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An Old Debt To Settle Part-4

तिरंगा का बेहोश निश्चल शरीर कफ़न के पास पड़ा हुआ था। वह समझ नहीं पा रहा था कि तिरंगा ने आखिर ऐसा क्यों किया। कफ़न बस संशय में था कि आज तक उसने वो हरसंभव प्रयास किया जिससे वो तिरंगा को मार पाये। पर उसी तिरंगा ने ना सिर्फ उसकी जान बचायी बल्कि अपनी जान को भी संकट में डाल गया। उसी तिरंगा ने जिसको कफ़न को कब का मौत के सुपुर्द कर देना चाहिए था। कफ़न ने काम ही ऐसे किये थे हमेशा से। तिरंगा के आविर्भाव के लगभग साथ ही कफ़न का भी आविर्भाव हुआ था। और तब से लेकर आज तक दोनों बस एक दूसरे के खून के प्यासे रहे। पर दोनों का कारण बिल्कुल अलग था। जहां कफ़न को देश और देश भक्ति से नफरत थी वहीं तिरंगा देश भक्ति की मिसाल था। दोनों की विपरीत परिस्थितियों और मनोस्थितियों ने दोनों को हमेशा से ही एक दूसरे के विरूध्द खड़ा कर के रख दिया था। पिछले कई सालों में तिरंगा और कफ़न एक दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हैं यह दृश्य न जाने कितनी बार उपस्थित होकर आया था। और आज उसी कफ़न के लिए तिरंगा ने यह जोख़िम उठा लिया। उसने यह भी नहीं सोचा कि उसके पीछे उसके परिवार का क्या होगा, दिल्ली का क्या होगा। तिरंगा के जिस्म में ज़हर धीरे धीरे फैलता जा रहा था।

 

कफ़न: नहीं तिरंगा। तु मर नहीं सकता। तेरी मौत पर सिर्फ़ मेरा हक़ है, सिर्फ़ कफ़न का। उसको कोई दूसरा नहीं छीन सकता है। तू बचेगा, तुझे कुछ नहीं होने देगा कफ़न।

 

करोल बाग- तिरंगा का बेस
समय सुबह के 8 बज रहे हैं

 

माँ: शिखा ये अभय कहाँ रह गया आज? वो तो 5-6 बजे तक आ जाता है।

 

शिखा: माँ मुझे ऐसे ही बहुत डर लग रहा था। भैया कफ़न से लड़ने गए हैं। वो भैया का सबसे बड़ा दुश्मन है और सबसे खतरनाक भी। और किसी दिन भैया को इतना परेशान भी नहीं देखा था।

 

माँ: मेरा भी जी बहुत घबरा रहा है। ये लड़का सुनता भी नहीं है मेरी। पूरी दुनिया का ठेका इसने ही ले रखा है जैसे। परिवार को खो दिया, मानसी को खो दिया तब भी इसकी आँख नहीं खुली। मुझे तो लगता है ये शहर ही छोड़ देना चाहिए। यहाँ चारों तरफ सिर्फ अपराध और अपराधी ही हैं। और शक्ति और परमाणु तो हैं ही दिल्ली की रक्षा के लिये। इतने महाशक्ति धारक रक्षकों के होते हुए इस लड़के को क्या पड़ी थी?

 

शिखा: मां भैया के जैसे जमीनी लेवल पर कोई भी काम नहीं कर सकता। दिल्ली को तिरंगा की भी उतनी ही जरूरत है जितनी शक्ति और परमाणु की। इतने बड़े शहर, इतने बड़े अपराध क्षेत्र में हर जगह कोई एक इंसान नहीं रह सकता। ऊपर से ये सब ब्रह्मांड रक्षकों के दल में भी हैं। तो हमेशा ही शक्ति या परमाणु गायब ही रहते हैं। तब भैया को ही पूरी दिल्ली देखनी पड़ती है।

 

अचानक बाहर से आते तेज़ शोर और अलार्म ने शिखा और उसकी माँ को हड़बड़ा दिया। दोनों चौकस हो गईं। अलार्म तेज़ी से बज रहा था।<br>
टेंSSSSS….टेंSSSSS….टेंSSSSS….टेंSSSSS<br>
इतनी सुबह क्या हो सकता है, कौन हो सकता है, ये सवाल दोनों के दिमाग को घेरे हुए थे।

 

माँ: क्या हुआ शिखा ये इतनी सुबह इतना तेज शोर कैसा? ये जगह तो पूरी तरह से वीरान और सुनसान है। अभय आता तो ये शोर तो नहीं होता। देखो तो क्या हुआ है।

 

शिखा: अभी देखती हूँ माँ। पता नहीं क्या हुआ है।

 

शिखा दौड़ती हुई कंट्रोल पैनल के पास गई। और उसकी आँखें फैलती चली गईं। बाहर का नज़ारा ही कुछ ऐसा था। चारों तरफ से दर्जनों कमाण्डोज़ पूरे हथियारों से लैस, सारी रक्षा प्रणाली की धज्जियां उड़ाते हुए चले आ रहे थे। वो कमांडोज़ गहरी बैगनी रंग की वर्दी में सिर से पैर तक ढके हुए थे। और उनके सीने पर अंग्रेज़ी के बड़े अक्षरों में H.O.W. लिखा हुआ था। शिखा ने चिल्लाते हुए माँ को बुलाया। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। चारों तरफ गोली बारूद के धमाके गूंज रहे थे। रास्ते में मौजूद तिरंगा के द्वारा लगाई गई हर सुरक्षा प्रणाली को वो कमांडोज़ धता बताकर चले आ रहे थे।

