X-Squad Headquarters
शिखा- भैया तुम? नहीं ये तुम नहीं हो। तुम वही आतंकवादी हो एक्स। जिसके कारण मेरे भैया को अपना चेहरा, अपनी पहचान, अपनी नौकरी अपना सब कुछ गँवाना पड़ा। उनको मजबूरी में कोई और चेहरा अपनाना पड़ा। तुझे छोडूँगी नहीं मैं।
एक्स- हाहाहाहा! बढ़िया, बहुत बढ़िया। भाई-बहन दोनों डिटेक्टिव, दोनों ही देशभक्त। ये कैसा परिवार है रे? कौन सी मुगली घुट्टी पीते हो तुमलोग जो सब के सब देशभक्त तैयार होते हो। अभय का अपना पूरा परिवार भी इसी बीमारी से ग्रस्त था। जल गया ना पूरा परिवार ज़िंदा। हवलदार रामनाथ देशपांडे, बहुत बढ़ चढ़ कर दुनिया को बताने निकला था उस दंगे की हक़ीक़त। उसकी भी ज़ुबान और हाथ काट दिए गए थे। उसके बाद भी अभय के दिमाग़ से देशभक्ति का दीमक नहीं निकला और अब तुमलोगों के साथ रहने लगा तो माँ बेटी में भी वही बीमारी फैल गई। इस बीमारी से तो मैं तुम सबको निजात दिलाऊँगा। वैसे यह कसम तो कफ़न ने खाई थी कि हिंदुस्तान से देशभक्तों को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारेगा, पर अब लगता है उसका काम मुझे ही करना पड़ेगा। बहुत मजेदार है यह और शुरुआत मैं तिरंगा से करूँगा। फ़िलहाल एक ज़रूरी काम निपटाना है। उसके बाद तुझे मैं सारी कहानी बताता हूँ ताकि मरने से पहले तेरे मन में कोई सवाल ना रह जाये।
एक्स (ज्वाला की तरफ़ देखते हुए)- ज्वाला! वो दिल्ली-फ़रीदाबाद बॉर्डर पर RDX का कन्साइनमेंट आ रहा था। मैंने कुछ गुंडो को भेजा था पर वहाँ तिरंगा आ गया है। तुमको तो पता है वह कौन है? कुछ H.O.W. कमांडोज़ को लेकर जाओ और इस बार उसकी ईहलीला समाप्त कर के ही वापस आना।
ज्वाला- गद्दारों को तो मैं खुद भी माफ़ नहीं कर सकती एक्स। आज वह नहीं बचेगा।
कहकर ज्वाला अपने चिरपरिचित स्वरूप में मास्क लगाकर और बहुत से रसायनों के साथ निकल गई।
एक्स- हाँ तो शिखा। चेहरा तो मेरा तेरे भाई का है, पर हूँ मैं तेरा कसाई। सबसे पहले तो इससे मिलो। यह है कर्नल एक्स-रे। तुझे पता नहीं होगा क्योंकि यह बात तो अभय को भी हाल में पता चली है कि उसकी कभी ट्रेनिंग भी हुई थी। एक्स-स्क्वाड ने उसके बाग़ी हो जाने के बाद उसकी ट्रेनिंग और एक्स-स्क्वाड संबंधी मेमोरी पूरी तरह से इरेज़ कर दी थी। कुछ साल बाद फ़िर एक्स-स्क्वाड की आड़ में ये एक आतंकवादी संगठन के लिये कमांडोज़ भी तैयार करने लगे थे। जिन्हें तुमने तुम्हारे बेस पर अटैक करते देखा। जो अभी ज्वाला के साथ तिरंगा को ठिकाने लगाने गए हैं। H.O.W. उर्फ Hounds Of War, बहुत भयंकर ट्रेंड लड़ाकों का समूह, और तुझे पता है वो आतंकवादी संगठन का सरगना कौन है। (कहकर एक्स बहुत ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाने लगा पूरा अड्डा उसके ठहाकों से गूँज रहा था।)
दिल्ली-फ़रीदाबाद बॉर्डर-
तिरंगा वो ट्रांसमीटर फेंक कर वहाँ पड़े गुंडों की तलाशी ले ही रहा था कि अचानक से उसे एक खट् की आवाज़ सुनाई दी और उसे जोर से उछल कर पीछे हट जाना पड़ा। एकदम तेज़ एसिड की धार उसकी तरफ किसी गन नुमा हथियार से फेंकी गई थी।
तिरंगा- कितनी बार एक ही चाल चलेगी ज्वाला? अब तो बच-बचकर भी मैं बोर हो गया हूँ, लगता है केमिस्ट्री क्लास में बहुत अनुपस्थित रहती थी तू। एसिड छोड़ कर कुछ पता ही नहीं तुझे।
ज्वाला- पहले तो यह नाटक बंद कर कफ़न। ये तिरंगा के भेष में तू क्यों आया है पता नहीं। जो सुई उसे लगी थी उससे तो उसे दुनिया का कोई डॉक्टर नहीं बचा सकता और अब तेरे जैसे ग़द्दार को भी मौत मैं ही दूँगी। मगर उससे पहले ये तिरंगा का चोला उतार फेंक दे कफन और कफ़न बन कर लड़। देखती हूँ कौन-कौन से तीर बचे हैं तेरी तरकश में।
कफ़न- बात तो सही है तेरी। मेरे तरकश में अभी भी काफी तीर बचे हैं ही और वैसे भी ये ढाल मेरे काम की नहीं। बहुत बोझिल हो गयी है ये ढाल। थक गया हूँ मैं इसको ढोते ढोते, इसीलिए मेरी एरो-गन सही है तुझे मौत की नींद सुलाने के लिये।
दोनों हुँकारते हुए एक दूसरे पर उछल पड़े। कफ़न नज़दीकी द्वंदयुद्ध में ज्वाला से बहुत ऊपर था और उसका शारीरिक बल भी बहुत ज्यादा था और यह बात ज्वाला कुछ ही देर में समझ गयी थी क्योंकि कफ़न के एक ही पंच में ज्वाला जमीन सूँघ रही थी।
वह समझ गयी थी कि कफ़न से इस तरह पार पाना मुश्किल है पर वह हर ऐसी स्थिति के लिये तैयार होकर आयी थी। उसने तुरंत एक छोटी सी गन निकाली जो कि एक पाइप से होते हुए उसकी पीठ में लगे छोटे से टैंक से जुड़ी हुई थी। गन चलाते ही उससे छोटे छोटे चिपचिपे प्लास्टिक की गेंदे निकलनी लगी जो किसी भी चीज़ के संपर्क में आते ही फट जा रही थी और उससे सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल निकल रहा था। वह गेंदे जहाँ भी फट रही थी वहीं गड्ढा सा बन जा रहा था। कफ़न अपनी जबरदस्त एक्रोबेटिक चालों से हर गेंद से बचने की कोशिश कर रहा था। बहुत सी गेंदें उसके बहुत समीप फटी थी जिसके मात्र छिटकने से ही उसकी कॉस्ट्यूम में छेद हो जा रहे थे।
कफ़न- एसिड। फिर से एसिड। इन कुछ दिनों में इतना एसिड देख लिया कि और ज़िन्दगी भर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अरे ज्वाला! तेरे पास और कोई हथियार नहीं है क्या? इससे तो मैं जल जाऊँगा। मेरा चेहरा खराब हो जाएगा। मेरी तो शादी भी नहीं हुई है। तेरी कसम अब साँप भगाने के लिए भी एसिड प्रयोग नहीं करूँगा। एसिड मत मार मेरी माँ।
कफ़न बार बार यह देख रहा था कि एसिड के गोले ज्वाला की पीठ पर लगे पाइप के रास्ते ही आ रहे थे पर उसको बचने के चक्कर में मौका नहीं मिल पा रहा था। वह चाह कर भी वार नहीं कर पा रहा था। उसको कुछ सेकंड्स का वक्त चाहिए था ताकि एरो-गन पर एक तीर चढ़ा कर वार कर सके। उसने बचते बचते ही एक तीर हाथों से ही ज्वाला की तरफ़ फेंका। निशाना सही नहीं था पर वो तीर ज्वाला के पैर में जाके लगा। वो चीख उठी और इतने में ही कफ़न को वो मौका मिल गया था जिसकी उसे तलाश थी। उसने अपनी एरो-गन में एक तीर चढ़ाया। प्रत्यंचा खींची और एक सटीक निशाना ज्वाला के दाएँ कंधे को बेधता हुआ एसिड टैंक में लगे पाइप को छेद गया। उसकी गन अभी भी चल रही थी जिसके प्रेशर से पाइप से सांद्र सल्फ्यूरिक एसिड निकल कर ज्वाला के शरीर को कई जगह से जला गया और ज़ख़्मी कर गया। ज्वाला चीखते हुए ज़मीन पर गिर गयी।
कफ़न- ये तो वो कहावत चरितार्थ हो गयी। जिसका जूता उसी का सिर। तू तो अब ज़िन्दगी में एसिड गन नहीं चला पाएगी। ओह माफ करना। तू तो अब खुद भी चल नहीं पायेगी। चल तुझे इस ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी से मुक्ति दे देता हूँ।
कहकर कफ़न ने एरो-गन पर एक और तीर चढ़ाया। ज्वाला अभी भी चीख रही थी पर इससे पहले कि कफ़न उस पर हमला कर पाता, उसकी तरफ़ दर्जनों गोलियाँ चल पड़ीं। H.O.W. के कमांडोज़ आ चुके थे। कफ़न तिरंगा की ढाल उठाकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
कफ़न का गुप्त अड्डा-
तिरंगा की धड़कनें थम सी रही थी। उसके खून के सैम्पल्स पर लंबा शोध करने के बाद डॉक्टर साठे समझ चुका था कि यह कौन सा ज़हर है। वह जी जान से तिरंगा को बचाने में लगा हुआ था। उसने तिरंगा को एक एंटीवेनम डॉट दिया जिससे तिरंगा की धड़कन धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी पर यह पूर्ण इलाज नहीं था। तभी कफ़न हांफते हुए आया और आकर बैठ गया और एक साँस में एक लीटर पानी पी गया।
कफ़न- आज तो बाल बाल बचा साठे। आज तो कफ़न को कफ़न ओढ़ाने की पूरी तैयारी कर के आया था दुश्मन। आज तो मैं निपट ही लिया था। फिलहाल तू बता तिरंगा की क्या पोजीशन है?
साठे- तिरंगा की हालत ठीक नहीं है कफ़न। वह तो इसकी इच्छाशक्ति है जो यह अभी तक साँस ले रहा है। देख कफ़न तिरंगा को बचाने की एक कोशिश तो की जा सकती है। अगर मैं सही समझ रहा हूँ और मेरे इतने साल के अनुभव और इतने सारे टेस्ट झूठ नहीं बोल रहे तो तिरंगा को बचाने की कोशिश का भी शायद सिर्फ एकमात्र उपाय है।
कफ़न- और वह क्या है साठे?
साठे- इतना समय नहीं है कफ़न। बस जो कह रहा हूँ फ़िलहाल उतना करो और शीघ्र अतिशीघ्र करो। जितनी जल्दी हो सके एक मृत बैल का शरीर लेकर आओ। वह बैल एकदम ताज़ा मरा हुआ होना चाहिये।
पहले तो कफ़न का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया पर इस बार साठे भी भयंकर गुस्से में था। उसे हर हाल में देश के रक्षक देशभक्त डिटेक्टिव तिरंगा को बचाना था।
साठे (गुस्से में)- अगर तिरंगा को बचाना है तो यह एकमात्र उपाय है और अगर तुम जल्दी से जल्दी मृत बैल का शरीर लेकर नहीं आए तो तिरंगा कभी भी मर सकता है। मेरे पास समय नहीं है, ना ही तिरंगा के पास कि मैं तुम्हें कुछ भी समझा पाऊँ।
कफ़न- तेरा यह बड़बोलापन तो मैं देख लूँगा साठे। फिलहाल तो मैं जा रहा हूँ। तिरंगा की जान की कीमत मेरे अहम् से बहुत ज्यादा है पर वापस आकर मैं पूछूँगा जरूर कि आखिर यह क्या नाटक है!
