाहाहा! कर्नल कर्नल कर्नल। चार साल में कफ़न ने कितनी कोशिशें की तिरंगा को खत्म करने की? आज तक वो सफल हुआ? तो अब तुम अपने दिमाग को आराम दो और ये काम मुझे करने दो। तिरंगा की कुंडली में दोष मैंने निकाल लिया है। उसकी काल कुंडली मैंने तैयार कर ली है। उसे मेरे हाथों मरना है। जैसे उसके पूरे परिवार को मैंने मारा था। हाहाहाहा।

एक्स रे: और कफ़न का क्या? वो पकड़ा गया तो?

अजनबी: उसका इंतज़ाम भी हो गया है। तुम चिंता मत करो। बस इंडिया गेट के पास वाले सीसीटीवी कैमरे पर ध्यान दो।

इंडिया गेट-
समय- रात के बारह बज चुके थे-

इंडिया गेट के पास एक काली स्कोर्पियो खड़ी थी। आसपास बहुत से सुरक्षाकर्मी बेहोश गिरे हुए थे। कुछ मर चुके थे तो कुछ अभी भी जीवित थे। कोई तीरों से बेध दिया गया था, कोई किसी बड़े झटके से पीला पड़ा हुआ था। किसी को सिर्फ लात घूंसों से ही बेहोशी की दुनिया में पहुँचा दिया गया था। जहाँ तक नज़र जाती थी वो क्षेत्र सिर्फ बेहोश पड़े जिस्मों से पटा पड़ा था। तभी नाइलोस्टील की रस्सी पर लहराते हुए तिरंगा आता है।

तिरंगा: उफ्फ इतनी दरिंदगी। इतने लोगों को सिर्फ इसलिए खत्म कर दिया गया क्योंकि ये बस अपनी ड्यूटी कर रहे थे। कफ़ssssssन।

कफ़न: हाहाहाहा। हाहाहाहा। (कफ़न बस गला फाड़ कर हंस रहा था।) क्या हुआ तिरंगा? इतना चीख क्यों रहे हो?

तिरंगा: ये क्या किया दरिंदे? तेरी दुश्मनी तो मुझसे थी। इनको क्यों मारा?

कफ़न: तुझे तो पता था मैं यहाँ मिलूंगा। फिर इतनी देर क्यों की ? अब इतनी देर में मैं बोर हो गया था। समय तो पास  करना था ही। तो इन गुर्गों का सहारा मिल गया मुझे। इनकी मौत तेरे सिर पर है तिरंगा। तुझे उन तीरों में क्लू मिल गया था कि मैं यहाँ मिलूंगा। इनकी हालत का ज़िम्मेदार सिर्फ तू है तिरंगा, सिर्फ तू। (कहते हुए कफ़न ने अपनी एरोगन निकाली और लगातार कई तीर झोंक मारे।)

तिरंगा ने हवा में कई कलाबाजियां खाई और तीरों को छकाते हुए कफ़न को एक किक जड़ दी। कफ़न उछल कर दूर जा गिरा।

कफ़न: हाहाहाहा! बचना तिरंगा ये तीर ज़हरबुझे हैं। तुझे छू भी गए तो तेरी जान पर बन आएगी।

कफ़न ने एरोगन से फिर से बहुत से तीर तिरंगा पर छोड़े।
तिरंगा ने ढाल आगे कर के उस जानलेवा वार को निष्क्रिय किया।

तिरंगा: मेरी जान तो इस देश की अमानत है, एक दिन इस देश के लिए ही जाएगी।
तुझ जैसे कमीनों की हिमाकत कहाँ जो तिरंगा का बाल भी बाँका कर पायेगी?

तिरंगा ने अपने ढाल का एक बटन दबा कर चक्र की तरह घुमाया। इसके साथ ही बहुत से नर्व गैस कैप्सूल्स कफ़न की तरफ लपके। पर कफ़न भी छलावा था। उसने अपने तीरों से हवा में ही सारे कैप्सूल्स को बेध दिया। कैप्सूल्स फटे ज़रूर पर उसका असर कफ़न तक नहीं पहुँचा।

कफ़न: वाह! बहुत लाजवाब। बहुत बढ़िया आधुनिकीकरण किया है तूने तिरंगा। पर अफसोस आज कुछ भी तेरे काम नहीं आएगा। आज सिर्फ एक चीज़ आएगी और वह है तेरी मौत जिसपर सिर्फ मेरा नाम लिखा होगा, सिर्फ कफ़न का। संभाल ये हीट सीकिंग मिसाइल की तरह काम करने वाले तीर। ये तेरे शरीर की गर्मी का पीछा करते हुए ही आएंगे। तेरी सारी उछल कूद धरी की धरी रह जायेगी।