 

एक अनजान जगह पर:

 

तिरंगा अभी तक बेहोश था। उसके अवचेतन मस्तिष्क में चार साल पहले का फ्लैशबैक चल रहा था।

 

अभय अब नया रूप धारण कर चुका था। अपने पिता की दी हुई वर्दी को भारत के गौरव तीन रंगों में रंग कर अभय अब एक साधारण नौजवान से अपराधियों का काल बन चुका था। अभय तिरंगा बन चुका था।

 

दंगा अपने चरम पर था। लोग अब कसाई बन चुके थे। भारतनगर अब तबाह होने के कगार पर था। हब्शी अपने गुंडों समेत हर जगह जाकर दंगों का निर्देशन कर रहा था। और निर्दोष नागरिक उसकी चालों का शिकार होकर एक दूसरे का ही खून बहाये जा रहे थे। रिपोर्टर्स हर जगह की न्यूज़ कवरेज कर रहे थे। मीडिया में तूफान मचा हुआ था पर दंगे को रोकनेे का कोई उपाय सामने नहीं आ रहा था। और पुलिस तो पहले से ही मिली हुई थी। चारों तरफ से बस चीखने-चिल्लाने और कराहने की आवाज़ें आ रही थीं। हर जगह आगजनी मची हुई थी।

 

हब्शी अपने दल-बल सहित झिंगड़ी मोहल्ला पहुँच गया था। ये बस्ती ज्यादातर मुसलमानों से भरी हुई थीं। वहाँ जाकर वो दंगा भड़का रहा था। उसके गुंडे भी भेस बदलकर लोगों से जा मिले थे। और आग में घी का काम कर रहे थे। तभी तिरंगा वहाँ पहुँचा। और हब्शी को ललकारा।

 

तिरंगा: रुक जा हब्शी। अब तेरे और तेरे आकाओं का ये गंदा खेल यहीं खत्म होता है। बहुत रंग लिए तूने अपने हाथ मासूमों के खून से। अब तेरा पूरा शरीर तेरे खुद के खून से रंगेगा और फिर तेरे आकाओं की बारी आएगी।

 

हब्शी: तू है कौन रे? तुझे पता भी है तू किससे बात कर रहा है?

 

तिरंगा: हाँ अपराध की नाली में गिजबीजाते एक कीड़े से। जिसको अब मसल देने में ही भलाई है।

 

इतना सुनना था कि हब्शी ने अपने गुंडों सहित उसपर हमला कर दिया। सबके हाथों में लाठियां, चेन, पेट्रोल बम की बोतलें और तलवारें थीं। तिरंगा हर वार बचाता जा रहा था और उनके वारों का प्रत्युत्तर भी देता जा रहा था। कुछ ही देर में सारे गुंडे ढेर हो गए। तिरंगा ने हब्शी को धर दबोचा। उसने उसपर लात घूंसों की बरसात कर दी। अपने पिता की हालत अभी उसकी आँखों के सामने घूम रही रही। हब्शी का चेहरा उसके ही खून से लाल हो गया था। तिरंगा ने उसका कॉलर पकड़ लिया।

 

तिरंगा: बोल कमीने किसके इशारों पर कर रहा था तू ये सब? तेरे जैसे दो टके के गुंडे की औकात तो है नहीं इतना सब कुछ करना।

 

हब्शी को समझ आ गया था कि वो पकड़ा जा चुका है। पर उसका दिमाग अभी भी चल रहा था। वह जानता था ऐसी अवस्था से कैसे निकला जाता है। उसने तुरंत वही हथियार अपनाया जिसके कारण लोग बिना कुछ सोचे खून बहाने लगते हैं। धर्म के नाम पर लड़ाई। हब्शी कुछ जवाब देने की जगह चिल्लाने लगा।

 

हब्शी: अरे मेरे मुसलमान भाइयों! वहाँ खड़े खड़े क्या कर रहे हो? ये देखो एक हिन्दू आ कर आपके भाइयों का खून बहा रहा है और आप सब वहाँ तमाशा देख रहे हैं? खत्म कर दो इस हिंदू को। टुकड़े-टुकड़े कर दो इस ##@@&amp;&amp;**# के।

 

इतना सुनते ही वहाँ खड़े सारे लोग हथियारों के साथ तिरंगा को मारने आगे बढ़े। तिरंगा ज़ोर से दहाड़ा।

 

तिरंगा: ठहरो…..! किस चीज़ के लिए आप ये खून खराबा कर रहे हैं? किस बात के लिए? ये चंद किराये के गुंडे आपलोगों को भड़काते हैं और आपलोग चल निकलते हैं अपने ही भाईयों के खून बहाने। ये ना हिन्दू हैं ना मुसलमान, ये सिर्फ और सिर्फ दंगा भड़काने वाले भाड़े के गुंडे हैं।

 

ये कहकर तिरंगा ने वहाँ गिरे सारे गुंडों की नकली दाढ़ी मूछें निकाल दी। और वहाँ खड़े लोग भौचक्के रह गए।

 

तिरंगा: यही इन सबकी सच्चाई है। यही इनका काम है। पैसे लेकर हर जगह जाकर दंगा और उपद्रव फैलाना। आँखे खोलिये आपलोग। कोई भी आकर बस धर्म के नाम पर लड़वा देता है आपलोगों को। चारों तरफ नज़रें दौड़ाइये। क्या यही वो भारतनगर है जहाँ के भाईचारे की सब कसमें खाते हैं। इन धु-धु कर के जल रहे घरों, दुकानों और गाड़ियों को देखिए। चारों तरफ बिछी लाशों और घायलों को देखिए। उन सबका क्या कसूर था बोलिये। ये चंद वोटों के लालची नेता आकर धर्म के नाम पर निर्दोषों का खून बहाने में एक पल भी नहीं सोचते। पर आपकी समझदारी को क्या हो गया है?