यह कहकर पैर पटक कर कफ़न बाहर निकल गया।
दिल्ली हाई कोर्ट-
आज दिल्ली हाई कोर्ट के आसपास आम दिनों से कई गुना ज्यादा चहलपहल थी। हर जगह के लोगों से प्रांगण खचाखच भरा हुआ था। हर कोई भौंचक्का था। भारत के सारे छोटे से छोटे और बड़े से बड़े मीडिया वाले आज रात से ही हाई कोर्ट परिसर के बाहर डेरा जमाये हुये थे। मुख्यमंत्री जगदीश हेगड़े का काफ़िला पूरे दल बल के साथ अदालत परिसर में पहुँच चुका था। मीडिया वाले माइक और कैमरों के साथ उसके इंटरव्यू लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। मुख्यमंत्री की ज़ेड प्लस सेक्युरिटी के बॉडीगार्डों ने उसको घेर रखा था और किसी को भी उस तक पहुँचने नहीं दे रहे थे।
भीड़ में से अचानक ही गद्दार शब्द को चिल्लाता कोई सुनायी दिया और उसी के साथ चारों तरफ से सभी ग़द्दार देशद्रोही जैसे शब्दों के साथ चिल्लाने लगे और जूते चप्पलों और पत्थरों की बारिश होने लगी। बॉडीगार्डों ने किसी तरह मुख्यमंत्री जगदीश हेगड़े को अदालत के अंदर पहुँचाया। अदालत में सबको घुसने की इजाज़त नहीं थी। वहाँ सरकारी वकील के तौर पर सत्यप्रकाश पहले से ही मौजूद था। बचाव पक्ष में क्रिमिनल केसेस के सबसे मशहूर वकीलों में से एक आदित्य शर्मा था। उसने ज़िन्दगी में कभी कोई केस नहीं हारा था और उसकी कार्यप्रणाली बहुत ही ज्यादा घातक थी। विपक्ष चाहे सही हो या गलत, आम आदमी हो या वी.आई.पी., निर्दोष हो या गुनाहगार, वो उसको और उसके वकील को पूरी तरह से ध्वस्त कर देता था। लोग उसे वकालत का महा चाणक्य कहते थे। साम दाम दंड भेद कुछ भी लगा कर उसे अपना केस जीतना होता था। मुख्यमंत्री ने अंदर घुसते ही सत्यप्रकाश को ऐसी नज़रों से देखा मानो कह रहा हो, “तू बचेगा नहीं।”
तभी अदालत में जस्टिस दीपक बेसरा का आगमन हुआ। सभी लोग खड़े हो गये और उनके बैठने के बाद ही वापस अपनी कुर्सियाँ संभाली।
जज दीपक बेसरा- अदालत की कार्यवाही शुरू की जाए।
सत्यप्रकाश- थैंक्यू मिलॉर्ड। आज मैं अदालत में ऐसा केस पेश करने जा रहा हूँ जो किसी ने ना सोचा था ना शायद आगे सोचने की हिम्मत कर पाएगा। जज साहब, इंसान कई प्रवृत्तियों का होते हैं। कुछ अच्छे, कुछ बुरे, पर सबके ऊपर लगाम लगाने के लिए कानून होता है और उस कानून की रक्षा करने के लिए हमलोग रक्षक नियुक्त करते हैं। जो कानून की हिफाज़त करे, जनता की सेवा करे। मगर जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तो कोई क्या करे? क्या करे कोई जब कानून की रक्षा करने वाला ही कानून के साथ खिलवाड़ करने लगे? जब सत्ता की लालच में सरे आम क़त्लेआम करे? आज मैं एक ऐसे ही खूनी दहशतगर्द सत्ता के लालची इंसान के खिलाफ यहाँ इंसाफ माँगने आया हूँ, हर एक भारतीय के हिस्से का जवाब माँगने आया हूँ और मैं चाहता हूँ कि उसका गुनाह साबित होने के बाद उसे फाँसी की सज़ा मिले ताकि यह एक मिसाल बन जाये कि इस देश मे कानून से ऊपर कोई भी नहीं है।
आदित्य शर्मा (व्यंग्यात्मक शैली में)- अरे अरे थोड़ा थम जाइए सत्य प्रकाश जी। आपने तो पूरा फैसला ही सुना दिया। थोड़ा हमें भी कुछ कहने का मौका दीजिए। ऐसे तो हम लोग बेरोजगार ही हो जाएंगे।
पूरा अदालत परिसर ठहाके लगाने लगा।
आदित्य शर्मा- मीलॉर्ड! मेरे काबिल वक़ील, हम सबके प्रिय सत्यप्रकाश जी, यह भूल रहे हैं कि मुवक्किल कोई आम इंसान नहीं, एक दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। इन पर इतना बड़ा इल्ज़ाम पूरे सिस्टम के ख़िलाफ़ बहुत बड़ा सवाल है। ऐसा एक दाग कानून और सरकारी कार्यप्रणाली की धज्जियाँ उड़ा सकता है। तो अगर ये इल्ज़ाम लगा भी रहे हैं तो इनके पास कोई बहुत पुख़्ता सबूत हो तो ही लगाएँ। अन्यथा मैं अदालत से गुज़ारिश करूँगा कि अगर मेरे काबिल वकील कुछ साबित नहीं कर पाये तो उल्टा उनके ख़िलाफ़ ही एक इज़्ज़तदार मुख्यमंत्री के मानहानि के तहत सख़्त से सख़्त कार्यवाही की जाये।
सत्यप्रकाश- अरे शर्मा जी! पूरा देश जानता है कि सत्यप्रकाश कभी कोई केस नहीं हारा। इसका कारण जानते हैं? क्योंकि सत्यप्रकाश कभी किसी का झूठा केस नहीं लेता। मैं वकील से ज्यादा सच्चाई का पूजारी हूँ। अगर मैंने ये क्रिमिनल रिट किया है तो मुझे इसकी गंभीरता पता है। मीलॉर्ड! मैं आपके समक्ष कुछ दस्तावेज पेश करना चाहता हूँ। ये हमारे सम्माननीय मुख्यमंत्री श्री जगदीश हेगड़े को क्रिमिनल तो नहीं साबित करता परंतु उन्हें कटघरे में खड़ा करने के लिए पर्याप्त है।
जज दीपक बेसरा- इजाज़त है।
सत्यप्रकाश ने कुछ दस्तावेज आगे बढ़ाये जिसे जज के समक्ष रख दिया गया और जज साहब दस्तावेजों को बारीकी से देखने लगे। मुख्यमंत्री जगदीश हेगड़े आदित्य शर्मा की तरफ़ प्रश्नवाचक भाव से देख रहा था कि ये सब क्या है, कैसे दस्तावेज हैं। कुछ देर दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद जज साहब ने सत्यप्रकाश को कार्यवाही आगे बढ़ाने के लिए कहा।
सत्यप्रकाश- जज साहब! मैं आज से चार साल पहले की घटना का ज़िक्र करना चाहूँगा जब दिल्ली के भारतनगर नामक कस्बे में एक बहुत ही बड़ा दंगा हुआ था। जिसे उस समय देश की शान, देशभक्त डिटेक्टिव तिरंगा ने धूमिल कर दिया था परंतु उसके बावजूद भी सैंकड़ो लोग मारे गए थे। हज़ारों घायल हुये थे। कई सारे घर और दुकानें जल गई थीं। कई मासूम बेघर हो गये थे। बहुत सफाई से उस दंगे को वहाँ के लोकल गुंडे हब्शी पर थोप दिया गया था, जिसने तिरंगा के रोकने पर सायनाइड खा लिया था। दूसरे दिन तिरंगा की बड़ी बड़ी तस्वीरें न्यूज़पेपर वालों ने छाप दी थीं और दिल्ली, भारत और मानवता को एक नया नायक मिल गया था, लेकिन किसी ने उस दंगे को दूसरे सिरे से सोचने की कोशिश नहीं की। ये नहीं ध्यान दिया कि हो सकता है वह दंगा राजनीतिक फ़ायदे के लिये भड़काया गया हो? कोई ऐसा शख्स था जो सिस्टम के अंदर और अंडरवर्ल्ड के अंदर दोनों में गहरी पैठ बनाना चाहता था। उस दंगे को दिल्ली पुलिस का भी समर्थन हासिल था जिसमें कुछ पुलिस वाले भी दंगे में शामिल थे लेकिन इसी के बीच दिल्ली पुलिस का ही एक हवलदार था, रामनाथ देशपांडे, जिसे सच्चाई की भनक लगते ही वह पुलिस वालों से ही भिड़ गया था और उनके ख़िलाफ़ पुलिस कमिश्नर के पास जाने की धमकी दी थी। तब उन्ही पुलिसवालों ने मिलकर रामनाथ देशपांडे का जो हश्र किया वह रूह कंपाने वाला था। उन्होंने रामनाथ के दोनों हाथ काट दिए थे और साथ में जीभ भी काट दी थी। ताकि न वह किसी को कुछ बोल पाये और न लिख कर बता पाये और उसे वैसे ही तड़पता छोड़ दिया था। उन पुलिसवालों में उस दिन एक और कॉन्स्टेबल था जो डर कर कुछ भी नहीं बोल पाया था। आज वह एक इंस्पेक्टर है और आज वह चुप नहीं रहना चाहता है। मीलॉर्ड! मैं उसी इंस्पेक्टर धनुष को कटघरे में बुलाने की इजाज़त चाहता हूँ।
आदित्य शर्मा- आई ऑब्जेक्ट मीलॉर्ड। थाने में अगर कोई ऐसी घटना घटी भी थी और वह भी आज से चार साल पहले तो उसका इस केस से क्या ताल्लुक है? मेरे काबिल वकील सबको मुद्दे से भटका रहे हैं और अदालत का वक्त ज़ाया कर रहे हैं।
जज दीपक बेसरा- ऑब्जेक्शन ओवररुल्ड। सत्यप्रकाश जी आप इंस्पेक्टर धनुष को कटघरे में बुला सकते हैं।
इंस्पेक्टर धनुष को कटघरे में बुलाकर गीता पर हाथ रख कर कसम खिलायी गयी।
सत्यप्रकाश- तो इंस्पेक्टर धनुष। जो आपने अपने बयान में कहा है वही आप अदालत को बताने का कष्ट करें कि चार साल पहले क्या हुआ था?
इंस्पेक्टर धनुष- मीलॉर्ड! मेरा नाम इंस्पेक्टर धनुष है। वर्तमान में मैं थाने में इंस्पेक्टर विनय, हवलदार बाण और कई निडर और कर्तव्यनिष्ठ पुलिसवालों के साथ काम करता हूँ। यह बात चार साल पहले की है, तब मैं एकदम नया नया एकैडमी से ट्रेनिंग लेकर पुलिस फ़ोर्स में दाख़िल हुआ था और मेरी पहली पोस्टिंग भारतनगर पुलिस स्टेशन में ही हेड कॉन्स्टेबल के रूप में हुई थी। मुझे वह दिन आज भी बहुत अच्छी तरह से याद है। मैं एकदम डरा सहमा सा था। दंगे के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर हवलदार देशपांडे को अपने ही थाने में अपने ही लोग लात, घूसों, लाठी, डंडों और चेन से मार रहे थे। अपने ही थाने में उनकी जीभ और हाथ काट दिये गये। हम सबको पैसे खिला दिये गए थे और बहुत अच्छी तरह से डरा दिया गया था। सबको अपनी जान और अपने परिवार की चिंता थी। तब हम सब चुप रह गये और इतने बड़े गुनाह में गुनाहगारों का ही साथ दिया और जो ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ था उसके परिवार को उसके ही घर में जिंदा जला दिया गया। सालों चुप बैठा मैं जज साहब, पर आज चुप नहीं बैठूँगा। देशपाण्डे के बेटे अभय की आँखों के गुस्से और आँसू आज भी याद हैं मुझे, इतना कसमसाया हुआ, आक्रोशित और मजबूर चेहरा मैंने ज़िन्दगी में कभी नहीं देखा था। उस घटना के बाद मैंने बहुत से गुनाहगारों को पकड़ा, बहुत से मेडल्स मिले। हेड कॉन्स्टेबल से इंस्पेक्टर पद पर मेरी तरक्की भी हुई लेकिन उस रात जो पाप हुआ उसका भागीदार कहीं ना कहीं से मैं भी था। आखिर चुप रहकर पाप होते देखना भी पाप ही है और मैं उस पाप का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। अगर मैं आज भी अपने कर्तव्य पथ से हटा तो ना जाने कितने परिवारों को इंसाफ़ नहीं मिलेगा। मैं सारे प्रश्नों का उत्तर देने को तैयार हूँ।
इंस्पेक्टर धनुष की आँखों में प्रायश्चित के आँसू थे। अदालत में खामोशी छा गयी थी। सबके ज़ख्म हरे हो गये थे। इतने बड़े रहस्योद्घाटन से सब सकते में थे। सबको पता था कि तिरंगा ने उस दंगे को रोका था। कुछ लोकल गुंडों ने वो दंगा फैलाया था, पर उसमें पुलिस भी मिली हुई थी और इस बात ने सबको हिला दिया था। सत्यप्रकाश हर तरफ एक नजर मारने के बाद अपने स्थान पर आकर बैठ गया।
कुछ देर की खामोशी के बाद आदित्य शर्मा ने चुप्पी तोड़ी और अपनी कुर्सी से उठकर इंस्पेक्टर धनुष के सामने आ गया।
आदित्य शर्मा- तो इंस्पेक्टर धनुष जी! एक मनगढ़ंत कहानी सुना कर, खुद को रिश्वतखोर बता कर और अदालत को भावनाओं में बहाकर गुमराह करने के लिये बधाई।
इंस्पेक्टर धनुष- (गुस्से में) क्या बकवास कर रहे हैं आप?
आदित्य शर्मा- अरे तो और क्या कहूँ? आपकी बात का कोई सबूत है? कोई और गवाह जो आपके बयान को सच साबित कर सके? अगर नहीं है तो आपके बयान को गुमराह करना ही माना जायेगा ना।
इंस्पेक्टर धनुष- गवाह तो बहुत हैं वकील साहब, पर सबको अपनी जान, अपने परिवार और अपनी नौकरी की चिंता है। वैसे भी ये लोग यह क्यों कबूल करेंगे कि इन्होंने ही इतने ज़ालिम तरीके से अपने ही एक साथी की पूरी दुनिया तबाह कर दी थी? लेकिन मैं सब बोलने को तैयार हूँ। मुझे किसी बात का डर नहीं है। आप मेरे बयान को सच माने ना माने वो आपके ऊपर है। मेरा काम है गवाही देना वो मैं दे रहा हूँ।
आदित्य शर्मा- वाह आप तो पूरी तरह तैयार होकर आये हैं। चलिए सबसे पहले तो अगर आपकी बात सत्य भी है तो कुछ लोकल गुंडों और पुलिस की मदद से दंगे भड़काये गये और हवलदार रामनाथ देशपाण्डे को और उसके परिवार को खत्म कर दिया गया। मानना तो नहीं चाहता, लेकिन चलो मान भी लिए लेकिन इस बात का इस केस से क्या ताल्लुक है?
इंस्पेक्टर धनुष (मुस्कुराते हुये)- ताल्लुक तो है वकील साहब और बहुत गहरा ताल्लुक है। पिछले साल आपने शायद वो दिल दहलाने वाली ख़बर पढ़ी होगी या समाचार सुना होगा कि कैसे भूतपूर्व मंत्री त्रिपाठी और उनके बेटे राजा की बेरहमी से हत्या कर दी गयी थी? वो लोग देश छोड़ कर भाग रहे थे और प्लेन में चढ़ने से पहले ही उनको मौत के घाट उतार दिया गया था। उनको ग़द्दार साबित तो तिरंगा ने कर दिया था पर सज़ा मिलने से पहले वो फ़रार हो रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उन दोनों को किसी ऐसे आदमी ने मारा था जिसका पूरा शरीर तो इंसानी था मगर दोनों हाथ मशीनी थे और आवाज़ भी मशीनी थी। कुछ समझ में आ रहा है ऐसा इंसान कौन हो सकता है?
सबके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। पूरा अदालत परिसर ख़ुसूर फुसुर करने लगा। सबकी आँखें विस्फारित अंदाज़ में फैली हुई थी।
जज दीपक बेसरा- ऑर्डर! ऑर्डर! आप कहना क्या चाहते हैं हम समझ नहीं पा रहे हैं। क्या आप बता सकते हैं कि यह कैसे मुमकिन है?
इंस्पेक्टर धनुष- जज साहब! जब हवलदार देशपाण्डे को जीभ और दोनों हाथ काट कर दंगाइयों के बीच में हमारे ही डिपार्टमेंट के कुछ वीर सिपाहियों ने फेंक दिया था तो सबने उसे मरा हुआ समझ लिया था। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मंत्रीजी और उनके बेटे का कातिल वो मशीनी हाथों और ज़ुबान वाला हवलदार और कोई नहीं हवलदार रामनाथ देशपाण्डे ही है।
अदालत में एकदम से सन्नाटा छा गया।
कफ़न का अड्डा-
कफ़न- मैं आ गया साठे। बड़ी मुश्किल से गाड़ी में भरकर इस बैल को लाया हूँ। अब बता तू इसका क्या काम है?