कफ़न ने अपने एरोगन से एक साथ तीन हीट सीकिंग एरो तिरंगा की तरफ छोड़े। तिरंगा उछलते हुए एक से बचा तो बाकी दोनो सामने आ गए और उनसे उसने स्टैंडिंग डबल बैक फ्लिप मार कर उन दोनों तीरों को भी छकाया। पर उसके आश्चर्य की सीमा न रही जब वो तीनों तीर निष्क्रिय हो जाने की जगह पलट कर वापस उसी की तरफ आने लगे। तिरंगा का दिमाग बहुत तेज़ी से चल रहा था। उसने अपनी ढाल हवा में लहराई और वो ढाल एक तीर से टकरा कर हवा में ही उसको शहीद कर गयी। पर अब तिरंगा के हाथ से ढाल छूट चुकी थी। अभी भी दो तीर उसकी तरफ बढ़ रहे थे। तिरंगा एक एक चीज़ की गणना कर रहा था। तीरों के आने की गति, उसके जिस्म से दोनों तीरों की अलग अलग दूरी। उसने एक बार फिर हवा में कलाबाज़ी खाई और उनको जाने दिया। इस बार तिरंगा तैयार था। उसने एक तीर को पीछे से ही नाइलोस्टील की रस्सी में फसाया और उसे खींच कर दीवार में दे मारा। दूसरा तीर भी नष्ट हो चुका था। अब तिरंगा को समय मिल चुका था कि वो अपनी ढाल तक पहुँच जाए। इस बार उसने ढाल को बूमरैंग की तरह फेंका और ढाल आखिरी बचे तीर को नष्ट करती हुई तिरंगा के हाथ में वापस आ गयी।

“अब तेरी तरकश में कितने तीर बचे हैं कफ़न?”, तिरंगा कफ़न की तरफ पलटा। पर कफ़न तब तक वहाँ खड़ी स्कोर्पियो में घुस चुका था और जब वो बाहर आया तो उसके हाथ में था अन्याय दंड।

कफ़न: तेरे न्याय दंड की तरह ही ये अन्याय दंड देख ले तिरंगा। ये दुनिया भर के पापियों की हर तरह की पाप शक्ति को सोख कर उसका प्रहार करता है। द्वेष, घृणा, ईर्ष्या, लालच,मक्कारी, शैतानी जैसे इंसानी विचार; हत्या, चोरी, डकैती, मारा मारी, भ्रष्टाचार, धोखा, रिश्वतखोरी जैसे पाप ही इस दंड के ईंधन हैं। संभाल ये वार।

कफ़न ने तिरंगा की तरफ अन्याय दंड का रुख करते हुए वार किया। अन्याय दंड के चारों तरफ चिंगारिया उड़ाते हुए एक सघन लाइट बीम तिरंगा की तरफ लपकी। तिरंगा ने एक पल के सौंवे हिस्से में ही खुद को अपने लबादे से ढकते हुए ढाल आगे कर दी। पर लाइट बीम का वार इतना ज़ोरदार था कि तिरंगा उछलकर दूर जा गिरा।

तिरंगा मन में सोचते हुए, ”उफ्फ। इसका एक भी वार मुझे प्रत्यक्ष रूप से लग गया तो आज कफ़न मेरी जान लेने में सफल हो जाएगा। मुझे भी अपना न्याय दंड निकालना पड़ेगा।”

तिरंगा ने भी अपना न्याय दंड निकाल कर कफ़न पर प्रहार किया पर कफ़न ने उसे अन्याय दंड के प्रहार से रोका। फिर तो ये सिलसिला लंबा चलने लगा। दोनों एक दूसरे पर प्रहार पर प्रहार किये जा रहे थे और एक दूसरे के वारों को निष्प्रभावित भी किये जा रहे थे। कोई भी रुकने या हार मानने का नाम नहीं ले रहा था। अचानक दोनों एक साथ हवा में उछले और अपने अपने दंडों को दोनों हाथों से पकड़े हुए ज़मीन पर धंसा दिया। न्याय दंड और अन्याय दंड दोनों से असीमित ऊर्जा निकली और एक दूसरे से टकराई। इस टकराव से चारों तरफ बिजलियाँ और चिंगारियाँ उत्पन्न हुईं और झटके से तिरंगा और कफ़न एक दूसरे से दूर जा गिरे।