 

भीड़ में खड़े लोगों की आँखें शर्म से झुकी हुई थी। वो समझ गए थे कि कैसे उनका इस्तेमाल किया गया है।

 

भीड़: हमें माफ कर दो तिरंगा। हम अंधे हो गए थे। कितने मज़लूम मारे गए सिर्फ और सिर्फ इन लोगों के भड़काने के कारण। पर हमलोग भी बराबर के गुनहगार हैं।

 

तिरंगा: भाईयों बस यही बात भारतनगर के हर एक वासी को समझाना है। अब इस दंगे की जड़ तक पहुँचने का समय आ गया है। पर इस काम में आप सब को मेरा साथ देना होगा।

 

यह कहकर जैसे ही तिरंगा हब्शी की तरफ़ मुड़ा वो सन्न रह गया। हब्शी ने साइनाइड की गोली निगल ली थी और अब वहाँ उसकी बेजान लाश पड़ी हुई थी। तिरंगा के असली गुनाहगार तक पहुँचने के रास्ते बंद होते जा रहे थे। तिरंगा धीरे धीरे हर गली मोहल्ले नुक्कड़ पर जाकर लोगों की आँखे खोल रहा था और उसका साथ बाकी लोग भी दे रहे थे। शाम तक भारतनगर में दंगा पूरी तरह से खत्म हो चुका था। दिल्ली की धरती को एक नया नायक मिल चुका था। और अगले दिन की खबरें सिर्फ और सिर्फ देशभक्त हीरो तिरंगा और दंगे के विषय में ही थी। सिर्फ एक दिन में तिरंगा सिर्फ भारतनगर ही नहीं बल्कि पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया था।

 

इसके बाद तिरंगा काफी सालों तक असली गुनाहगारों को ढूंढता रहा पर बाकी देश के दुश्मनों और अपराधियों को पकड़ते पकड़ते उसका ये लक्ष्य कहीं धूमिल हो चुका था। पर आज चार साल बाद उसे कुछ आशा की किरण दिखाई दी थी कफ़न के रूप में। और उस किरण को छूने के चक्कर में उसकी जिंदगी में ही अंधेरा होने जा रहा था।

 

तिरंगा की साँसे बहुत तेज़ी से चल रही थी। उसके आसपास कोई भी नहीं था। आज शायद मौत उसका मुकद्दर बनने जा रही थी। तभी कफ़न डॉक्टर साठे को लेकर आया। डॉक्टर साठे दिल्ली के सबसे नामी गिरामी डॉक्टर्स में से एक था। वह एक अच्छे डॉक्टर के साथ साथ एक बहुत बड़ा शोधकर्ता भी था। उसने हज़ारों प्रकार के ज़हरों और उसकी काटों पर अनुसंधान और शोध किया था। वह महानगर की जानी मानी हस्ती डॉक्टर करूणाकरन के साथ भी सालों तक काम कर चुका था। कफ़न ने उसे लाकर कोई गलती नहीं की थी।

 

कफ़न: देख साठे। तिरंगा पर किस ज़हर का वार हुआ है? ये बचना चाहिये। हर हाल में बचना चाहिये। वरना तेरी बची हुई ज़िन्दगी को नरक बना कर रख देगा कफ़न।

 

साठे: कफ़न! तिरंगा हमारे देश का प्रतीक है। हमारे देश की आँख है। देश की सुरक्षा की बहुत बड़ी कड़ी है। सैंकड़ों बार इसने दिल्ली और देश की सुरक्षा के लिये अपनी जान की बाज़ी लगाई है। इसको बचाने के लिये तो मैं खुद अपनी जान दाँव पर लगा दूंगा। पर तुम बताओ? तिरंगा तो तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन है। उसे बचाने के लिये तुम इतनी ज़हमत क्यों उठा रहे हो?

 

कफ़न: तू अपने काम से काम रख डॉक्टर। बस इतना जान ले कि तिरंगा का कर्ज़ है मेरे ऊपर और कफन किसी का कर्ज़ रख नहीं सकता, अपने दुश्मन का भी नहीं।

 

साठे ने पहले तिरंगा को एक साधारण एंटीवेनम की सुई दी। फिर उसके बायें हाथ के बाजू पर ज़ोर से रबर बैंड बाँधा ताकि ज़हर बाकी शरीर में न फैले। उसे समझ आ गया था कि यह एक धीरे फैलने वाला लेकिन घातक और मारक विष है। उसने ऐसा इंतज़ाम कर दिया था कि कुछ घण्टे वो ज़हर तिरंगा के बाकी शरीर, विशेषकर उसके हृदय तक ना पहुँचे। उसने तिरंगा के शरीर से कई सारे खून के सैम्पल्स भी लिये। और कफ़न को जल्दी आने का कहकर अपने लैब निकल गया।

 

करोल बाग- तिरंगा का बेस<br>
समय सुबह के 8:30 बज रहे हैं

 

सारे कैमरों में बस H.O.W. के कमांडोज़ ही नज़र आ रहे थे। शिखा और उसकी माँ की साँसे हलक में अटक गई थी। गुंडों को इस बियावान में इतने अंडरग्राउंड बेस का पता कैसे चला वो समझ नहीं पा रही थीं। कमांडोज़ सारे इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक सुरक्षा उपकरणों को ई.एम.पी. बम फोड़ कर नष्ट करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। अब मोटे कंक्रीट और लेड के दरवाजे की बारी थी। शिखा अंदर से सारे दृश्य देख रही थी। उसे समझ आ गया था कि यह बेस अब कुछ ही क्षणों का मेहमान है।

 

शिखा: माँ तुम गुप्त रास्ते से जल्दी निकल जाओ। मुझे यहाँ के कुछ महत्वपूर्ण उपकरण बन्द करने होंगे।

 

माँ: नहीं। तू पागल है क्या? मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जा रही। तूने सोचा भी कैसे?