डॉक्टर साठे ने कफ़न को देखते ही पहले तिरंगा के हाथों में बँधी बेल्ट खोली तो कफ़न चौंक गया।
कफ़न- अबे तू पागल हो गया है क्या! ऐसे तो ज़हर पूरे शरीर में फैल जाएगा।
साठे- हाँ वही तो करना है। इसके पूरे शरीर में ज़हर फैलने से ज़हर की सांद्रता कम हो जायेगी। अगर सिर्फ हाथ में रहता तो तिरंगा का हाथ काट कर फेंकना पड़ता। ये बहुत ज़रूरी है। अब उस बैल के मृत शरीर को ले आओ जल्दी।
कफ़न तेज़ी से गया और उस बैल के शरीर को खींचता हुआ ले आया। उसकी बाजुएँ फड़क रही थी। नसों का खिंचाव बता रहा था कि बैल कितना भारी था और साथ साथ ये भी बयाँ हो रहा था कि कफ़न के बाजुओं में कितनी शक्ति है। वो हाँफ रहा था। उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकल पा रही थी।
कफ़न (हाँफते हुए गुस्से में)- साठे। आज तक किसी अपने के लिए इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ी कफ़न को जितनी तूने मेरे सबसे बड़े दुश्मन के लिए करवा दी। एक बार तिरंगा ठीक हो जाये, तुझे तो मैं खुद व्यक्तिगत रूप से गोली मारूँगा।
डॉक्टर साठे- शांत हो जाओ कफ़न। तुम्हारा काम पूरा हुआ। अब बस मुझे थोड़ी मेहनत करनी है।
यह कहकर डॉक्टर साठे एक बड़ी धारदार चाकू और कटर से बैल के शरीर को पेट की तरफ से फाड़ने लगा। यह देखकर कफ़न को उबकाई आने लगी। साठे लगा रहा जब तक बैल के शरीर में एक लंबा चीरा न बन गया। फिर वो कफ़न की सहायता से तिरंगा के जिस्म को खींचकर किसी तरह बैल के चीरे हुए शरीर के अंदर डालने में सफल हुआ। बाहर से तिरंगा को मास्क के सहारे ऑक्सीजन दिया जा रहा था। कफ़न प्रश्नवाचक भाव से साठे की तरफ देख रहा था।
डॉक्टर साठे- मैं तुम्हारी भावनायें समझ पा रहा हूँ। अगर ये हद से ज्यादा जरूरी नहीं होता तो मैं करता ही नहीं। अब क्योंकि हमारे कुछ करने को बचा नहीं है तो मैं चीज़ें विस्तार से बताता हूँ। तिरंगा पर बहुत ही प्राचीन ज़हर कैंटारेला का प्रयोग किया गया है। यह देखने में तो एक सामान्य से सफेद पाउडर की तरह दिखता है परंतु बहुत ही घातक किस्म का विष है। सबसे पहले बोर्गिया में पन्द्रहवीं शताब्दी में इसका प्रयोग किया गया था। मैंने जब अपने सारे रिसर्च पेपर्स निकाले तो मुझे ये बात समझ आयी। इसके ऊपर किसी भी तरह की दवाई या विषनाशक बेअसर है। ये अगर ज्यादा डोज़ में दिया जाए तो इंसान तुरंत दम तोड़ देता है, परंतु अगर हल्का सा दिया जाए तो एक दो हफ्ते में धीरे धीरे तिल तिल कर मरता है। जो सुई तिरंगा के हाथों में लगी थी उसपर कम मात्रा में वो ज़हर लगा होगा क्योंकि बहुत ही दुर्लभ है इस ज़हर का पाया जाना और ऊपर से तिरंगा के धड़ वाले किसी स्थान पर न लग कर हाथ में लगा। यह भी हो सकता है कि सुई सही से न लगी हो क्योंकि तिरंगा की कॉस्ट्यूम भी एस्बेस्टस की है। इस कारण से यह इतने दिन टिक भी गया। अभी भी तिरंगा की साँसें चल रही है, वह इसी बात की गवाही देती है।
कफ़न- फिर इसका इलाज क्यों नहीं करता तू? ये क्या फालतू में इतने बड़े बैल को मरवा दिया मेरे हाथों?
डॉक्टर साठे- आज पाँच सौ सालों से ज्यादा बीत जाने के बाद भी कैंटारेला का कोई स्थायी इलाज़ नहीं मिल पाया है, परंतु एक उम्मीद तो है। एक बार इटली के पोप एलेग्जेंडर VI और उसके बेटे केसर बोर्गिया के वाइन में कैंटारेला मिला कर दे दिया गया था। तब एलेग्जेंडर तो तुरंत ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था लेकिन केसर युवा था तो तुरंत मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ था। तब उसको एक बड़े बैल के मृत शरीर में ऐसे ही रख दिया गया था। धीरे धीरे उसके शरीर का ज़हर उतरता चला गया और न सिर्फ वो पूरी तरह ठीक हो गया बल्कि वो पूरी तरह से एकदम नवजात शिशु की भाँति पूर्णतः नई कोशिकाओं के साथ और पहले से ज्यादा शक्तिशाली और ऊर्जावान होकर निकला। मैंने वही पद्धति तिरंगा पर भी आजमाई है। अब सब कुछ तिरंगा की इच्छाशक्ति और उसके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर निर्भर करता है। फिंगर्स क्रॉस्ड।
जापान- क्योटो सिटी
एक दिन पहले-
चारों तरफ घना कोहरा छाया हुआ था। हवाएँ साँय-साँय चल रही थीं। हर तरफ दरवाजे बंद पड़े थे। खिड़कियों के कपाट ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ कर रहे थे, मानो टूट कर अलग हो जाने को बेताब हों। दूर-दूर तक कहीं कोई पशु पक्षी भी नज़र नहीं आ रहे थे। एक लड़का बदहवास सा भागा जा रहा था। यही कोई 14-15 साल का लड़का होगा वह। उसके भागने का कोई कारण समझ में नहीं आ रहा था। इस कोहरे में कुछ नज़र भी तो नहीं आ रहा था। कहीं से कोई आवाज़ तक नहीं आ रही थी। या शायद आ रही थी?
दगड़! दगड़! दगड़! दगड़!
किसी घोड़े के दौड़ने की आवाज़ आ रही थी और उसपर सवार था एक ऐसा घुड़सवार जिसके होने मात्र के संदेह होने पर भी लोग भय से मृत्यु को प्राप्त हो जायें। डरावना बख्तरबंद पहने एक रोनिन था वह। कमर में लटकी हुई म्यान में कटाना तलवार, पीठ पर लदे हुए तरकश में वो 24 तीर और बायें हाथ में जकड़ा हुआ था एक धनुष, रेनबो। इस धनुष से निकला हुआ एक भी तीर अपने निशाने को चुकता नहीं था। उसके बारे में एक कहावत प्रचलित थी कि वो अपने किसी भी शिकार पर दूसरा वार नहीं करता था। कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। वह अगर आँख बंद कर के भी रेनबो से तीर चलाये तो वह तीर सीधा जाकर शिकार के हृदय को छेद करता था।
वह लड़का बचाओ-बचाओ चिल्लाते हुए भाग रहा था, मगर इतने तूफ़ान में किसी को सुनाई भी कैसे देता? या शायद सुनाई भी दे रहा हो तो कोई उसकी मदद को आना नहीं चाहता था।
उस रोनिन ने अपना घोड़ा रोका। अब तक वो लड़का करीब 200 मीटर की दूरी पर पहुँच गया था। घोड़े पर बैठे-बैठे ही उसने अपनी तरकश से एक तीर निकाल कर रेनबो की प्रत्यंचा पर चढ़ाया। उसके बाद उसने तीर को धीरे धीरे पीछे की तरफ खींचा। वह लड़का अब करीब 250 मीटर की दूरी पर पहुँच चुका था। उस रोनिन ने तीर कमान से छोड़ दिया, बेफिक्र होकर वह अब घोड़े को दूसरी तरफ मोड़ चुका था रोनिन को मोबाइल में कॉल आया है।
“ओसाको! यहाँ दिल्ली में तुम्हारी ज़रूरत है।”
“हम्म…”
बस इतना ही कह कर उसने फ़ोन काटा और घोड़ा दौड़ाते हुए आगे निकल गया। जैसे कि उसे फिक्र ही ना हो कि वह तीर अपने निशाने पर लगे या ना लगे या फिर वह निश्चित था कि तीर अपने निशाने पर ही लगेगा?
साँय साँय की आवाज़ करते हुए वह तीर गया और उस लड़के को बेधते हुये ज़मीन में धँस गया। लड़के ने एक आखिरी हिचकी ली और उसी के साथ उसके प्राण पखेरू उड़ गये। तभी उस रोनिन को मोबाइल में कॉल आता है।
“ओसाको! यहाँ दिल्ली में तुम्हारी ज़रूरत है।”, उधर से आवाज़ आयी।
“मैं कल पहली फ्लाइट से पहुँचता हूँ।”, कह कर उसने फ़ोन काटा और घोड़ा दौड़ाते हुए आगे निकल गया।
लद्दाख एक गुप्त जगह पर
बाहर का मौसम बहुत सुहावना था। चारों तरफ बर्फ से ढकी वादियाँ थी। चारों तरफ भिन्न-भिन्न प्रकार की चिड़ियों की चहक सुनाई दे रही थी। धुन्ध के कारण हाथ को हाथ सुझायी नहीं दे रहा था। एक मादा याक अपने बच्चे के साथ कहीं जा रही थी। उसके बच्चे को शायद भूख लगी थी और वह भोजन की तलाश में थी। इतने घने जंगलों में उसको भोजन की कमी तो नहीं थी। उसका प्यारा सा बच्चा कभी उसके आगे चला जाता था, तो कभी उसके पीछे चलता था, तो कभी उसके पैरों से लिपट जाता था। चलते चलते उसे एक बड़ा सा हिरण दिखाई दिया। दोनों माँ बेटे हिरण को देखने लगे और हिरण उनको देखने लगा। तभी मादा याक को पेड़ के ऊपर दो दहकती आँखें दिखाई दी और वह तेजी से अपने बच्चे के साथ भागने लगी। तभी ऊपर से कोई सीधा उस हिरण पर कूदा और अपने पैने नाखूनों से एक ही बार में हिरण को बीच से फाड़ दिया।
हवलदार को धीरे-धीरे होश आ रहा था। उसके अधखुली आँखों से उसने देखा कि एक शख़्स एक हिरण का शिकार हाथ में लिए उसकी तरफ बढ़ रहा है। वह एकदम से चौकन्ना हो गया, पर उसका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था। तभी उस शख़्स के मुँह से एक मधुर सी आवाज सुनाई दी-
“अंकल आप शांत हो जाइए। मैं दुश्मन नहीं हूँ।” यह कहकर विषनखा ने अपना मास्क उतारा।
हवलदार- ज्योति? तुम विषनखा हो? तो मानसी क्या थी?
ज्योति- विषनखा तो मानसी ही थी। उसकी मौत एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा थी और उसके बाद भारत को एक सहायक की बहुत ज्यादा जरूरत थी। हाँ! मुझे पता है भारत ही अभय उर्फ तिरंगा है। मैं उसकी सबसे अच्छी दोस्त हूँ और इस स्थिति में मैं उसको कभी अकेला नहीं छोड़ सकती थी। मगर वह मेरी मदद लेना स्वीकार कभी नहीं करता। ऐसे ही उसके अपनों पर मुसीबत पर मुसीबत आए जा रही है। ऐसे में वह मुझे मुसीबत में नहीं डाल सकता था। अचानक से ज्योति चुप हो गयी।
“आप थोड़ा आराम कीजिये। मैंने आपके चोटों पर दवा लगा दी है। ये पहाड़ी जड़ी बूटियाँ सामान्य दवाओं से बहुत ज्यादा कारगर हैं। ये बहुत शीघ्र आपको ठीक कर देंगी। मैंने हिरण का शिकार किया है। इन दवाओं के ऊपर वो खाने से आप जल्दी स्वस्थ हो जायेंगे।”
हवलदार ने लेटे-लेटे ही सहमति में सिर हिलाया। वह खुश था कि आज उसका अपना परिवार तो नहीं है पर अभय को इतने अच्छे दोस्त मिल गए हैं जो हर सुख-दुःख में साथ देते हैं।
ज्योति- अंकल! मैं वादा करती हूँ कि भारत को कुछ नहीं होगा पर उसके लिये शिखा को बचाना बहुत ज़रूरी है। दुश्मन उसके सहारे भारत उर्फ़ तिरंगा को खत्म करना चाहता है, पर मैं यह काम अकेले नहीं कर सकती। मुझे आपकी मदद की ज़रूरत पड़ेगी।
हवलदार(मशीनी आवाज़ में)- तुम चिंता मत करो बेटी। अपने परिवार और देश के लिये मुझे सौ बार भी मर-मिटना पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूँगा।
ज्योति- अंकल! मैंने शिखा की माँ को भी यहीं लाकर छुपा दिया है। आपके साथ ही उन्हें भी मैं छुपते-छुपाते यहाँ ले आयी थी। दिल्ली में कोई भी सुरक्षित जगह नहीं थी। दिल्ली तो क्या पूरे देश में हर जगह इनकी आँखें फैली हुई हैं। इस जगह के बारे में कभी कोई सोच भी नहीं सकता। मेरी प्रथम प्राथमिकता ही यही है कि आपलोगों को सुरक्षित रखूँ। तिरंगा का अगर परिवार सुरक्षित है तो वह पूरे देश को सुरक्षित रख सकता है। वैसे भी अब उसके साथ विषनखा भी है। पर सवाल यह है कि तिरंगा आखिर कहाँ और किस हाल में है?
तिरंगा का फ्लैशबैक:
इस सवाल का जवाब ज्योति को जल्दी ही मिलने वाला था। दो दिन बीत चुके थे। तिरंगा की हालत में थोड़ा थोड़ा सुधार आ रहा था। वह अभी भी उस बैल के मृत शरीर के अंदर पड़ा हुआ था। डॉक्टर साठे ने उसके बाएँ बाज़ू से एक ग्लूकोज की पाइपलाइन भी कनेक्ट कर दी थी। उस पाइपलाइन का सिरा तिरंगा के बाजू से होते हुये बाहर ग्लूकोज़ की बोतल से जुड़ा हुआ था। जिसे समय समय पर साठे बदल रहा था। कफ़न एक कोने में बैठ कर ये सारी गतिविधियाँ देख रहा था। वह बीच बीच में दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक ले रहा था। तिरंगा की इस स्थिति में आने के बाद अनजाने में ही वह दिल्ली का रक्षक सा बन गया था। वह बस अपने दुश्मनों को रोकने के पथ पर था, लेकिन वो दुश्मन केवल उसके ही नहीं अपितु तिरंगा के दुश्मन भी थे, देश के दुश्मन भी थे, इंसानियत के दुश्मन भी थे।
कफ़न को अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था। क्यों उसने अकेले ही तिरंगा को मारने की ना ठानी? क्यों अपने सबसे बड़े दुश्मन को मारने के लिये दूसरों का सहारा लिया? और उन लोगों ने उसके साथ ही गद्दारी की। ना वह ऐसा करता, ना ही वो लोग उस पर हमला करते, ना ही तिरंगा उसे बचाने के लिये बीच में आता और ना ही वह तिरंगा के कर्ज़ तले डूबता।
तिरंगा बीच बीच में तड़प उठता था। अचानक ही उसके मुँह से एक कराह निकली।
“मानसी!”
“मानसी!”