दोनों के कपड़े कई जगहों से फट गए थे। पर दोनों अब भी हार मानने को तैयार नहीं थे। तिरंगा ने खुद को संभाला और कफ़न की तरफ दौड़ पड़ा। तब तक कफ़न भी खड़ा हो चुका था।

तिरंगा ने एक घूंसा कफ़न के चेहरे पर मारा, ”क्या मिला कफ़न तुझे? सालों से बस अपने दादाजी का बदला ले रहा है वो भी मासूमों को मारकर। ले लिया बदला? अरे तेरे दादाजी की आत्मा भी तुझपर थूकती होगी।”

कफ़न ने मुँह ने खून उगल दिया। पर उसने भी जवाब में तिरंगा के चेहरे पर ज़ोरदार घूंसा मारा, ”हाहाहाहा! तिरंगा क्या हुआ? एक अकेले कफ़न को नहीं संभाल पा रहा है? तू देशभक्ति की बातें करता है। अरे क्या मिला तुझे देश और देशवासियों के लिए इतना कर के। आज कोई तेरा साथ तक नहीं दे रहा है। जो एक्स स्क्वैड देश के लिए काम करता है वही आज तेरे पीछे हाथ धो कर पड़ा हुआ है। और तू मुझे सिखा रहा है? संभाल तिरंगा आज तेरी हस्ती मिटा देगा कफ़न।”
तिरंगा के मुँह से खून उबालें मार रहा था।

तिरंगा: अरे जाने कितने आये कितने चले गए जो मिटाने चले थे तिरंगा की हस्ती।
इतिहास गवाह है जिसने भी झुकाना चाहा तिरंगा को, डूब गई उनकी ही कश्ती।

ये कहकर तिरंगा ने कफ़न के पिंजर पर ज़ोर से प्रहार किया। कफ़न चीख उठा। उसकी दो तीन पसलियाँ चटक गयी थीं। पर हार उसने भी न मानी थी। उसके अगले घूंसे ने तिरंगा की भी पसलियाँ तोड़ दी। दोनों पागलों की तरह चीख रहे थे और एक दूसरे पर वार किये जा रहे थे। दोनों के शरीर से लहू पानी की तरह बह रहा था। कपड़े कई जगहों से फट चुके थे। शरीर जवाब दे रहा था। पर उनके हाथ पैर नहीं रुक रहे थे।

तिरंगा: और वार कर कफ़न। आज तिरंगा भी देखेगा कि एक देशभक्त भारी पड़ता है या एक देशद्रोही।

कफ़न: कफ़न तो वो चादर है तिरंगा जो किसी की मौत के बाद ओढ़ाया जाता है। आज तुझपर भी एक कफ़न चढ़ेगा।

घंटों लड़ने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला था। दोनों खून से सराबोर थक कर वहाँ खड़ी उसी स्कोर्पियो से संलग्न होकर बैठ गए थे जिसमें कफ़न आया था। और दोनों एक दूसरे को देख कर हँस रहे थे।

तिरंगा: तू बहुत ही शातिर है और बहुत ही जुनूनी भी। मेरा सबसे खतरनाक दुश्मन कफ़न। काश तू अपना जुनून देश के लिए लगाता।

कफ़न: किस देश के लिए तिरंगा? जिसे आज़ाद कराने के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी मेरे दादाजी को उन्हीं के साथियों ने पीठ में छुरा भोंक दिया। जिस देश के रग रग में भ्रष्टाचार है, उसके लिये लड़ूं? जहाँ कानून एक मज़ाक से ज्यादा कुछ नहीं है उसके लिए लड़ूं? जहाँ लोगों का रक्षक ही भक्षक बना हुआ है उसके लिए लड़ूं? हाहाहाहा! नहीं तिरंगा। मैं चाहे देश का दुश्मन ही सही पर मुझमें ईमानदारी है। मैं किसी को अंधेरे में नहीं रखता। मैं दुश्मन हूँ तो दुश्मन हूँ। दोस्त और साथी कहकर पीठ में छुरा भोंकने वाला नहीं।