 

शिखा: (चिल्लाते हुए) माँ तुम जाओ ना। अगर अभय भैया आया तो किसी को तो बाहर रहना पड़ेगा। तुम जाओ माँ प्लीज् तुम जाओ। मुझे ये सब बंद करना ही होगा माँ वरना भैया बहुत मुश्किल में फंस जायेगा। और इस बेस को आत्मविनाशी मोड पर डालना पड़ेगा ताकि कोई भी ज़रूरी चीज़ दुश्मनों के हाथ न लगे। उफ्फ! भैया भी ऐसी मुश्किल घड़ी में पता नहीं कहाँ है।

 

शिखा ने किसी तरह अपनी माँ को गुप्त दरवाजे से बाहर भेजा और खुद कंट्रोल पैनल पर बैठ गयी। वह भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि दुश्मनों ने वो गुप्त रास्ता न देखा हो और किसी तरह उसकी माँ सुरक्षित निकल जाए। वह लगातार सारे उपकरणों को ठप्प करने में लगी हुई थी और इधर से H.O.W. के कमांडोज़ कंक्रीट में विशाल ड्रिलिंग मशीन से छेद करने में लगी हुई थी। उनकी गति को देखकर लग रहा था कि बस कुछ ही क्षणों में इतना बड़ा छेद हो जायेगा के कमांडोज़ आसानी से बेस में प्रविष्ट कर जायें। शिखा को पूरी तरह से स्थिति पता थी। यह पूरा हमला केवल उसके लिए ही किया गया था। अभय उर्फ तिरंगा के ख़िलाफ़ रणनीतिक लाभ उठाने के लिए उसे चारे की तरह इस्तेमाल किया जाने वाला था। पर सब कुछ जानते हुये भी वह कंट्रोल पैनल से नहीं हट सकती थी। उसे थोड़ा समय चाहिये था पर वो कमांडोज़ किसी भी तरह का समय देने के मूड में नहीं लग रहे थे। ड्रिलिंग पूरी हो चुकी थी। कंक्रीट की मजबूत परत भी उनके सामने बौनी साबित हुई थी। अब उस बेस की सुरक्षा व्यवस्था में बस आख़िरी कील बची हुई थी, लेड का मजबूत मोटा दरवाजा।

 

शिखा: (डर से चिल्लाते हुये) ओह माई गॉड। ओह माई गॉड। भगवान बचा लो आज। बस कुछ ही मिनटों में ये बेस सेल्फ डिस्ट्रक्ट मोड में चला जायेगा। तब तक किसी तरह संभाल लो।

 

वक़ील सत्यप्रकाश का घर।

 

आज सुबह जैसे ही सत्यप्रकाश घर आया तो टी टेबल पर उसे एक गुमनाम लिफ़ाफ़ा मिला। कोई पोस्ट ऑफिस का आदमी देकर तो नहीं गया था क्योंकि किसी भी प्रकार का भेजने वाले का पता नहीं लिखा हुआ था। किसी ने खुद अपने हाथ से वो लिफ़ाफ़ा वहाँ रखा था। उसने वो लिफ़ाफ़ा खोला तो एक चिट्ठी और एक दस्तावेज़ मिला। उसने पहले वो चिट्ठी पढ़ी। हैंड राईटिंग तो समझ में नहीं आ रही थी कि किसकी है पर थोड़ी देर पढ़ते ही ये समझ आ गया कि वो किसने लिखवाई है।

 

सत्यप्रकाश: कमाल है। भारत को इतनी महत्वपूर्ण चिट्ठी दूसरे से क्यों लिखवानी पड़ गयी? वो किस ख़तरे में है? क्योंकि इतना ज़ाहिर है कि ये अगर उसने दूसरे से लिखवाया है तो पहुँचाया भी किसी और ने है। और वो सच में किसी बड़े ख़तरे में फंस गया है। तभी पिछले कई दिनों से वह ग़ायब है। उसने मुझे फ़ोन भी नहीं किया और ऐसा सिर्फ़ इसलिये हो सकता है ताकि कोई ट्रेस ना कर सके। आख़िर किस मुसीबत में पड़ गया भारत? ख़ैर आगे पढ़ता हूँ तो पता लगे कुछ।

 

सत्यप्रकाश चिट्ठी आगे पढ़ने लगा और उसकी भृकुटियों में तनाव बढ़ने लगा।

 