साठे की आँखें चौड़ी हो गयी।
वह चिल्लाया- कफ़न! कफ़न! तिरंगा के मुँह से कराह निकली। यह ठीक हो रहा है। धीरे-धीरे ठीक हो रहा है।
उसने मानसी वाली बात कफ़न से छुपा ली थी। तिरंगा के मस्तिष्क में अभी हलचल मची हुई थी। उसकी यादें अभी भी पीछा नहीं छोड़ रही थी। वो बार बार तड़प रहा था। साँसें अभी भी तेज़ थीं।
2 साल पहले- कनॉट प्लेस का एक कॉफी शॉप
मानसी- अभय! आने के लिये शुक्रिया। मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करवाया तुमने आज।
अभय (हँसते हुये)- अरे ज़िंदा भी तो रहना है मुझे। तुमको इंतजार करवा कर मुझे विषनखा से मार थोड़ी न खानी है। पता चला मेरे इतने खूबसूरत चेहरे को भी ना नोंच दे।
मानसी- शट अप। तुमको पता है ना मैं वह सब छोड़ चुकी हूँ। उस समय भैया के जाने के बाद मैं खुद को संभाल नहीं पायी थी अभय। मेरे मन में नफरत और बदले की भावना इतनी ज्यादा भर गई थी कि मुझे पता भी ना चला कि मैं गलत कर रही हूँ। आज भी जब उनकी याद आती है तो बहुत तकलीफ़ होती है। (मानसी रुआँसी हो गई थी।)
अभय उसका हाथ पकड़ कर टिशू पेपर से उसकी आँखें पोंछते हुये बोला- नाउ यु शट अप। तुम्हारा भाई एक बहुत ही अच्छा इंसान और उतना ही बड़ा देशभक्त भी था। ऐसे भाई की बहन होकर रोना शोभा नहीं देता तुमको और फिर तुम्हारे दोस्त हैं ना। शिखा भी है और…………. मैं भी हूँ।
मानसी उसकी आँखों में देखने लगी और अभय भी उसकी आँखों में देखने लगा। दोनों कुछ देर एक दूसरे को देखते रहे और अचानक से मानसी ने उसे किस कर लिया। अभय ने कोई विरोध नहीं किया अपितु हँस दिया। तभी दोनों का ध्यान आसपास के लोगों पर गया और दोनों झेंप गये। अभय बिल पे कर के मानसी के साथ बाहर निकल आया। दोनों रास्ते में हँसे जा रहे थे कॉफी शॉप वाली घटना को लेकर।
इधर तिरंगा के शरीर में फिर से हरकत हुई। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी थी। साठे सब कुछ पर ध्यान दे रहा था और भगवान से प्रार्थना भी कर रहा था।
2 साल पहले की वो सुहानी शाम अभय की ज़िंदगी में कितना बड़ा बवंडर लाने वाली थी, इसका किसी को कोई अंदेशा नहीं था। अभय और मानसी अभी कनॉट प्लेस के पास ही बातें करते हुये टहल रहे थे। तभी दोनों की नज़र आसमान पर पड़ी। वहाँ सुरक्षा चक्र रोशन हुआ था जिसका अर्थ था कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने किसी कठिन केस के सिलसिले में तिरंगा को बुलाया है। अभय ने मानसी की तरफ़ देखा।
मानसी- जाओ तुम। तुम्हारे फ़र्ज़ से ऊपर कुछ भी नहीं अभय। मैं आराम से घर चली जाऊँगी।
अभय (मानसी के गाल पर किस करते हुऐ)- थैंक यू मानसी। मैं जल्दी आने की कोशिश करूँगा। बहुत सी बातें अधूरी रह गयी हैं।
अभय भागता हुआ एक अँधेरी गली में घुस गया। अपनी कॉस्ट्यूम और मास्क लगाने के बाद और एसबेस्टस का एक बड़ा सा तिरंगा लबादा धारण करने के बाद अभय बन गया अपराधियों का काल- तिरंगा।
अभय वहाँ से रस्सी पर झूलता हुआ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ चला जिधर से सुरक्षा चक्र रोशन हुआ था। मानसी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। कनॉट प्लेस से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पास में ही था। तिरंगा थोड़ी ही देर में वहाँ पहुँच गया जहाँ उसका इंतज़ार कर रहा था-
कमिश्नर: तिरंगा यह दिल्ली में मौजूद ऐसी पाँचवीं घटना है जब विस्फोट के बाद वहाँ पर (X) का निशान पाया गया है।
तिरंगा: मैं जानता हूँ कमिश्नर साहब। मैं खुद कई दिनों से इस आतंकवादी ग्रुप की तलाश में हूँ और मेरी खोज ज़रूर रंग लायेगी।
दिल्ली में हो रही इन आतंकवादी विस्फोटों से सरकार की नींद तो उड़ी ही हुई थी लेकिन जिस तरीके से ये सक्रिय आतंकवादी ग्रुप प्लानिंग से विस्फोट कर रहे थे उसने भारतीय खुफिया एजेंसियों के भी नाक में दम कर दिया था।
तिरंगा उर्फ अभय भी दिन के उजाले और रात की कालिमा में इस ग्रुप की हरकतों पर कड़ी नजर रखे हुए था लेकिन अभी तक जो भी उसके हाथ आया तो केवल (X) का निशान….
ख्यालों में खोये तिरंगा को (X) का निशान एक चलती बस में दिखायी दिया और उसने बिना समय गंवाए बस की छत पर छलाँग लगा दी और ड्राइवर के सामने पहुँच गया।
तिरंगा- ड्राइवर गाड़ी रोको। इस बस में बम है। जल्दी से जल्दी सबको नीचे उतारो और बस से जितनी दूर हो सके उतनी दूर भागो। बातें करने का समय नहीं है।
ड्राइवर बस को खड़ी करके बस में बम है, बस में बम है, चिल्लाता हुआ भाग खड़ा हुआ।
तिरंगा- बस में रखा बम ना जाने कितनी देर में फटेगा?
जहाँ तिरंगा का ध्यान बस में रखे बम की तरफ था तो उसका ध्यान बम रखने वाले शख्स पर भी था जो बस के रुकने से कुछ देर पहले ही बस से बाहर निकला था और बिना समय गँवाए तिरंगी ढाल उस आदमी के पैरों से टकरा चुकी थी और आदमी नीचे गिर चुका था। जब तक वो आदमी सम्भलता तिरंगा उसके सामने पहुँच चुका था और तिरंगा की एक लात भी उसकी ठुड्डी से टकरा चुकी थी, जिससे सम्भलकर दनादन तिरंगा पर गोलियाँ चलाता वह आदमी, जो कि असल में RDX संगठन का मुखिया एक्स था, ना जाने कब खड़ी बस में घुस गया तिरंगा समझ भी नहीं पाया था।
इससे पहले की एक्स कोई हरकत कर पाता पुलिस ने फायर खोल दिया और ताबड़तोड़ फायरिंग चलाते समय चार गोलियाँ एक्स में सुराख बना चुकीं थी। मगर उसने बस को पुल से नीचे यमुना में गिरा दिया जहाँ बम से बस के परखच्चे उड़ चुके थे।
नई दिल्ली
इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा:
टोक्यो से आने वाली फ्लाइट में आज एक तूफान भी आ रहा था। हवाई जहाज़ के उतरने के बाद एक आदमी पारंपरिक काले जापानी वस्त्र में उतरा। उसकी दाढ़ी-मूँछें नहीं थी। चेहरे पर रौनक थी लेकिन वहीं आँखों में क्रूरता भरी थी। टर्मिनल 3 से निकलते ही उसने देखा एक आदमी ओसाको नाम का बोर्ड पकड़े खड़ा था। वह बिना कुछ बोले उसके साथ चल दिया। बाहर एक काले रंग की SUV खड़ी थी। ओसाको के साथ वाले आदमी ने ड्राइविंग सीट पकड़ी और ओसाको खुद पीछे बैठ गया। उसके पास बस एक लंबा से बैग था जिसमें उसकी रेनबो और कुछ तीर रखे हुये थे। एक स्पोर्ट्समैन के हिसाब से उसे भारत के अंदर लाया गया था। ड्राइवर ने टर्मिनल से बाहर निकलते ही गाड़ी को 100 की स्पीड पर बढ़ाया और कुछ ही देर में दिल्ली के मुख्य इलाके से बाहर निकल कर मानेसर इंडस्ट्रियल एरिया से थोड़ी दूर एक छोटे से घर के पास आकर रुका। उसने ओसाको को उतर कर अंदर जाने का इशारा किया। ओसाको के उतरते ही उसने गाड़ी फिर से तेज़ी से भगायी और उस इलाके से बाहर निकल गया। ओसाको उस घर में घुस गया जहाँ उसका इंतज़ार कर रहा था-
कर्नल एक्स-रे।
“आओ ओसाको। भारत में तुम्हारा स्वागत है।”
ओसाको- मुझे रोनिन बुलाओ। ओसाको की शख़्सियत ख़त्म हो चुकी है। अब मैं सिर्फ़ एक रोनिन हूँ, और ये स्वागत वगैरह में समय मत बर्बाद करो। काम की बात करो। मैं एक ही दिन में काम ख़त्म कर के निकलना चाहता हूँ।
कर्नल एक्स-रे: हाँ समझ गया। मैं तो पुराने दोस्त होने के नाते बस कह रहा था। समय तो हमारे पास भी नहीं है। पहले तो सिर्फ़ एक समस्या थी और वही हमारे पूरे मिशन के लिये सबसे बड़ी समस्या थी। और अब मेरा सबसे मजबूत प्यादा भी उसके साथ हो गया है।
एक्स-रे ने मार्बल के बने फर्श पर एक खास जगह पर पैर रखा और पास वाले कमरे के निचे से ज़मीन खिसकने लगी। यह एक्स-स्क्वाड का गुप्त अड्डा था। एक्स-रे और रोनिन सीढ़ियों से नीचे उतरते चले गये।
कर्नल एक्स-रे: रोनिन यह हमारी दिल्ली शाखा का मुख्य और गुप्त अड्डा है। पिछला अड्डा शहर के बीचों बीच था पर हमलोगों ने नई शाखा शहर से बाहर बना ली। हमलोग वो सामान्य आतंकियों की तरह मारने और मरने में विश्वास नहीं रखते। हमलोग सिर्फ मारने में विश्वास रखते हैं। आओ मैं पहले तुम्हें किसी से मिलवाता हूँ।
रोनिन अड्डे की अंदर की चकाचौंध से एकदम ठगा सा रह गया था। अंदर का क्षेत्र क़रीब 100 एकड़ का होगा। पूरा अड्डा अंडरग्राउंड था। हर तरह के आधुनिक हथियारों, टैंकों, मिसाइलों इत्यादि से पूरा बेस भरा हुआ था।
नई दिल्ली हाई कोर्ट:
इस रहस्योद्घाटन से सभी सकते में आ गये थे। इंस्पेक्टर धनुष कटघरे में खड़ा मुस्कुरा रहा था। दोनों पक्ष के वकीलों के मुँह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था। अब अदालत में कानाफूसी का दौर शुरू होने लगा था।
जज दीपक बेसरा- ऑर्डर! ऑर्डर! इंस्पेक्टर धनुष! आप यह बात इतने दृढ़ विश्वास के साथ कैसे कह सकते हैं? और अगर यह सत्य भी है तो उसका इस केस से क्या ताल्लुक?
इंस्पेक्टर धनुष- जज साहब! पुलिस को हवलदार देशपाण्डे की खोज में लगा दीजिये। वही आयेगा और बतायेगा कि कैसे पूरा सिस्टम मिला हुआ है? कैसे राजनीति में जीत हार का फैसला करने के लिये भारतनगर और वहाँ के मासूम नागरिकों को दंगे की आग में झोंक दिया गया था। कैसे आज के मुख्यमंत्री श्री जगदीश हेगड़े जी उस सबके कर्ताधर्ता थे?
“ख़ामोश”- मुख्यमंत्री उठ कर चिल्लाने लगा।
इंस्पेक्टर धनुष- मेरे पास आज हाथ में सबूत नहीं है वरना मैं आपको ख़ामोश करवा देता मुख्यमंत्री साहब। सबूत तो मिलेगा। मैं अब अपने आपको पूरी तरह से बस इस केस में और इसके लिये सबूत इकट्ठे करने में झोंक दूँगा। यही मेरे पापों का प्रायश्चित होगा और एक बात जज साहब। मुझे आज और अभी से ख़त्म करने की चेष्टा ज़रूर होगी। तो आप समझ ही गये हैं कि उसमें किसका हाथ होगा।
जज दीपक बेसरा- आदित्य जी! सत्य प्रकाश जी! आप लोगों में से किसी को कुछ पूछना है या कोई और गवाह या सबूत पेश करना है?
दोनों वकीलों ने जवाब में “नहीं योर ऑनर।” कहा।
जज दीपक बेसरा- फिर ठीक है। पहले तो सत्यप्रकाश जी आपकी बात लेते हैं। आपने किस बिनाह पर इतना बड़ा क्रिमिनल रिट किया? कोई पुख़्ता सबूत भी नहीं हैं आपके पास और गवाह के रूप में इंस्पेक्टर धनुष। जिन्होंने पूरी तरह भावनाओं में बह कर बयान दिया है और उस बयान को साबित करने के लिये भी कोई सबूत या गवाह नहीं है। इंस्पेक्टर धनुष एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस ऑफिसर हैं तो मैं उनके बयान की कद्र करते हुये पुलिस को हवलदार देशपाण्डे की खोज करने का हुक़्म देता हूँ। वहीं सत्यप्रकाश जी आपकी प्रतिष्ठा को मद्देनज़र रखते हुये मैं इस केस के लिये आगे की एक तारीख़ तय करता हूँ। अगर कोई पुख़्ता सबूत हैं तो उसे अदालत में पेश कीजियेगा। अब इस केस का फैसला फास्टट्रैक कोर्ट में होगा। जो आने वाले सोमवार को बैठेगा। इतने संवेदनशील केस को जल्द से जल्द निपटाना ज़रूरी है। अदालत बर्खाश्त की जाती है।
कफ़न का अड्डा:
तिरंगा का फ्लैशबैक:
शाम हो चुकी थी। डॉक्टर साठे तिरंगा के शरीर में हो रही हरकतों पर नज़र रखे हुये था। तिरंगा अभी भी अपने अवचेतन मस्तिष्क के जाल में फँसा हुआ था। वह अपनी ज़िंदगी में हुई उन यादों को टटोल रहा था जिससे वह बाहर आ चुका था। उन दर्दनाक यादों ने उसे झकझोर कर रख दिया था। इन घटनाओं ने तिरंगा को तो बचा लिया था पर अभय की पूरी ज़िंदगी ख़त्म हो गयी थी। उसका अस्तित्व, उसकी पहचान, उसका कैरियर सब उन घटनाओं के चक्रवात में फँस कर तबाह हो गया था।
पुलिस को शक था कि इस धमाके के साथ एक्स भी मारा जा चुका होगा। पर जब सवाल देश की सुरक्षा का हो तो तिरंगा कुछ भी हल्के में नहीं लेता। वह पुष्टि करने के लिये एक्स की खोज में निकल पड़ा। यमुना का विस्तार बहुत बड़ा है और इस हालत में एक्स का तैर कर इस पार से उस पार जाना बहुत मुश्किल था। इसीलिए तिरंगा ने इस किनारे तक ही खोज को जारी रखा। एक्स अब तक हाथ नहीं आया था, लेकिन तिरंगा की जासूसी पैनी नजरों से कब तक बच पाता?
आठ घण्टे बाद आखिर तिरंगा ने एक्स को ढूँढ निकाला। मगर एक्स खुद को पकड़े जाने देने के मूड में बिल्कुल नहीं था। इसी थोड़ी सी हाथापाई में पहले से घायल एक्स तिरंगा की ढाल से कोमा में चला गया लेकिन अपने पीछे छोड़ गया था बहुत सारे सवाल….
सवालों का तो तिरंगा ने पता लगा लिया था कि एक्स का प्लान क्या है और अगला धमाका कब होने वाला है?
मगर जो बाकी रह गया था वो था जवाब कि धमाका कहाँ होने वाला है और कौन कौन इस आतंकवादी गिरोह में शामिल है?