कफ़न खून उगलते हुए भी हंसे जा रहा था।

तिरंगा: बिल्कुल यही बात बोल रहा हूँ कफ़न। आज देश भ्रष्टाचार की अग्नि में घिरा हुआ है। और हम जैसे लोग भी अगर देश और इसके वासियों के लिए नहीं लड़ेंगे तो जल्दी ही सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत इतिहास में धूमिल हो जाएगा। देश और देशभक्तों के ख़िलाफ़ जो हथियार तुमने उठा रखे हैं वो डाल दो कफ़न।

कफ़न: तिरंगा तू मेरा सबसे बड़ा दुश्मन है पर साथ ही साथ मैं तेरा सम्मान भी करता हूँ। तेरी बातों और तेरे जज़्बातों की कद्र करता हूँ। पर कफ़न तो पैदा ही मौत के साथ हुआ है। मेरी ये जंग तब तक ज़ारी रहेगी जब तक मेरी साँस बाकी है। जब तू देशभक्ति नहीं छोड़ सकता तो कफ़न भी देशभक्तों को नहीं छोड़ेगा।

तिरंगा: कफ़न तू जिसका साथ दे रहा है वह मेरे पूरे परिवार का कातिल है। तू ये मत समझना कि तू आज यहाँ से निकल पायेगा। तेरी हलक में हाथ डाल कर तिरंगा तुझसे उस षड्यंत्रकारी का नाम उगलवायेगा। आज अपने माथे से ये कलंक मिटा डालेगा तिरंगा जिसने चार साल से मुझे चैन से सोने नहीं दिया।

कफ़न: पहले मुझे पकड़ कर तो दिखा तिरंगा। अभी तो तू भी हिलने लायक हालत में नहीं है। ये एक ऐसा खेल है तिरंगा जिसमें जो पहले उठ जाए बाज़ी उसी के हाथ में होगी। हाहाहाहा!

दोनों अभी भी उसी स्कोर्पियो के संलग्न बैठे हुए थे। हिम्मत तो बहुत थी दोनों में पर हिलने लायक ताकत नहीं थी। तभी तिरंगा की नज़र सामने पड़ी। कुछ दूरी पर कोई था जो वहाँ से उन दोनों की गतिविधियों को देख रहा था। अचानक उसने अपने आस्तीन से एक गन निकाली और कफ़न पर चला दिया। बहुत से ज़हरीले इंजेक्शन्स कफ़न का शरीर बेधने चल पड़े। तिरंगा ने एक पल के सौवें हिस्से में अपनी रस्सी निकाल कर पास पड़ी ढाल में फंसा कर उसे खींचा और कफ़न के आगे कर दिया। एक भी सुई कफ़न का सीना चाक नहीं कर पायी। पर ढाल से छिटककर एक सुई तिरंगा को लग गई और वो बेहोश होता चला गया। सुबह का सूर्य उदय हो रहा था और चिड़िया चहचहा रही थी।

…….कथा ज़ारी रहेगी चतुर्थ खंड में।

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प्रस्तुत हैं लेखक की कलम से कुछ अंश-</span></strong>

I really want to thank the readers and fans who have motivated me to write this untold story of our very own patriot detective superhero Tiranga
I want to thank our editor Shri Ravi Kumar Tanwer who keeps on taking stand for editing our stories and edit them in a marvelous way which attract the readers much more (Readers know the best
I want to thank my friends who have helped me in writing this story especially Divyanshu Tripathi and Devendra Gamthiyal, one has given me the fantastic idea of the battle between Tiranga and
That the battle shouldn’t be just between their powers and skills but also between their thoughts and beliefs

And Devendra bhai has enhanced the writer in me by giving the basic ideas of writing

And finally I want to thank the Indian Comic Industry for providing us with such wonderful characters to discuss and write upon

Thanks to all of you
—– Pradip Burnwal

Written By- Pradip Burnwal

One comment

  1. dhruvparekh60

    What a marvelous writing !❤️
    Itna behtarin likha hai ki padhate waqt pura scene hum imagine karte hai abhay ka dard, uska gussa, fight sequence aur yahi ek acche kahani ki pahechan hoti hai, padhate waqt apke dimag mai puri kahani kisi film ki tarah chale.
    Abhay ke parivar ki Kahani emotional kar deti hai.
    Kafan vs tiraanga fight mere liye amoung one of the best fight sequence mai aata hai puri RC universe mai, kyuki bina artwork ki bhi ye utna hi apko involve karta hai. ❤️
    Dushman Takkar ka tohi ye kamal ho sakta hai isme koi shak nahi isiliye ye mujhe itna Badhiyaa laga. 👍
    Tiraanga par likhi sabse behtareen kahani hai no doubt about that. 👍

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