“….हो सकता है कि अब मैं वापस ही ना आ पाऊँ। मैं अपनी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहा हूँ पर इससे मेरा ज़िंदा वापस आना बहुत मुश्किल है। पर सत्यप्रकाश जी आप मेरे पूजनीय रहे हैं, मेरे आदर्श रहे हैं। मैं आपके ऊपर अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण चीज़ केस का भार सौंप रहा हूँ। मुझे पता है इसके बाद आप खुद भी सुरक्षित नहीं रहेंगे और ऐसा कर के मैं आपके ऊपर बहुत बड़े खतरे को छोड़ रहा हूँ जो कि मुझे नहीं करना चाहिए। पर मेरे पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। आपने ही हमेशा मुझे ईमानदारी के रास्ते पर चलना सिखाया। साथ ही यह भी सिखाया कि यह दुनिया का सबसे मुश्किल काम है। पर आज आपका यह शिष्य आपसे प्रार्थना करता है कि आप किसी तरह इस मुश्किल काम को कीजिये। आपको एक व्यक्ति के ऊपर क्रिमिनल रिट करना है। मैंने सारे दस्तावेज दे दिये हैं और कुछ सबूत भी। इतने सबूत पर्याप्त होंगे कम से कम क्रिमिनल रिट (Criminal Writ) के लिए। बाकी अदालत में पेश करूँगा। मुझे पता है इससे आपकी जान को खतरा होगा सर्। पर मुझे ये भी पता है कि आपके अलावा इस काम को कोई नहीं कर सकता। मैं बहुत जल्द आपसे मिलूँगा।”

 

सत्यप्रकाश ने चिट्ठी पढ़ कर एक गहरी साँस ली। उस चिट्ठी के पीछे क्रिमिनल रिट का आवेदन पत्र संलग्न किया हुआ था। सत्यप्रकाश ने वो दस्तावेज खोला और क्रिमिनल रिट के आवेदन पत्र पर जिसका नाम लिखा था उसको देखते ही उसको मानो काटो तो ख़ून नहीं। उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा केस उसका इंतेज़ार कर रहा था। लगभग 10 मिनट तक वो वैसे ही अचंभित अवस्था में खड़े रहे। फिर केस से संबंधित ज़रूरी फाइल्स बनाने में लग गया।

 

करोल बाग- तिरंगा का बेस
समय सुबह के 8:40 बज रहे हैं

 

H.O.W. कमांडोज़ के मजबूत से मजबूत ड्रिलिंग मशीन्स और हथियारों से भी लेड के दरवाजे पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ रहा था। शिखा को उसकी सबसे महत्वपूर्ण चीज़ मिल रही थी। समय मिल पा रहा था उसे। तभी दरवाजे के पास एक मास्कधारी आया। उसने पूरे शरीर पर अलग अलग रसायनों का मिश्रण नज़र आ रहा था। उसने कुछ रसायनों को एक बीकर में डाला और उनका घोल बना कर मोटी लेड के दरवाजे पर डाला और कमांडोज़ की आंखों में चमक आ गई। उसके असर से दरवाज़ा मोम की तरह पिघलने लगा। फिर हल्के से प्रयास के साथ ही दरवाजा गिर गया। अब शिखा और कमांडोज़ के बीच कोई भी नहीं था। या या था?

 

पीछे से चीख चिल्लाहटों की आवाज़ें आ रही थीं। एक पर एक कमांडोज़ धराशायी होते जा रहे थे। किसी की गर्दन ही उखाड़ दी गयी थी। किसी की रीढ़ की हड्डियां चटक गयी थी। किसी की अंतड़ियों को उसके पेट से बाहर निकाल दिया गया था। किसी भी कमांडो को कोई भी हथियार चलाने का मौका भी नहीं मिल पा रहा था। हमलावर बिना कुछ बोले तेज़ी से अपने मैकेनिकल हाथों से ही सबको खत्म करता हुआ आगे बढ़ रहा था। इधर कुछ कमांडोज़ उस मास्कधारी के नेतृत्व में शिखा तक पहुँच चुके थे। परंतु शिखा के चेहरे पर अब विजयी मुस्कान थी।

 

शिखा: हाहाहाहा! अब कुछ भी कर लो मैने सारा डेटा उड़ा दिया है। अब तुमलोगों को कुछ भी नहीं मिलने वाला। और ये पूरा बेस 15 मिनट में सेल्फ-डिस्ट्रक्ट हो जाएगा। और तुमलोगों के हाथ आएगी केवल निराशा। मुझे नहीं पता कि तुमलोगों ने इतने छुपे हुए बेस को कैसे ढूंढ निकाला। पर तिरंगा ने मुझपर जो भरोसा किया था उसे मैंने टूटने नहीं दिया। अब चाहे मेरी जान भी चली जाए पर मुझे कोई अफसोस नहीं होगा।

 

मास्कधारी: अफ़सोस तो तुझे होगा शिखा। तेरा ज़िंदा रहना ही तेरे लिये अफ़सोस की बात है। तू मर जाती तो हमारे किसी काम की नहीं आती। पर तूने ज़िंदा रहकर खुद पर और तिरंगा पर सबसे बड़ा आघात किया है। और अब अफ़सोस हमलोगों को नहीं तुझे होने वाला है। हाँ इस बेस से मिलने वाली जानकारी बहुत महत्वपूर्ण हो सकती थी पर तेरी ज़िन्दगी से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं।

 