इसमें तिरंगा को मदद मिली मशहूर डॉक्टर रे की जिन्होंने अपनी अथक मेहनत के बाद अभय उर्फ तिरंगा की शक्ल को आतंकवादी एक्स की शक्ल में बदल दिया, जिससे आर डी एक्स ग्रुप का पता लगाया जा सके और ये भी जाना जा सके कि आखिर धमाका कहाँ होगा? तिरंगा के एक्स की शक्ल के पहने जाने के केवल तीन ही राजदार थे – डॉक्टर रे, दिल्ली पुलिस कमिश्नर और एक नर्स।
अब तिरंगा तैयार था मिशन को पूरा करने के लिए भारत माँ को एक बार फिर से आतंकवादियों के नापाक मंसूबों से बचाने के लिए और इसके लिए प्लान भी तैयार था। एक्स बना तिरंगा तैयार था बेड़ियों में जकड़ा पुलिस कस्टडी में और आर डी एक्स ग्रुप तैयार था उसे छुड़ाने के लिए।
जल्द ही अभय आर डी एक्स के गुप्त अड्डे पर था, जहाँ थोड़ी सी याददाश्त खोने की एक्टिंग, शरीर पर बनाये गए गोलियों के लगने के निशान के बारे में समाचार चैंनलों पर चलायी रिपोर्ट ने रास्ता आसान कर दिया था, जिससे कि वह वहाँ सेंध लगा सके। वह कामयाब भी हुआ और उनके नये ठिकाने सूरजकुण्ड का पता भी लगा चुका था। मात्र 21 घंटे बचे थे ब्लास्ट को रोकने के और तिरंगा ने किसी तरह मशक्कत कर के यह भी पता लगा लिया कि ब्लास्ट कहाँ होगा।
मगर भाग्य को कुछ और ही मंजूर था इधर एक्स अब होश में आ चुका था और नर्स को मारकर वो डॉक्टर रे के पास पहुँच चुका था, जहाँ माइक्रो बम की झूठी बात से डराकर खुद अब एक्स, अभय का चेहरा लगा कर बन चुका था अभय और साथ ही वह बन चुका था डॉक्टर रे का काल। डॉक्टर रे के बाद अब उसका अगला निशाना था-
कमिश्नर।
अभय बना एक्स कमिश्नर के पास पहुँच चुका था। कमिश्नर उसे देखते ही माजरा समझ गया लेकिन अब देर हो चुकी थी। अभय के हाथ कमिश्नर के गले पर कस चुके थे और एक तेज धारदार चाकू कमिश्नर के सीने में जगह बनाने को आतुर था लेकिन तिरंगा आ चुका था।
एक मुक्के के जबड़े पर पड़ते ही एक्स ये समझ चुका था कि तिरंगा से लड़ाई मुश्किल होने वाली थी।
या नहीं होने वाली थी?
खुद का चेहरा एक्स के ऊपर देखकर तिरंगा का मस्तिष्क हिल चुका था और जिसका फायदा उठाकर जहाँ एक्स ने पहले कमिश्नर के सीने में चाकू फेंक मारा था तो अचानक ही एक्स ने एक झटके से तिरंगा का मास्क हटा दिया और उसे दिखा एक्स का चेहरा यानी खुद का चेहरा।
अब एक्स भी जान चुका था कि अभय ही तिरंगा है। एक्स और तिरंगा की लड़ाई के बीच अचानक एक्स के एक ही प्रहार ने तिरंगा के होश छीन लिए और जब उसे होश आया तो छिन चुका था अभय से अपना नाम और अपनी पहचान और जो उसे सबसे अधिक प्रिय था- उसकी तिरंगी पोशाक।
अभय को जब होश आया तो दिखा कि उसके सामने कमिश्नर मरा पड़ा है, और सामने तिरंगा है, और साथ ही बंदूकधारी पुलिस वाले खड़े हैं। वह तुरंत ही सारा माजरा समझ गया कि उसके पास अब एक्स का चेहरा है और यह पुलिसवाले उसे आतंकवादी समझ रहे हैं जिसने कमिश्नर का कत्ल किया है। पुलिसवालों ने तुरंत ही फायर झोंक दिया था जिनसे बचते बचाते आखिर अभय वहाँ से भाग निकला।
लेकिन एक देशभक्त व्यक्ति खुद को कैसे दूर रखता जब उसे पता था कि दिल्ली में सौ साल से भी पुराने ऐतिहासिक यमुना पुल के नीचे RDX रखा गया है और उसको फटने से बचाना ही होगा। तिरंगा जो अब एक्स था, कूद चुका था इस RDX को डिफ्यूज करने।
मगर वहाँ तब तक आ गया था तिरंगा का रूप धारण किये एक्स।
तिरंगा और अभय के बीच गुत्थमगुत्था हो गयी जहाँ एक्स बना अभय RDX को डिफ्यूज करना चाहता था और तिरंगा बना एक्स RDX को फटने देना चाहता था।
दोनों लड़ते हुए यमुना में गिर चुके थे और यमुना में लड़ने के बाद असली तिरंगा बाहर आया जो बम को डिफ्यूज कर चुका था और बचा चुका था दिल्ली को। एक्स यमुना नदी में ही बह गया था और अपने साथ ले गया था अभय का चेहरा।
तिरंगा अपने घर में शीशे के सामने खड़ा था और उसकी नजर शीशे में पड़ी। वो इस युद्ध में बहुत कुछ खो चुका था अपनी पहचान, अपना नाम और सबसे जरूरी वो खो चुका था अपना-
तिरंगा- मेरा चे…..ह……रा।
अचानक तिरंगा उठ बैठा था। पसीने की बूँदें सैलाब बनकर उसके चेहरे से बह रहीं थी। साठे समझ नहीं पा रहा था कि वो क्या करे!
तिरंगा के चेहरे पर बहती पसीने की बूँदों के बीच आज कुछ और भी साफ साफ दिख रहा था तो वो था डर।
तिरंगा- एक्स! एक्स! एक्स है वो। ये सब कुछ एक्स का किया धरा है। उसने ही मानसी को मारा। ओह गॉड!
डॉक्टर साठे- तिरंगा! तिरंगा! तुम शांत हो जाओ। मैं डॉक्टर साठे हूँ। तुम कोमा में थे। तुम को ज़हर बुझी सुई लगी थी। तुमको कफ़न उठाकर यहाँ लाया था। मैंने ही तुम्हारा इलाज़ किया। अब बताओ बात क्या है?
तिरंगा- कफ़न! कफन! कफ़न कहाँ है डॉक्टर साहब?
डॉक्टर साठे- वह तो किसी के बुलावे पर आज कहीं जाने वाला था।
तिरंगा- डॉक्टर साहब! मैं निकल रहा हूँ। उसकी जान को ख़तरा है।
डॉक्टर साठे- अरे पर तुम तो अभी ठीक भी नहीं हुये।
तिरंगा- मैं ठीक हूँ डॉक्टर साहब। अब बस सब कुछ ठीक करना है।
देख चुका है जो सफर मौत से जिंदगी का,
कैसे रोकेगा कोई रास्ता इस मतवाले का।
हो चुका अब दुश्मनों का समय वतन छोड़ने का,
क्योंकि सिर घूम चुका है उसके इस रखवाले का।
तिरंगा निकल चुका था।
रोनिन बनाम कफ़न
रात के 11 बज रहे थे। सामान्यतः यह तिरंगा की गश्त का समय होता था। जब वह अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर पूरी दिल्ली के चक्कर काटता था पर आज तिरंगा मौत से जूझ रहा था। दिल्ली फिलहाल अनाथ थी। कुछ ईमानदार पुलिसवाले अभी भी अपना काम बख़ूबी निभा रहे थे लेकिन दिल्ली की छत और दिल्ली के रात के रक्षक दोनों ही गायब थे। तभी हर रात आपराधिक वारदातें बहुत ज्यादा बढ़ गयी थीं।
परन्तु आज कुछ भयंकर घटित होने वाला था। सामान्यतः चौबीसों घंटे रंगीन रहने वाले शहर में आज रात के 11 बजे ही बियावान सन्नाटा था। क्या निवासी, क्या अपराधी, क्या फुटपाथ पर सोने वाले भिखारी, क्या नाकों पर खड़े रह कर गाड़ियाँ चेक करने वाले पुलिसवाले, हर कोई घर में छुपा हुआ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोई कर्फ्यू लगा हो। दिन में ही हर जगह यह ख़बर सनसनी की तरह फैला दी गयी थी कि आज कोई बाहर नहीं निकलेगा अन्यथा अपनी भयानक मौत का जिम्मेदार वह खुद होगा, क्योंकि अपराधियों पर भी यह कर्फ्यू लागू हो रहा था इसीलिए पुलिसवालों ने भी छुट्टी मनाना ही बेहतर समझा था। उस दिन सुबह मीडिया के हर चैनल, हर अख़बार के द्वारा कफ़न को चैलेंज दिया गया था। इंडिया गेट के सामने ख़ाली स्थान पर रोनिन के ख़िलाफ़ अकेला लड़ने का चैलेंज और कफ़न चैलेंज से पीछे हटने वाला इंसान नहीं था।
आज भी हवायें साँय-साँय चल रही थीं। काले बादलों से घिरे आसमान में एक भी तारा नज़र नहीं आ रहा था। डॉक्टर साठे का जो डर था कि कोई भयंकर तूफ़ान आने वाला था वह शायद यही था। कफ़न तथाकथित स्थान यानी इंडिया गेट के पास पहुँच चुका था। तभी दूर से घोड़े की चापें सुनाई पड़ने लगी। दगड़-दगड़ कर के वह आवाज़ कफ़न के नज़दीक आते जा रही थी। घोड़ा दौड़ते-दौड़ते कफ़न के लगभग 20 फ़ीट दूर आकर रुका।
काले जापानी निन्जा के कपड़ों में वह प्रभावशाली आकृति किसी के भी होश फाख्ता कर देने के लिये काफ़ी थी। रोनिन ने अपना चेहरा ढक रखा था। उसके कन्धे पर रेनबो लदा हुआ था और तरकश में 24 तीर। कमर के पास पतली सी म्यान में कटाना नामक तलवार लगी हुई थी। कफ़न अंदर ही अंदर थोड़ा सहमा हुआ तो ज़रूर था पर वह अपने चेहरे से यह ज़ाहिर नहीं होने देना चाहता था।
कफ़न- तो आप हैं रोनिन साहब? कहिये क्या काम था इस नाचीज़ से? क्यों इतना पीछे पड़े हुये हैं मेरे कि पूरा मीडिया सिर्फ मुझे ही पुकार रहा है?
रोनिन- वैसे तो मैं कॉन्ट्रैक्ट किलर हूँ और कभी भी अपने कस्टमर का नाम नहीं बताता पर तुझे मारने का कॉन्ट्रैक्ट किसने दिया है यह तो तुमको पता ही है। अब तैयार हो जाओ।
कफ़न- हर कोई बस मेरे ही पीछे पड़ा है। ये तिरंगा रहता तो सब उसके पीछे पड़े रहते थे तो वही ठीक था। ज़िन्दगी हराम हो रखी है। कोई और नहीं दिखता तुम लोगों को?
रोनिन ने कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा। कफ़न भी समझ चुका था कि अब लड़ाई होनी ही है।
दोनों 10 10 कदम पीछे की ओर जाते हैं ताकि तीर चलाने में सूविधा हो सके, पर कफ़न ने कुछ पीछे जाते ही अचानक से रोनिन की तरफ एरो-गन से एक तीर चला दिया। रोनिन की पीठ अभी भी उसकी तरफ ही थी। वह तीर निसंदेह रोनिन के सिर में घुस कर उसका काम तमाम कर देता अगर उस तक पहुँच पाता तो! लेकिन कफ़न ने वह अविश्वसनीय दृश्य देखा। रोनिन की कटाना तेज़ी से चमकी और उसकी तरफ़ आते तीर को रास्ते में ही काट कर उसकी दिशा और संवेग दोनों ही बदल दिया। कफ़न हक्का-बक्का रह गया।
रोनिन- धोखेबाज़ तो तू हमेशा से है। इसके लिये मुझे सावधान किया गया था।
कफ़न- अब तुझे हराने के लिये और क्या करता, महान ओसाको?
रोनिन- तू मुझे जानता है? तब यह भी जानता होगा आज तक मेरा कोई शिकार मुझसे बचा नहीं है। तेरी मौत आज की रात ही होनी है। तू थोड़ी देर टिक सकता है पर बच नहीं सकता।
कफ़न- हाँ! हाँ! शेखी बाद में बघारना शेखचिल्ली। पहले लड़ ले मुझसे।
रोनिन कफ़न की बातें सुन कर और खूँखार हो उठा। उसने रेनबो निकाला और एक के बाद एक लगातार कई तीर कफ़न की तरफ़ झोंक दिये। कफ़न बहुत बढ़िया कलाबाज़ था पर इतने सारे तीरों से बचना उसके लिये भी बहुत मुश्किल था। एक तीर उसकी जाँघ को छील गया और एक तीर ने उसकी हाथ से एरो-गन छुड़ा दिया। वह नीचे गिर पड़ा था और मौत उसके बहुत नजदीक थी।
रोनिन- बस इतनी सी ही जान थी तेरी कफ़न? यह तीर देख। इसे जापानी में खोऊ (Kōu) कहते हैं अर्थात वर्षा। इस रेनबो से निकला यह रेनफॉल तेरे ज़िस्म से खून की वर्षा करा देगा। मेरा यह तीर आज तक बेकार नहीं गया है और इसे मैं तेरे जैसे शिकार के ऊपर ही प्रयोग में लाता हूँ।
इतना कह कर रोनिन ने वह तीर चला दिया। खोऊ सनसनाते हुये कफ़न की ओर बढ़ रहा था तभी तेज़ी से घूमती हुई एक ढाल आयी और खोऊ उससे टकराकर छिटक गया। रोनिन और कफ़न दोनों की विस्फारित नज़रें ढाल के आने को दिशा में घूम गयी। अँधेरे से एक प्रभावशाली आकृति सफेद वस्त्र और तिरंगे लबादे में धीरे-धीरे बाहर आयी।
रोनिन (चौंकते हुये)- तिरंगा! तू ज़िन्दा है? मुझे तो ख़बर दी गयी थी कि तू मर चुका है।
“जब जब इस देश की मिट्टी पर आई तेरे जैसी कोई बला है।
तब तब देश के इस सपूत ने हर बार मौत को छला है।”
तिरंगा अपनी चीर परिचित शैली में लहराते हुये आया और ढाल उठा कर कफ़न के सामने खड़ा हो गया। कफ़न ख़ुशी से चिल्ला उठा।
कफ़न- तुझे देख कर आज जितनी खुशी हुई ना तिरंगा मुझे, इतनी खुशी मुझे कभी मेरे बाप को भी देख कर नहीं हुई। अब चल इस निन्जा के बच्चे को बताते हैं कि बाप कौन है।
तिरंगा मुस्कुरा उठा।
तिरंगा- समझ नहीं आ रहा तू कैसा दुश्मन है। पहले मेरी जान बचाई और अब मुझे देख कर खुश हो रहा है। एक बात तो तय है कि इस रोनिन को अब हराना ही है और इसके हलक से सारी सच्चाई निकलवानी है। वैसे मैं समझ तो गया ही हूँ कि इन सबके पीछे कौन है। मेरी ट्रेनिंग की बातें मुझे इतने साल बाद याद नहीं आती तो मैं पहले ही दिमाग लगा लेता पर अब देर हो उससे पहले सब ठीक करना है क्योंकि मुझे समझ आ रहा है कि इस बार खतरा सिर्फ दिल्ली पर नहीं पूरे भारत पर मंडरा रहा है।
तिरंगा और कफ़न ने अपनी अपनी पोजीशन ले ली। तिरंगा के दाएँ हाथ में ढाल और बाएँ हाथ में न्याय दंड था और कफ़न के दाएँ हाथ में एरो-गन और बाएँ हाथ में अन्याय दंड था। सामने साक्षात मृत्यु के रूप में दुनिया का सबसे सफल कॉन्ट्रैक्ट किलर ओसाको उर्फ रोनिन था, जिसने एक साथ दो तीरों को हल्के कोण के अंतर से रेनबो की प्रत्यंचा पर चढ़ा लिया था। उसने तुरंत ही दोनों तीरों को एक साथ छोड़ दिया। कफ़न तुरंत ही अपनी जगह छोड़ चुका था जबकि तिरंगा न सिर्फ उछला बल्कि हवा में ही तिरंगी ढाल को पूरी शक्ति के साथ रोनिन पर चला दिया। मगर तिरंगा और कफन की आश्चर्य की सीमा ना रही क्योंकि रोनिन बिजली की तेज़ी से उसके रास्ते से हट गया और ढाल चकराती हुई वापस तिरंगा के हाथ में जा पहुँची।
तिरंगा- कफ़न इसे दूर से वार कर के हराना बहुत मुश्किल है। यह हमारे वारों को अपने पास भी फटकने नहीं दे रहा है। पास से हराने की एक कोशिश कर सकते हैं। हम दोनों की सम्मिलित शक्ति और फुर्ती का सामना यह शायद ना कर पाए।
कफ़न ने भी हाँ में सिर हिलाया। दोनों अपने अपने हथियार संभाल कर रोनिन की तरफ़ बढ़ते हैं। रोनिन भी एक सच्चे योद्धा की तरह रेनबो एक तरफ़ रख कर हाथ में कटाना लेकर लड़ाई की मुद्रा में खड़ा हो जाता है। तिरंगा और कफन को इसका अनुमान भी नहीं था कि वह दोनों कितनी बड़ी ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं। ओसाको एक असाधारण निन्जा था। एक तो धनुर्विद्या में वह श्रेष्ठतम में से एक था। दूसरा वह एक अद्भुत योद्धा था जिसे दुनिया की अधिकतर प्रकार की मार्शल आर्ट्स और प्राचीन युद्ध कलाओं में महारत हासिल थी।
कफन और तिरंगा जल्द ही रोनिन के सामने पहुँच गए थे, उन दोनों को आशा थी कि वो रोनिन को घुटने टेकने पर मजबूर कर देंगे किन्तु ऐसा होना संभव नहीं लग रहा था। तिरंगा ने अपनी ढाल से रोनिन के सिर पर प्रहार करने की कोशिश की तो उसी समय कफन ने अपने अन्याय दण्ड से रोनिन के पेट की तरह प्रहार करने की कोशिश की लेकिन अत्यंत आश्चर्यजनक रूप से रोनिन दोनों के प्रहार एक साथ ही बचा गया। कफन और तिरंगा हतप्रभ थे लेकिन अब दोनों ने साथ साथ ही लात घूँसों को चलाना शुरू कर दिया लेकिन एक भी प्रहार रोनिन को नहीं लग पाया। तिरंगा अपना न्याय दंड और ढाल चला चलाकर थक चुका था तो कफन की हालत भी कमोबेश ऐसी ही थी लेकिन रोनिन एक तरफ मुस्कुरा रहा था जैसी कि अब उसकी बारी है। अब उसकी कटाना भी तेज़ी से चल रही थी और हाथ पैर भी। तिरंगा की ढाल से वह कुछ वार तो बचा पा रहा था पर उसका भी कोई फ़ायदा नहीं था। रोनिन के बिजली से चलते हाथ पैरों ने तिरंगा और कफ़न दोनों को बुरी तरह लहुलुहान कर दिया था। उसका एक एक वार दोनों पर हथौड़े सी चोट कर रहा था। आख़िर में दोनों ख़ून की उबालें मारते हुये दूर जा गिरे।
कफ़न- तिरंगा! कैसे लड़ें इस शैतान से? इसे हराना या मारना तो दूर हमलोग इसे छू भी नहीं पा रहे हैं। सारी हेकड़ी और घमंड चकनाचूर कर दी है इसने।
तिरंगा: सुन! एक बार दूर से ही साथ वार करने की कोशिश करते हैं। और एक प्लान भी है मेरे पास।
तिरंगा ने ढाल को मजबूती से पकड़ा और कफ़न ने एरो-गन में तीर चढ़ाया और दोनों ने उछलते हुये रोनिन पर वार किया। इस किसी को एक चीज़ नहीं दिखी कि तिरंगा ने अपनी ढाल में एक बटन भी चुपके से दबा दिया था। तिरंगा की ढाल चकराते हुये जा रही थी और उधर कफ़न के एरो-गन से निकला तीर भी अपने लक्ष्य को बेधने के लिये तेज़ी से बढ़ रहा था। तब रोनिन की असली ताकत और फुर्ती देखने को मिली। तिरंगा और कफ़न वह दृश्य देख कर हतप्रभ रह गये। दोनों को जैसे दुनिया का सबसे बड़ा झटका लगा हो। रोनिन ने अपनी जगह से हिलने की कोशिश भी नहीं की थी। उसने तेज़ी से आती ढाल को अपने दायें हाथ में पकड़ लिया और अपनी तरफ बढ़ते तीर को रास्ते में ही अपने बायें हाथ से पकड़ लिया पर यहाँ एक चूक हो गयी थी। तिरंगा की ढाल के उस बटन ने कुछ सेकण्ड्स के अंतराल में नर्व गैस को सक्रिय कर दिया था जो ढाल में ही लगे कुछ कैप्सूलों में भरा हुआ था। नर्व गैस चारों तरफ फैल गई और रोनिन उसमें घिर गया। जब धुआँ छँटा तो एक और आश्चर्य तिरंगा का इंतज़ार कर रहा था। रोनिन ज्यों का त्यों खड़ा था। उसपर नर्व गैस का कोई असर नहीं हुआ था। उसने हाथों में अभी भी तिरंगा की ढाल और कफ़न का तीर पकड़ा हुआ था। उसने तीर को नीचे फेंका और दुगुने वेग से ढाल को घुमा कर तिरंगा और कफ़न की तरफ़ चला दिया। दोनों ही इस अप्रत्याशित वार से बच नहीं पाये। ढाल ने कैरम की गोटियों की तरह दोनों से टकराते हुये उनको उछाल फेंका। दोनों बुरी तरह ध्वस्त हो चुके थे। इस वार से दोनों की कई हड्डियाँ चटक गयी थी। गनीमत सिर्फ यही थी कि तिरंगा की ढाल अब वापस उसके हाथ में आ गयी थी।
कफ़न- (दर्द से कराहते हुये) अबे यह है क्या चीज़ यार? कोई कैसे लड़ेगा इससे?
तिरंगा (मुँह में भरे हुये खून को थूक कर)- सुन कफ़न। रोनिन कोई ज़िन्दा व्यक्ति नहीं है। नर्व गैस की इतनी अधिक मात्रा किसी भी इंसान को तुरंत बेहोश कर सकती है और नहीं भी बेहोश हुआ तो विचलित तो होगा ही। जबकि इसपर कोई भी असर नहीं हुआ। यह शक मुझे तब भी हुआ था जब हमलोग पास जा कर हाथ पैरों की लड़ाई कर रहे थे। इतनी लंबी लड़ाई में ना तो इसकी साँस तेज़ चली ना ही धड़कन की तेज़ी सुनाई पड़ी। यह जीवित ही नहीं है। अब तो इसे हराने का कोई रास्ता नहीं समझ आ रहा है। एक वार कर सकते हैं हमलोग पर इतना बड़ा वार मैंने आज तक किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं किया है, लेकिन आज इसके अलावा और कोई चारा नहीं दिख रहा है। अगर एक्स, CNN और एक्स-रे को रोकना है तो पहले तो हमें खुद बचना होगा।
कफ़न- CNN और कर्नल का तो मुझे भी पता है, पर यह एक्स का तुम्हें कैसे पता चला। वह आतंकवादी तो मर चुका था ना?
तिरंगा- नहीं कफ़न। वह घायल था और यमुना में बह ज़रूर गया था पर उसकी लाश कभी नहीं मिली थी। मुझे हमेशा से लगता था वह मरा नहीं है। मैं जब बेहोश था तो मेरे अवचेतन मस्तिष्क ने मुझे उससे संबंधित दृश्य ही दिखाये थे। तुम्हारी ज्वाला से पिछली मुठभेड़ में भी तुमने देखा था कि वह RDX का बड़ा कन्साइनमेंट तस्करी कर के ले जा रही थी। अब ऐसा कौन है जिसको RDX में इतनी दिलचस्पी है और जिसे मेरी पहचान और गुप्त रूप दोनों का पूरा ज्ञान है। इसमें CNN और एक्स-रे भी फिट बैठते हैं पर दोनों की ही मोडस ओपरेण्डी में RDX नहीं आता है। यह सब कुछ घुमा कर सुई को एक्स पर ले जाकर केंद्रित करती है और RDX का जितना बड़ा कन्साइनमेंट था उससे लगता है कि इस बार खतरा देश के कई बड़े शहरों में है। एक्स के स्लीपर सेल और CNN और एक्स-रे के कॉन्टैक्ट्स पूरे देश में फैले हैं। इनको रोकने का एक ही तरीका है कि जड़ को ही खत्म कर दिया जाये और उसके लिये हमारा इस रोनिन नाम की मौत से बचना बहुत ज़रूरी है।
यह कह कर तिरंगा ने हाथ देकर कफ़न को उठाया और उसने पास के ही एक बिजली के खंभे पर अपनी ढाल को अपनी रस्सी से एक ख़ास कोण पर बाँधना शुरू किया। वह ढाल को इस तरह से बाँध रहा था कि रोनिन का शरीर ढाल के मध्य भाग से सीधा नज़र आ रहा था। वह चाह रहा था कि रोनिन को थोड़ी देर बातों में उलझा ले पर उसका काम खुद रोनिन ने ही कर दिया।
रोनिन- अब तू क्या कर रहा है तिरंगा। बजाय मुझ पर हमला करने के तू उलजुलूल हरकतों पर उतर आया है। चल तुझे मैं थोड़ा अपने बारे में बताता हूँ। मेरे गुरु का नाम शूरींन था। दुनिया का ऐसा ऐसा कोई फाइटिंग स्टाइल नहीं बना जिसके वह महारथी नहीं थे। मैं उनका सबसे अच्छा शिष्य था। उनके प्रशिक्षण के अंदर मैं जापान का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का सबसे ख़तरनाक सामुराई बनने में कामयाब हो गया था, लेकिन एक षड्यंत्र के तहत हमारे पूरे टेम्पल को तबाह कर दिया गया। हर कोई मृत्यु का ग्रास बन गया था, मैं भी मृत्यु के कगार पर था। तभी उन्होंने मरते मरते भी मुझे वरदान दे दिया कि मैं जीवित रहूँगा और मेरी मृत्यु सिर्फ़ तभी हो सकेगी जब मुझे कोई हरा दे और मैं स्वयं के प्राण हर लूँ, ख़ुद के पेट में खंज़र घोंप कर। जापान में इसे हारा-किरी कहते हैं। मैंने हमारे टेम्पल और अपने गुरु का बदला लिया पर बिना किसी गुरु के मैं सामुराई नहीं रहा। मैं बन गया था एक रोनिन। दुनिया का सबसे खतरनाक कॉन्ट्रैक्ट किलर। मेरे गुरु के आशीर्वाद से आज तक मुझे कोई हरा नहीं पाया है। आज भी तुम दोनों मेरे हाथों से मरोगे।
तिरंगा- थैंक यू। थैंक यू वेरी मच्। तुझे पता नहीं रोनिन तूने मेरे दिल से कितना बड़ा बोझ हल्का कर दिया है। मैं अब तक तुझ पर बड़ा वार करने से हिचकिचा रहा था। समझ तो मुझे आ गया था कि तू जीवित नहीं है पर तूने उस बात की पुष्टि कर के मुझे पूरी तरह से दुविधा से बाहर कर दिया है। तुझे मारा नहीं जा सकता पर हराया तो जा सकता है ना? (चिल्लाते हुये) कफ़न! अटैक……..।
रोनिन के कुछ समझ पाने से पहले ही तिरंगा और कफ़न दोनों अपने अपने न्याय दंड और अन्याय दंड लेकर हवा में ज़ोर से उछले और जब गिरे तो दोनों के दंड ज़मीन में गड़ गये और एक से पुण्य ऊर्जा और दूसरे से पाप ऊर्जा की लहरें चिंगारी छोड़ते हुये निकल कर खंभे पर बंधे तिरंगी ढाल से टकराई और उनकी सम्मिलित भीषण शक्ति एक मिश्रित एनर्जी बीम के रूप में ढाल से परावर्तित होकर रोनिन के सीने से टकराई। रोनिन उड़ता हुआ लगभग 100 फ़ीट दूर जा गिरा पर उड़ते हुये भी उसने रेनबो की प्रत्यंचा पर एक तीर चढ़ा कर छोड़ दिया था। वह तीर कफ़न के बायें कंधे को बेधता हुआ पार चला गया था और वह चीख़ते हुये वहीं गिर पड़ा। इधर रोनिन का शरीर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। उसके सीने में एक बड़ा सा छेद करते हुये एनर्जी बीम पीछे की एक दीवार को भी क्षतिग्रस्त कर गयी। रोनिन मुँह से खून उगलते हुये ज़मीन पर गिर पड़ा। उसके शरीर का कोई भाग नहीं बचा था जो सही सलामत हो। वह खून उगलते हुये भी कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था। तिरंगा उसके पास जाकर बैठ गया। तभी वातावरण में कई सारे हेलिकॉप्टर्स की आवाज़ सुनाई देने लगी। सभी विचलित हो उठे। कुछ ही मिनटों में वह इलाका दुश्मनों से भर जाने वाला था। रोनिन फिर भी हिम्मत कर के बोल उठा।
रोनिन- आज तक ओसाको की यह दुर्गति कोई नहीं कर पाया है। आज तक मैंने कोई लड़ाई नहीं हारी थी पर आज मैं तुझसे हार गया। शायद इसलिये कि तू अच्छाई के साथ है और मैं बुराई का साथ दे रहा था। मेरी ज़िंदगी का अब कोई मकसद नहीं रहा। अब यह शरीर मैं छोड़ कर मुक्त होना चाहता हूँ पर मैं तुझे अंधेरे में नहीं रखूँगा। आज सब कुछ बता दूँगा। तूने यह अर्जित किया है। ज़्यादा समय नहीं है तेरे पास।
रोनिन ने तिरंगा को एक्स और उसकी प्लानिंग की पूरी जानकारी दी। एक्स-स्क्वाड के वेयरहाउस, हथियारों और टैंकों का ज़खीरा हर कुछ बताते चला गया। उसके बाद उसने अपने पैर से बँधा एक खंजर निकाला और अपने पेट में घोंप लिया। एक रोनिन ने हारा-किरी द्वारा मृत्यु प्राप्त कर ली थी। उसका शरीर वहाँ रहा नहीं। वह धुएँ में बदल कर वातावरण में विलीन हो गया। तिरंगा कुछ देर के लिये ठगा सा रह गया। हेलिकॉप्टर्स एकदम पास आ गये थे और जैसे वह सोते से जागा। उसका ध्यान कफ़न पर गया। उसके कंधे से पूरा खून निकल रहा था और वह हिलने की भी हालत में नहीं था। तिरंगा ने पहले खंभे से बँधी ढाल को उतारा। फिर वह कफ़न के पास गया और उसे उठाकर उसने अपने कंधे पर लादा। तिरंगा भी चोट खाया हुआ था पर जैसे कि डॉक्टर साठे ने कहा था, वह एकदम पुनर्जीवित होकर पूरी तरह ऊर्जावान महसूस कर रहा था। थकावट नहीं थी उसके अंदर।