कहकर मास्कधारी ने शिखा पर झपट्टा मारा। शिखा फाइटर नहीं थी। कुछ देर की जद्दोजहद के बाद ही उसकी पकड़ में आ गयी। पर अब एक रक्षक आ चुका था। हवलदार आ चुका था। जी हाँ मेकैनिकल हाथों वाला हवलदार। अभय का पिता हवलदार। जिसकी ज़ुबान और हाथ उस भीषण नरसंहार वाले दंगे के षड्यंत्र को उजागर करने में बलि चढ़ गए थे। पर उसका देश को बचाने का जूनून, दुश्मनों को नेस्तनाबूद करने के जज़्बे ने उसे मरने नहीं दिया था। और अपराधियों और षड्यंत्रकारीयों की खाल उधेड़ कर उसमें भूसा भरने के लिए कानून का पुराना सिपाही आ गया था। पर अब वह कानून के अंदर रहकर काम करने वाला हवलदार रामनाथ देशपांडे नहीं था। वह अब खुद एक कानून था। वह एक एक कमांडोज़ की धज्जियां उड़ाते हुए वो शिखा को बचाने पहुँच चुका था। उसने अपने आपको अपग्रेड कर लिया था। अब उसे पहले से रिकॉर्डेड मैसेजेज़ को बजाने की ज़रूरत नहीं थी। अब उसकी खुद की एक मेकैनिकल ज़ुबान थी जिससे वह बोल सकता था।

 

हवलदार: (खरखराती आवाज़ में) ठहर जा चुड़ैल। मैं समझ चुका हूँ तू कौन है। पर तु या तेरे ये H.O.W. कमांडोज़ शिखा को नहीं छू सकते। तुझे जिंदगी की कैद से आजाद कराने के लिए आ चुका है हवलदार। घिन आती है मुझे तुझे देख कर। तेरा बाप तो अपराधी था ही तू उससे भी चार कदम आगे निकली। अरे अपनी बहन को ही देख लिया होता कहां वह और कहां तू चुड़ैल। एक तरफ ज्योति जहां कानून और उसकी हिफाजत के लिए लड़ती है तो दूसरी तरफ तेरी जैसी अपराधी अपने बाप के कदमों पर चलकर बाकी पूरे खानदान का नाम खराब करती है। तेरी जिंदगी का सूर्य यहीं अस्त होता है ज्वाला।

 

मास्कधारी: हा हा हा हा। अच्छा हुआ तू मरने के लिए खुद ही मेरे सामने चला आया। बहुत दिनों से मैं भी तुझे ढूंढ रही थी। तूने राजा और उसके मंत्री बाप को मार कर ठीक नहीं किया। मेरा सारा धंधा और सारी साख चौपट हो गई थी। उसका बदला तो मुझे लेना ही था। अच्छा हुआ तू आ गया हवलदार। रही शिखा की बात तो जान ले ज्वाला एक बार जिसे पकड़ ले उसे जलना ही होता है। कमांडोज़ शिखा को तुम देखो मैं इस हवलदार के बच्चे को देखती हूं।

 

दो बिल्कुल अलग अलग ही शक्ति धारक योद्धाओं के बीच एक जुनूनी जंग छिड़ गई थी। एक तरफ दुनिया को आग लगाने का जुनून था तो दूसरी तरफ अपनी दुनिया बचाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार था हवलदार। ज्वाला के पास एक से एक रसायनों और उनके घातक मिश्रण का ज्ञान था। हवलदार पूरी तरह से अपने मैकेनिकल हाथों और अपने युद्ध कौशल पर निर्भर था। दोनों वार करने में बहुत तेज थे। पर ज्वाला का साथ उसके कमांडोज भी दे रहे थे। हवलदार के लिए चारों तरफ नजरें बिछाना और सबसे एक साथ लड़ाई करना बहुत मुश्किल हो रहा था। उसे सहायता की जरूरत थी और शिखा को बचाने के लिए वह अकेला काफी नहीं था। पर आस पास कोई भी मदद करने वाला नहीं था। आज शिखा का भाई भी नहीं था जो उसकी राखी की लाज रख सके। हवलदार के लिए भी मुश्किलें बहुत ज्यादा थीं। वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा था। ज्वाला से लड़ते-लड़ते कभी कमांडोज की तरफ नजरें जाती और कमांडोज से लड़ते-लड़ते कभी ज्वाला की तरफ नजरें जाती। उधर शिखा ने भी सेल्फ-डिस्ट्रक्ट बटन दबाया हुआ था। समय बीतता जा रहा था। हवलदार के पास समय भी कम था और मौका भी। और इसी धोखे में ज्वाला उस पर वार करने में सफल हो गई। उसने सांद्र एक्वारिजिया से भरा एक पूरे का पूरा बीकर ही हवलदार के हाथ पर फोड़ दिया। हवलदार का दांया मैकेनिकल हाथ बेकार हो चुका था। हवलदार पकड़ में आ चुका था। ज्वाला हंसते हुए उसके बाएं हाथ को तिल तिल करके तोड़ रही थी। हवलदार की आंखें बस बेबसी के लहू बहा रही थीं। उसके हाथों को बेकार करने के बाद ज्वाला ने उसके पैर भी बांध दिए थे।

 

ज्वाला: चलो नामर्दों उठाओ शिखा को। तुमसे तो कुछ भी नहीं होने वाला। मरने दो हवलदार को यहीं पर। इसकी मौत तड़प तड़प कर ही लिखी हुई थी। बस यह कौन है और इसका तिरंगा से क्या संबंध है यह नहीं पता चल पाया। खैर अब दोनों ही ऊपर जा रहें हैं। इधर हवलदार मरेगा उधर तिरंगा भी मेरे ज़हर से तिल-तिल कर के मर रहा होगा। क्या इंसान है वह भी! अपने ही दुश्मन पर चलाया गया वार खुद पर झेल लिया। हह! मरें सब। मरना तो उसे ऐसे भी था कुछ दिन में।

 

शिखा को बेहोश करके ज्वाला उसे अपने साथ लेकर निकल चुकी थी और पीछे छोड़ गई थी एक बेबस और लाचार हवलदार रामनाथ को। अब हवलदार की जिंदगी में जीने का कोई लक्ष्य नहीं था। और ना ही उसके जीने की उम्मीद थी। कुछ ही देर में वह बेस धमाके से उड़ने वाला था पर तभी एक साया वहां आया। उसके हावभाव किसी से मिल रहे थे। चेहरा मास्क से ढका हुआ था और उसने हाथों में नुकीले नाखून निकले दस्ताने पहने हुए थे। विशनखा वहां आ चुकी थी। पर अब उसके पास करने को कुछ भी नहीं बचा था। उसने हवलदार को उठाया और और पलक झपकते बाहर निकल गई। लगभग तुरंत ही एक कर्णभेदी धमाके से पूरे का पूरा बेस उड़ गया। पर सवाल यह है की मानसी तो मर चुकी थी फिर यह कौन थी जो विषनखा के सूट में आई थी?