तिरंगा कफ़न को को कन्धे पर लादकर भागने लगा। इधर घटनास्थल पर 3 हेलिकॉप्टर्स उतरे जिसमें से हथियारों से लैस बहुत सारे H.O.W. कमांडोज़ बाहर आये। उन्होंने चारों तरफ़ निरीक्षण किया पर कोई दिखा नहीं। तिरंगा कफ़न को उठा कर भी बहुत तेज़ी से भाग रहा था। उसे पता था कि चारों तरफ से H.O.W. कमांडोज़ उन्हें कुत्ते की तरह ढूँढ रहे थे। कफ़न के शरीर से खून बहे जा रहा था। तिरंगा उसे उठा कर एक पुराने खंडहर में ले आया। अब कफ़न पर बेहोशी छा रही थी। कफ़न का खून बहना रोकना सबसे ज़रूरी था। तिरंगा ने आसपास नज़र दौड़ाया पर कुछ भी नहीं दिखा। फिर उसने अपनी यूटिलिटी बेल्ट को टटोला तो कुछ छोटे चाकू और सिग्नल फ्लेयर ही बचे थे। तिरंगा ने यूटिलिटी बेल्ट से सिग्नल फ्लेयर निकाला जिसकी मदद से वह पुलिस को बुलाता था लेकिन आज पुलिस बुलाने का कोई मतलब नहीं था। आज अगर वह फ्लेयर छोड़ देता तो जब तक पुलिस आती तब तक आधुनिक हथियारों से लैस H.O.W. कमांडोज़ उन्हें ज़िंदा नहीं छोड़ते। अब तक कफ़न बेहोशी के आग़ोश में चला गया था। यह बात तिरंगा के लिये अच्छी भी थी और बुरी भी। बुरी इसलिये के अगर अभी उन्हें कमांडोज़ ने ढूँढ लिया तो तिरंगा को उन सबका सामना अकेले करना पड़ेगा और अच्छी बात यह थी कि तिरंगा अभी जो कफ़न के साथ करने वाला था उसके लिये उसका बेहोश रहना ही बेहतर था। उसने उस खंडहर में ही सिग्नल फ्लेयर जलाया और भड़कती हुई लपट को कफ़न के घाव पर दाग दिया। कंधे के सामने से घाव को सही ढंग से जलाने के बाद उसने कंधे के पीछे से कफ़न के घाव को जलाना शुरू किया। इस असहनीय पीड़ा से कफ़न की बेहोशी टूट गयी और वह ज़ोर से चिल्लाया। तिरंगा ने तुरंत उसके मुँह पर हाथ रख दिया मगर तब तक इस चीख ने आसपास घूमते कमांडोज़ को अलर्ट कर दिया। तिरंगा समझ चुका था कि गड़बड़ हो चुकी है। उसने कफ़न को वहीं एक दीवार के पीछे छुपा दिया और खुद एक दीवार के ऊपर चढ़ कर इंतज़ार करने लगा। 3 कमांडोज़ धीरे धीरे बंदूकें ताने हुए आये। बन्दूकों में फ़्लैशलाइट लगी हुई थी जिससे कमरे का अंधेरा काफ़ी कम हो गया था।
कमांडो 1: वो दोनों यहीं छुपे हुये हैं और दोनों बहुत ज्यादा ख़तरनाक हैं। बैकअप टीम आ रही है तब तक इनका सामना हम तीनों को ही करना है। तीनों एक ग्रुप बना कर इस तरह से चलो कि चारों तरफ़ नज़रें जाये। फ्लैशलाइट का सहारा लो और ट्रिगर पर उंगलियाँ मजबूत कर लो। वो दोनों बचने ना पायें।
तीनों कमांडोज़ की पीठ एक दूसरे से सटी हुई थी ताकि हर तरफ़ उनकी नज़रें जाये और कोई भी हरकत दिखते ही उनकी बंदूकों से बेहिसाब गोलियाँ बरसे लेकिन खतरा तो उनके ऊपर मंडरा रहा था। तिरंगा ने ऊपर से ही तेज़ी से अपनी तिरंगी ढाल फेंकी और खुद एक कमांडो के ऊपर कूद गया। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, घूमती हुई ढाल ने एक कमांडो के हाथ से बंदूक छुड़ा दी और तिरंगा जिसके ऊपर कूदा था उसके गर्दन को दोनों पैरों से जकड़ कर अपने दोनों हाथ ज़मीन पर रख कर सोमरसॉल्ट मारा जिससे वह कमांडो उड़ते हुये सामने वाली दीवार से टकराया और उसके हाथ से बंदूक छिटक गयी और साथ में उसका हेलमेट भी खुल गया। अब तक तीसरा कमांडो सावधान हो गया था और उसने तुरंत ही तिरंगा की तरफ़ अपनी लाइट मशीन गन का मुँह खोल दिया। इस बंदूक से एक राउंड में ही 200 गोलियाँ निकलती थी और गोलियों की चेन बंदूक के साथ ही लटक रही थी मगर तब तक तिरंगा की ढाल सरसराते हुये उसके हाथ में आ चुकी थी और वह ढाल को अपना कवच बना कर दूसरी तरफ़ कूद गया। अभी भी गोलियों का चलना बंद नहीं हुआ था। बड़ी साइज की गोलियां दीवारों में छेद कर रही थी। तभी उस कमांडो के पीछे से एक सरसराता हुआ तीर आया और उसके हेलमेट को छेद करते हुए उसकी खोपड़ी में घुस गया। उसके हाथ अभी भी बंदूक की ट्रिगर पर थे। वह वहीं गिर कर शांत हो गया पर गोलियों का चलना तभी बंद हुआ जब वो मैगज़ीन खत्म हुई। कफ़न हरकत में आ चुका था, अभी भी उसका शरीर कमज़ोर था और अब बाकी दोनों कमांडोज़ भी हरकत में आ गए थे। वो दोनों खाली हाथ ही तिरंगा से भिड़ गये। बंदूकों की फ्लैशलाइट के कारण अभी भी हल्की हल्की रोशनी थी। तिरंगा अपनी ढाल की सहायता से दोनों से लड़ रहा था। उसने एक कमांडो को उछलते हुये ड्रॉप किक मारा और अपने हाथ में थमे ढाल से दूसरे कमांडो के सिर पर मार कर उसका भी हेलमेट उससे जुदा कर दिया। हथियारों और हेलमेट के अलग हो जाने के बाद मुकाबला लगभग बराबरी का था। यह कमांडोज़ भी उसी एक्स-रे और एक्स-स्क्वाड के द्वारा ट्रेन हुये थे जिन्होंने कभी अभय को ट्रेनिंग दी थी। आज लड़ाई का नतीजा इससे नहीं निकलने वाला था कि किसको किसने सिखाया है, बल्कि इससे निकलने वाला था कि किसने कितना सीखा है।
फैसला हुआ और नतीजा ये निकला कि दोनों कमांडोज़ धरती पर बेहोश पड़े थे तिरंगा की ड्रेस कई जगह से फट चुकी थी। वह बुरी तरफ हाँफ रहा था, जगह-जगह कट लगने की वजह से खून भी निकल रहा था, लेकिन देश का वह सच्चा सपूत अपने पैरों पर खड़ा था बल्कि खड़ा ही नहीं लड़ने को तैयार भी था।
कफ़न- तू जा तिरंगा। बाकी कमांडोज़ को मैं देखता हूँ। मेरी एरो-गन और यहाँ पड़ी बंदूकें काफी हैं उनको रोकने के लिये।
तिरंगा- तू अपना मुँह बंद रख। हम दोनों यहाँ से जिंदा ही जायेंगे। तेरी ज़रूरत है अभी मुझे और जब तक मुझे तेरी ज़रूरत है, तुझे साक्षात यमराज भी नहीं ले जा सकते। अभी तू चुप कर मुझे ध्यान देने दे। तुझे कहीं से पानी बहने की आवाज़ सुनाई दे रही है? जैसे कोई बहुत बड़ा नाला हो? हो न हो, इस खंडहर के नीचे से एक नाला गुज़रता है और कोई निकासी तो होगी ही तभी आवाज़ इतनी साफ सुनाई दे रही है। तुझे और किसी को मारने की ज़रूरत नहीं है। ये कानून के मुज़रिम हैं और इनकी सज़ा भी कानून तय करेगा।
कफ़न- तेरा दिमाग फिर गया है तिरंगा। इनकी जड़ कहाँ तक है तुझे अभी तक नहीं समझ आया? इनको 1 घंटे नहीं लगेंगे लॉकअप से छूटने में। केस तो कभी बनेगा ही नहीं। वैसे भी ये आतंकवादी हैं वो भी हाइली ट्रेंड। इनको मौका देना अपनी मौत बुलाना है। 3 कमांडोज़ से भिड़ने में तेरी ये हालत हो गई। ऐसे दर्ज़नों पड़े हैं।
तिरंगा- समझ तो मुझे भी आ गया कि ये आतंकवादी हैं। जब मैंने एक एक घटना पर नज़र डाली तो मुझे समझ आ गया कि ये सब किसने शुरू किया है और इसे कैसे खत्म करना है इसलिये ही मुझे तेरी ज़रूरत भी है।
तिरंगा पानी बहने की आवाज़ की दिशा में बढ़ता जा रहा था। इधर कफ़न ने अपनी एरो-गन लोड की और एक कमांडो की लाइट मशीन गन भी उठा ली जिसमें पूरी मैगज़ीन भरी पड़ी थी। तिरंगा को निकास दिख गया था। वह एक मैनहोल था जिस पर ताला लगा हुआ था। तिरंगा ने ढाल के एक ही वार से ताले के टुकड़े कर दिये और वह मैनहोल उठाने लगा। तिरंगा की बाजुएं फड़क उठी। वह पुराना मैनहोल था इसलिये खोलने में इतनी परेशानी हो रही थी। इधर खंडहर के चारों तरफ से H.O.W. कमांडोज़ की आवाज़ें आ रही थी और साथ में कुछ हेलिकॉप्टर्स की भी। वो सारे कमांडोज़ हेलीकॉप्टर से रस्सी के सहारे उतर रहे थे और खंडहर को चारों तरफ़ से घेर रहे थे। अब तक तिरंगा ने कफ़न को अपने कंधे पर इस तरह से लाद लिया कि उसका चेहरा पीछे की तरफ़ हो ताकि कोई खतरा आने पर वो पीछे से संभाल सके और खुद ढाल को अपनी छाती पर बाँध कर धीरे धीरे मैनहोल में उतरने लगा। वह थोड़ा बड़ा मैनहोल था जिससे पहले कफ़न को धीरे धीरे नीचे उतारने में आसानी हुई। फिर वह खुद भी नीचे उतर गया और कफ़न को फिर से कन्धे पर लाद लिया। इतना भारी इंसान कंधे पर लदे होने के बाद भी तिरंगा किसी धावक की तरह भाग रहा था। डॉक्टर साठे ने सही कहा था कि ठीक होने के बाद एकदम नए शिशु की तरह ऊर्जा और स्फूर्ति आ जायेगी। इधर कुछ कमांडोज़ उनके पीछे पीछे मैनहोल में उतर गए थे जिनको कफ़न की लगातार फायरिंग ने सीढ़ियों पर ही धराशाई कर दिया। तिरंगा ने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा। किसी को मारना उसके उसूलों के ख़िलाफ़ था पर इनको ज़िंदा छोड़ना भी मानवता के ख़िलाफ़ था। उसने नज़रें फिरा लेने में ही भलाई समझी और कफ़न को लेकर भागते हुये उसके गुप्त अड्डे पर पहुँचा। सुबह हो गयी थी और चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
लद्दाख़: ज्योति का गुप्त अड्डा
ज्योति- अंकल उठिए। सुबह हो गयी है। अब तो आंटी भी उठ गई है। ये लीजिये चाय पी लीजिये।
हवलदार(ऊंघते हुये)- हाँ बेटा उठ रहा हूँ। बस थोड़ी थकान थी और कई दिनों की नींद की कमी थी। बस आँख थोड़ी ज्यादा लग गयी।
शिखा की माँ- नमस्ते भाई साहब। मैं शिखा की माँ हूँ और अभय भी मेरा बेटा है अब। बहुत होनहार बच्चा है। जब वह मिला था तो उसका परिवार ख़त्म हो गया था। तब धीरे-धीरे उसके ज़ख्मों को मैंने और शिखा ने हल्का करने की कोशिश की। वह धीरे-धीरे बाहर तो आ गया, पर दिल के कुछ ज़ख्म कभी ख़त्म नहीं होते। वह हर दिन आप लोगों को याद करता है उसकी दुआओं का ही असर है कि आज उसको आप मिल गये। अब सब ठीक होगा। मेरा बेटा जहाँ भी है, मुझे पता है वह ठीक होगा और अपने परिवार और देश के प्रति सारी ज़िम्मेदारियों को जैसे आज तक निभाते आया है, आपके आने से और भी ज्यादा अच्छे तरीके से निभा पायेगा।
हवलदार- धन्यवाद बहन जी। दुनिया आप जैसे लोगों के कारण ही चलती है। एक बेघर बेसहारा लड़के को अपने घर में पनाह देकर अपने खुद के परिवार का सदस्य बना लेना, ऐसा उदाहरण आज की दुनिया में देखना बहुत ही मुश्किल है। मुझे बड़ा मन है उसको देखने का, उसको गले लगाने का, उससे बातें करने का और शिखा भी सिर्फ आपकी बेटी नहीं है। वह मेरी भी बेटी है। मैं आपको यह वचन देता हूँ कि यह बाप अपना हर फ़र्ज़ निभायेगा। अपने बच्चों को वापस सुरक्षित लेकर आयेगा।
ज्योति- ओफ्फो! सुबह सुबह दोनों भावुक हो गये। अरे आप लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि अभय कोई साधारण लड़का नहीं है। वह ना सिर्फ़ दिल्ली का या भारत का बल्कि वह एक ब्रह्मांड रक्षक है। उसे हर मुश्किल परिस्थिति से गुज़र कर निकलना अच्छे से आता है और अंकल मुझे कल ही दिल्ली के लिये निकलना है। आप और आंटी यहाँ सुरक्षित हैं। आप अभी स्वस्थ नहीं हैं इसलिये मुझे अकेले जाना होगा। मैंने यहाँ कुछ हथियार रखे हैं। वह इसी वक्त के लिये थे। भारत उर्फ़ अभय जहाँ भी है, उसे मेरी ज़रूरत है। ज्योति के रूप में भी और विषनखा के रूप में भी। मैं कल रात एक ट्रक के साथ निकल जाऊँगी। एक ट्रक ड्राइवर से बात कर ली है मैंने। रात को निकलने से वहाँ पहुँचते पहुँचते हल्की सुबह हो जायेगी और शिफ़्ट बदलने के कारण पुलिसवाले इतने व्यस्त रहेंगे कि इतनी चेकिंग नहीं करेंगे। मैं हथियारों सहित आराम से दिल्ली पहुँच जाऊँगी।
हवलदार- नहीं बेटी। यह मेरी खुद की भी लड़ाई है। मेरा पूरा परिवार और मेरी पूरी ज़िंदगी निगल ली इन सत्ता के लालची गद्दारों ने। यह एक ऐसा कर्ज़ है जो मुझे भी चुकाना है। मैं भी चलूँगा। मेरे भी हाथ उनका मुँह नोचने को मचल रहे हैं। तुम बस शिखा की माँ का रहने खाने का इंतज़ाम कर के जाओ।
शिखा की माँ- भाई साहब मेरी चिंता बिल्कुल मत कीजिये। बस मेरे दोनों बच्चे वापस आ जायें और कुछ नहीं चाहिये। वैसे भी यहाँ कोई तकलीफ़ नहीं है।
ज्योति- हाँ अंकल। मैंने सारा इंतेज़ाम कर दिया है। आंटी को कोई तकलीफ़ नहीं होगी। अब तकलीफ़ की बारी उन लोगों की है जिसने मेरे भारत को मुझसे छिनने की कोशिश की है। उनका लहू सूखा देगी अब विषनखा।
हवलदार- ज्योति बेटा। एक बात पूछनी थी। तुम अभय से कब से प्रेम करती हो?
ज्योति(थोड़ी लजा कर)- हमेशा से अंकल और मैं मेरे प्यार को कुछ नहीं होने दूँगी। पर आपको यह कैसे पता चला?