 

रात 11:30
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश दीपक बेसरा का घर

 

वॉचमैन एक जानी पहचानी गाड़ी देखकर चौंक गया। उसे अजीब भी लग रहा था कि इतनी रात गए ये इंसान यहाँ कैसे। पर गाड़ी के अंदर जब उस इंसान के चेहरे पर शिकन देखी तो उसने रोकने की कोशिश नहीं की।

 

वॉचमैन: साहब इतनी रात गए आप यहां पर कैसे? जज साहब तो सो रहे हैं। मुझे पता नहीं मैं क्या कहूं पर आप यहां पर आया तो जरूर कोई इमरजेंसी बात होगी। मैं आपको रोक तो नहीं सकता आप जाइए अंदर।

 

वह शख़्स अंदर चला गया। उसने डोरबेल बजाया। पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला। वह बार-बार डोर बेल बजा रहा था। करीब 10 मिनट के बाद दरवाजा खुला। जज दीपक बेसरा ने दरवाजा खोला। सामने खड़े शख्स को सामने देखकर वह भौंचक्के रह गए।

 

जज दीपक बेसरा: अरे सत्यप्रकाश जी आप इतनी रात गए यहां पर? सब ठीक तो है ना?

 

सत्यप्रकाश: कुछ भी ठीक नहीं है जज साहब। मुझे तो सुरक्षा कारणों की वजह से इस वक्त यहां पर आना पड़ा। अन्यथा मैं इतनी रात गए आप को कष्ट नहीं देता। पर मुद्दा ही कुछ ऐसा है। मुझे एक शख्स के ख़िलाफ़ क्रिमिनल रिट करानी है।

 

जज दीपक बेसरा: अरे तो कल कोर्ट में करा देते ना। अच्छा ठीक है अब आप आ ही गए हैं तो अंदर आइए। बैठिये मैं थोड़ा फ्रेश होकर आता हूं।

 

5 मिनट बाद दीपक बेसरा जी आते हैं और टेबल पर रखी फ़ाइल उठा कर देखने लगते हैं। उधर सत्यप्रकाश सिर पर हाथ धरे बैठा हुआ था। उधर हर पलटते पन्ने के साथ दीपक बेसरा जी का अचंभा बढ़ता जा रहा था। लगभग 15 मिनट गौर से फ़ाइल पढ़ने के बाद-

 

जज दीपक बेसरा: आपको समझ में आ रहा है ये क्या कर रहे हैं आप? किसके खिलाफ जाने का सोच रहा है समझ में आ रहा है ना आपको? आपका पूरा करियर, आपकी पूरी जिंदगी दांव पर लग जाएगी। आपके परिवार की सुरक्षा दांव पर लग जाएगी।

 

सत्यप्रकाश: मुझे पता है जज साहब। पर सिर्फ अपने लिए या अपने परिवार के लिए मैं लाखों परिवारों के इंसाफ से कैसे खेल जाऊं? कैसे बन जाऊं इंसाफघाती? अगर सिर्फ मेरे या मेरे परिवार की जिंदगी के बदले इतने लोगों को इंसाफ मिल जाता है तो मिल जाने दीजिए। आप सिर्फ जज नहीं मेरे बहुत अच्छे मित्र भी हैं। इसलिए मैं सीधा आपके यहां चला आया। कर दीजिए क्रिमिनल रिट दिल्ली के मुख्यमंत्री पर। उस देश के गद्दार को सज़ा मिलनी चाहिये जज साहब। बचना नहीं चाहिये लाखों मज़लूमों की ज़िंदगी से खेलने वाला वो जानवर। पता नहीं भारत कहाँ है, किस हाल में है?

 

यह कहते-कहते सत्यप्रकाश भावुक हो गया। दीपक बेसरा जी ने उसे संभाला।

 

अगले दिन करीब रात के 11:00 बजे दिल्ली फरीदाबाद बॉर्डर पर बहुत हलचल मची हुई थी। लगभग दर्जन भर गुंडे एक बड़े कंसाइनमेंट से भरे ट्रक के आस पास एक दूसरे से बातें कर रहे थे। यह पक्की बात थी कि उन लोगों के बीच में कोई गैरकानूनी डील चल रही थी। दोनों गुटों के लीडर के बीच में बात चल ही रही थी कि सरसराते हुए कुछ आया एक गुंडे के सर पर लग कर कंसाइनमेंट वाले ट्रक से टकराकर वापस आया और एक दूसरे गुंडे के सिर पर लग कर उसको भी बेहोश कर दिया। और फिर वापस सरसराते हुए किसी के हाथ में चला गया। सब भौचक्के खड़े थे और नीचे दो गुंडे बेहोश पड़े हुए थे। सबकी नज़र उस सरसराती चीज के जाने की दिशा में पड़ी और सब के होश फाख्ता हो गए। तिरंगा घटनास्थल पर आ चुका था। और उसके ढाल के नेज़े निकल चुके थे। इस बार ढाल जब दुबारा सरसराई तो दो गुंडों की गर्दन उड़ाते हुए तिरंगा के हाथ में पहुंची। सारे गुंडों में अफरा-तफरी मच गई।

 

एक गुंडा अपने ट्रांसमीटर पर चिल्ला रहा था,” बॉस तिरंगा आ चुका है और वह पागल हो गया है। वह…वह अपने होश खो बैठा है। जिसने कभी किसी की भी जान नहीं ली वह सब को बिना कुछ सोचे समझे मार रहा है। हम लोग कंसाइनमेंट छोड़कर भाग रहे हैं। हम उसे नहीं संभाल पाएंगे।”

 

पर किसी को भी भागने का मौका नहीं मिल रहा था। तिरंगा के ऊपर अलग ही वहशीपन सवार था। वह गुंडों को गाज़र-मूली की तरह काट रहा था। उसके पागलपन को देखकर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उससे जाकर सीधे लड़ाई करे और तिरंगा इसी बात का फायदा उठा रहा था। जिस गुंडे के हाथ में ट्रांसमीटर था वह भी मारा गया था पर अभी भी उसके ट्रांसमीटर पर खर्र खर्र की आवाज आ रही थी। तिरंगा जाकर उस ट्रांसमीटर को उठाता है।

 

तिरंगा: मैं आ रहा हूं CNN।

 

 

X-Squad Headquarters

 

इधर शिखा को उठाकर ज्वाला X-Squad हेडक्वार्टर्स ले आयी थी। दूर खड़े अजनबी और कर्नल एक्सरे मुस्कुरा रहे थे। उनके हाथ तुरुप का इक्का लग गया था।

 

अजनबी: अब तिरंगा की कमज़ोर नस हमारे हाथ में है। वैसे तो उसका बचना नामुमकिन है पर अगर वह बच भी गया तो हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

 

तभी वहां पर रखा लैंडलाइन फोन बज उठा। फ़ोन पर दुनियाभर के अपराधों और अपराधियों की जानकारी रखने वाला शख्स था। जिसने तिरंगा और डोगा जैसे अपराध विनाशकों के भी छक्के छुड़ा रखे थे। अपराध की दुनिया का प्रिंसिपल भी जिसका सम्मान करता था।

 

CNN: पासा पलट चुका है। हमारा एक सिपाही हम से गद्दारी कर चुका है। अब जो करना है तुम्हें ही करना है।

 

अजनबी: चिंता मत करो। हमने दुश्मन के खेमे को ध्वस्त करने का हथियार बरामद कर लिया है। शिखा मेरे कब्जे में है। तुम आगे की की कार्यवाही करो और दोबारा फोन मत करो। मुझे बहुत से काम निपटाने हैं और तुम्हारे पास बेइंतेहा शक्तिशाली नेटवर्क है तो मुझे फोन करके परेशान मत करो। अपने हिस्से का काम करो। (चिल्लाते हुए) कर्नल! लड़की को लेकर आओ।

 

कर्नल एक्स-रे शिखा को लगभग घसीटते हुए लेकर आता है और एक खंभे से बांध देता है। शिखा के चेहरे के ऊपर ही एक बल्ब जल रहा था जिसकी तेज रोशनी उसे अंधा कर दे रही थी। पीछे अंधेरे में खड़ा अजनबी अभी भी मुस्कुरा रहा था।

 

शिखा: उधर अंधेरे में क्या छुपा है खड़ा है कायर? सामने आकर अपना चेहरा क्यों नहीं दिखाता? मेरा पूरा परिवार तहस-नहस हो गया है। मेरा भाई और मेरी मां भी मुझसे दूर चली गई। तूने पूरा बर्बाद कर दिया है हम लोगों को। मेरा भैया तुझे छोड़ेगा नहीं। तू है कौन जिसने हमारी जिंदगी नरक बना डाली है?

 

शिखा के चेहरे पर से लाइट हटा ली जाती है। अजनबी अंधेरे से बाहर आता है और इसी के साथ शिखा को जिंदगी का सबसे बड़ा झटका लगता है।

 

शिखा: भैया तुम?

 

 

One comment

  1. dhruvparekh60

    Part 4…….. jaisa socha tha usse kahi jyada bahtreen nikla, kahani aapko puri tarah baandh ke rakhti hai.
    Sabse jyada behtareen baat ye lagi ki is part mai tiraanga na ke barabar tha aur apne pura mouka aur kirdaro ko diya khilne ka.🙂
    Hawaldar ki entry ne mujhe chouka diya kyuki mai itna kuch tiraanga comics ke bare mai janta nahi but padhne se itna jarur pata chalta hai ke yeh apne hi ye kirdar ko aur nikhara hai isme koi shak nahi. 👍
    Shikha ke himmat bhi kabile tarif thi sirf actions scene hi kisiko hero nahi banate yeh apne apke lekhan se sabit kar diya. ❤️
    Last ke scenes suspense se bhare hue the mujhe lagta hai tiraanga ke bhesh mai kafan hai aur kuch plan ready kiya hai tiraanga ne finale ke liye baki aap jane…..🙄
    Aur ye shikha ne bhai kyu kaha ye thoda mujhe shocking laga….😳
    Naye naye kirdaar aa rahe aur dhire dhire shadytra ki parte khulegi 🧐
    Waiting for finale episode 🔥🔥🔥

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