हवलदार मुस्कुरा दिया।
एक्स-स्क्वाड हेडक्वार्टर:
चारों तरफ टूटे काँच के टुकड़े बिखरे पड़े थे। एक्स-रे हर काँच का ग्लास और बोतल ज़मीन पर पटक कर तोड़ते जा रहा था। किसी की भी कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। एक्स तक चुप था। शिखा अभी भी खंभे से बँधी हुई थी। वह एक्स-रे की झुंझलाहट पर हँस रही थी।
कर्नल एक्स-रे- चुप कर चुड़ैल, चुप कर। तेरा भाई मेरे हाथों ही मरेगा और उसके बाद मैं तुझे मारूँगा। तेरे पूरे खानदान को खत्म करने के बाद तेरी जान मैं अपने दोनों हाथों से गला दबा कर लूँगा।
एक्स- शांत हो जाओ कर्नल, शांत हो जाओ। हमें सही दिशा में सोचने की ज़रूरत है।
कर्नल एक्स-रे- क्या सही दिशा? कौन सी चीज़ सही दिशा में जा रही है? दुनिया के सबसे ख़तरनाक कॉन्ट्रैक्ट किलर को बुलाया था मैंने कफ़न को मारने के लिये। कफ़न तो मर भी जाता पर तिरंगा आ गया। जिसके मरने का पूरा आश्वाशन था हमें। कैंटारेला से वार हुआ था उसके ऊपर। आज तक किसी को बचते नहीं देखा है इससे पर वह बच गया और साथ में ना सिर्फ़ कफ़न को बचाया बल्कि मेरे तुरुप के इक्के को भी पता नहीं कैसे ख़त्म कर दिया। रोनिन मर नहीं सकता था पर उसने उसको भी ख़त्म करने की तरक़ीब सोच ली। यह मैंने क्या गुनाह कर डाला! कभी सोचा नहीं था कि जिसको मैंने ट्रेन किया है वही मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी फाँस बन जायेगा। यह लड़का मेरा सबसे बड़ा सिपाही बनता पर वही आज मेरा सबसे बड़ा दुश्मन देशभक्त डिटेक्टिव तिरंगा बन कर मेरे सामने खड़ा है। एक तो उस की किस्मत भी क्या तेज़ है! मरता ही नहीं।
शिखा- हाहाहाहा! जिसकी साँसों के साथ पूरे देश के दुआओं का असर हो वह तुझ जैसे नाली के कीड़ों के हाथों नहीं मर सकता कर्नल। तेरे मनसूबों पर पानी फेरने और तेरी साँसों को हलक से बाहर निकालने के लिये मेरा भाई आ रहा है।
एक्स- तेरा भाई तो बच गया शिखा पर तुझे कौन बचायेगा? ओह माफ करना सिर्फ तुझे नहीं हज़ारों लोगों को मारने की प्लानिंग कर रखी है मैंने। उन्हें कौन बचायेगा?
शिखा- क्या बक रहे हो तुम?
एक्स- मैं तुझे ना प्लान बताऊंगा ना जगह। बस दिमाग पर इतना ज़ोर डाल कि इतना सारा RDX मैंने क्यों मंगवाया है? क्या करना चाहता हूँ मैं? सोचती रह। आखिर डिटेक्टिव की बहन है तू थोड़ा दिमाग तो रखती ही होगी तो लगा दिमाग लगा अपना।
कर्नल एक्स-रे- हमारा प्लान बिना CNN के नेटवर्क के सफल होना बहुत मुश्किल है एक्स और वह अजीब तरीके से कहीं फँसा हुआ है।
एक्स- तो फिर एक्स वही करेगा जिसके लिये उसे पूरी दुनिया के आतंकी संगठन सलाम ठोकते हैं। एक्स अकेला ही भारत में त्राहीमाम मचा देगा।
कफ़न का अड्डा:
तिरंगा- यह कब तक होश में आएगा डॉक्टर साहब?
डॉक्टर साठे- यह जल्द ही होश में आ जाएगा तिरंगा। ज्यादा खून बह जाने से इसपर कमज़ोरी छाई है बस। तुमने घाव को कॉटेरीज़ कर के बहुत अच्छा काम किया। यह अस्थायी इलाज़ है पर इसके कारण रक्तस्राव रूक गया जो कि सबसे अच्छी बात है। मैंने सर्जरी कर दी है। घाव को भरने में कुछ दिन लगेंगे पर यह ठीक हो जायेगा। अब तुम मुझे बताओ तिरंगा, तुम कैसा महसूस कर रहे हो? चोट तो तुम्हें भी बहुत लगी है पर तुम बिल्कुल सामान्य दिख रहे हो। मुझे तो यह समझ नहीं आ रहा कि तुम कफ़न को इतनी दूर अपने कंधे पर लाद कर लेकर कैसे आये?
तिरंगा- डॉक्टर साहब! मैं बहुत ही तंदरुस्त और ऊर्जावान महसूस कर रहा हूँ। मुझे खुद समझ नहीं आ रहा है कि कैसे? इतनी चोट लगने के बाद कफ़न को केवल इच्छाशक्ति के बल पर यहाँ तक लाना मेरे लिये भी संभव नहीं था लेकिन फिर भी मैं थका हुआ या चोटिल महसूस नहीं कर रहा हूँ।
डॉक्टर साठे- यह सब उस इलाज़ का कमाल है तिरंगा। मेरी रिसर्च व्यर्थ नहीं गई। भारत को तिरंगा की ज़रूरत है और वह वापस आ गया। इससे खुशी की बात क्या होगी?
तिरंगा- फिलहाल तो मुझे कफ़न की ज़रूरत है डॉक्टर साहब। मुझे किसी से मिलने जाना है। मैं जल्द ही वापस आऊँगा डॉक्टर साहब। आशा करता हूँ तब तक कफ़न होश में आ जायेगा। मुझे इससे बहुत ज़रूरी बात करनी है। मैं कुछ घंटों में वापस आता हूँ।
सत्यप्रकाश का घर:
रात गहरा गयी थी। सामान्यतः इस समय तक सत्यप्रकाश सो जाता था पर आजकल उसकी आँखों से नींद हवा थी। वह कुछ फाइलों को पलट पलट कर देख रहा था। तभी डोर बेल की आवाज़ से उसका ध्यान भंग हुआ। उसने अपनी घड़ी देखी। रात के 12:30 बज रहे थे।
“इस समय कौन हो सकता था?”- यही सवाल उसको घेरे हुये था। डोर बेल फिर से बजा तो उसने अपनी वॉकिंग स्टिक ली और दरवाजे की ओर चल पड़ा।
सत्यप्रकाश- कौन है? आ रहा हूँ।
दरवाजा खोलते ही सत्यप्रकाश को मानो कितनी बड़ी ख़ुशी मिल गयी। सामने भारत उर्फ़ अभय खड़ा था। सत्यप्रकाश ने उसको देखते ही गले लगा लिया। बहुत भावुक क्षण था वह दोनों के लिए।
सत्यप्रकाश- आओ अन्दर आओ। इतने दिन कहाँ गायब थे? वह चिट्ठी मिलते ही मैं समझ गया था कोई चक्कर है और तुम किसी मुसीबत में फँस गए हो।
भारत- सत्यप्रकाश जी पहले तो मैं माफ़ी चाहता हूँ कि मेरा केस मैंने आपको सौंप दिया और मुझे पता है कि यह बहुत ख़तरे वाला केस था पर मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।
सत्यप्रकाश- अरे पागल हो! हम लोग हमेशा सच्चाई के लिये लड़ते हैं। मैंने तुमको हमेशा वही सिखाया भी है और इतिहास गवाह है कि सच्चाई के लिये लड़ने वालों को हमेशा खतरों का सामना करना पड़ा है। यह तो मेरे लिये फख्र की बात है कि तुम कभी भी सच्चाई से भागे नहीं। चलो अब मुझे संक्षेप में सारी बातें बताओ।
भारत- सत्यप्रकाश जी आप मेरे पूजनीय हैं पर मैंने एक बात हमेशा आपसे छुपाई है। यह बात मैंने सिर्फ आपसे ही नहीं पूरी दुनिया से छुपा रखी है और सिर्फ़ मेरे परिवार के सदस्य ही इस बारे में जानते थे। हाल में हुई कुछ घटनाओं के कारण मुझे पता लगा कि यह राज़ इतना भी बड़ा राज़ नहीं है और ये भी समझ गया हूँ कि कुछ लोग हैं, जिनके सामने ये राज खोल सकता हूँ।
सत्यप्रकाश- तुम क्या कहना चाहते हो भारत साफ साफ बोलो।
भारत(अपनी ढाल निकाल कर सत्यप्रकाश के सामने रखते हुये)- मैं ही तिरंगा हूँ।
सत्यप्रकाश को मानो 440 वोल्ट का झटका लगा। वह समझ नहीं पा रहा था कि इस एक क्षण में क्या हुआ है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह प्रतिक्रिया के रूप में कुछ बोलना चाह रहा था पर बोल नहीं पा रहा था। फिर भी उसने मुँह खोला-
सत्यप्रकाश- पर यह कैसे संभव है? और तुम कानून के रखवाले हो। हर चीज़ कानूनी तरीक़े से करते हो फिर तिरंगा कैसे? यानी तुम खुद के केस में ख़ुद ही जाके ग़ैरकानूनी तरीक़े से गुंडों की पिटाई करते हो और खुद ही उस केस के सबूत इकट्ठे करते हो? भारत मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूँ। तिरंगा और भारत दोनों अलग अलग सही थे। दोनों एक ही शख्श हैं यह बात मुझे खा रही है।
भारत- सत्यप्रकाश जी! आप पहले बैठिये। मुझे अपनी बात पूरी करने दीजिए। मैं कोई ग़ैरकानूनी काम नहीं करता। मैं एक ब्रह्मांड रक्षक हूँ और मुझे यह अधिकार दिया गया है कि मैं अपने देश, अपने शहर और अपने ब्रह्मांड की रक्षा के लिये यथासंभव प्रयास करूँ। मैंने फिर भी कभी भी कानून नहीं तोड़ा है। इसी कारण से दिल्ली पुलिस यहाँ तक कि कमिश्नर साहब भी मेरे समर्थन में रहते हैं और आपकी बात सही है कि मैं खुद ही अपने केसेस के लिये गुंडों के हलक से सबूत निकाल कर इकट्ठा करता हूँ। मगर इसका कारण यह है सत्यप्रकाश जी कि अगर हमारी कानून व्यवस्था इतनी ही मजबूत होती तो मुझे कभी तिरंगा का लिबास पहनना ही नहीं पड़ता। कई बार कानून तोड़ कर नहीं, कानून के दायरे में ही रह कर अलग तरीके से काम करना पड़ता है। जब तिरंगा किसी सुपर विलन, अंडरवर्ल्ड डॉन या किसी सड़क छाप गुंडे की तरफ़ जाता है ना तो उनका डर अलग तरीक़े का होता है। यह काम पुलिस नहीं कर पाती।
तिरंगा ने सत्यप्रकाश को एकदम शुरू से भारतनगर के दंगे से होते हुये अपने तिरंगा बनने की कहानी, उसका असली चेहरा छीन जाने और भारत का चेहरा लगाने की कहानी हर कुछ बताया। हर बढ़ते लफ्ज़ के साथ सत्यप्रकाश की आँखे फैलती जा रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। कोई इंसान अपनी मातृभूमि के प्रेम में इस हद तक कैसे जा सकता था कि उसे ना सिर्फ़ अपनी पहचान बल्कि अपना परिवार, अपना प्यार, अपना घर सब कुछ त्यागना पड़े। उसके बाद भी हर दर्द सहते हुये, बिना कानून तोड़े, देश और तिरंगे की रक्षा के लिये भारत माँ का यह सपूत हमेशा अपने कर्तव्यपथ पर अडिग रहा था। सत्यप्रकाश की आँखों से आँसू आ गए थे। उसने भारत को गले लगा लिया। भारत की आँखें भी नम हो गयी थीं। उसके दिल से एक बोझ हल्का हो गया था। यह दृश्य इस बात का द्योतक था कि अर्जुन का द्रोणाचार्य इस महाभारत में उसके साथ था। शंखनाद तो बहुत पहले हो चुका था लेकिन आर-पार का युद्ध अब शुरू हुआ था।
भारत- सत्यप्रकाश जी अब मुझे एक बार कमिश्नर साहब से मिलने जाना है। काफ़ी चीजों का विश्लेषण करना है और आखिरी हमले की तैयारी करनी है वह भी जल्द से जल्द। रोनिन की मौत के बाद एक्स-रे चुप नहीं बैठेगा और मुझे डर है कि हमारे पास और दिल्ली के पास ज्यादा समय नहीं है। उससे पहले जिस काम के लिये आया हूँ उस पर बात करते हैं सत्यप्रकाश जी। आज मैं सुबह से ही कभी भारत और कभी तिरंगा के रूप में छुप छुप कर सारे काम निपटा रहा था क्योंकि यह बस एक मौका है मेरे पास। अब बस सब कुछ आपके हवाले सौंप रहा हूँ।
सत्यप्रकाश- हाँ भारत! अब तो चाहे मेरी पूरी ज़िंदगी भी चली जाये तो भी ग़म नहीं, लेकिन मैं इन सब गद्दारों को सज़ा दिलवा कर रहूँगा।
भारत ने सत्यप्रकाश के सामने कुछ दस्तावेज रखे जिसमें कुछ पेपर्स और फाइल्स के अलावा दो पेनड्राइव भी थे। उसने सत्यप्रकाश को पूरी प्लानिंग बताई जिसको सुन कर सत्यप्रकाश अपने शागिर्द पर गर्व महसूस कर रहा था।
सत्यप्रकाश- तुम चिंता मत करो भारत। अब तुम्हारा यह गुरु सारी चीज़ें संभाल लेगा। तुम जाकर बाकी लोगों को पकड़ो। अदालत की कार्यवाही मुझपर छोड़ दो।
भारत- बहुत बहुत धन्यवाद सत्यप्रकाश जी। मुझे खुद से ज्यादा आपके ऊपर भरोसा है कि आप सब संभाल लेंगे और मुझे इस बात की बहुत ज्यादा खुशी है कि मुझे आप जैसा गुरु मिला। कल जो करने जा रहा हूँ उसके बाद पता नहीं मैं ज़िन्दा लौटूँगा भी या नहीं, पर कानून का यह मुजरिम बच कर जाना नहीं चाहिये सर्।
सत्यप्रकाश के चेहरे पर गर्व और दृढ़ता के मिलेजुले भाव थे जिनको देखकर भारत को उसका जवाब मिल चुका था अब वो निश्चिंत था। उसके बाद भारत ने अपना तिरंगा मास्क पहना और रात की गहराइयों में समा गया।
दिल्ली पुलिस मुख्यालय:
आज दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर फिर से सुरक्षाचक्र रोशन हुआ था। कई दिन से सुरक्षाचक्र रोशन होने के बावजूद तिरंगा का कोई जवाब या संदेश नहीं मिलने से दिल्ली पुलिस कमिश्नर चिंतित था। पहले कभी भी तिरंगा किसी मुसीबत में फँसता था या शहर से बाहर जाता था तो भी कमिश्नर को इस बारे में पता रहता था लेकिन बीते कई दिनों से तिरंगा का कोई अता पता नहीं था।
इंस्पेक्टर धनुष- सर्! जब इतने दिनों से तिरंगा का कोई पता नहीं चल पा रहा है तो आपको क्या लगता है कि आज वह आएगा?
इससे पहले कि कमिश्नर कोई जवाब दे पाता, हवा के झोंके के समान लहराता हुआ तिरंगी लिबास पहने हुये वह देशभक्त आ पहुँचा। कमिश्नर और इंस्पेक्टर धनुष की बाँछे खिल गयीं। छत पर जलता सुरक्षाचक्र बुझा कर तिरंगा कमिश्नर के पास पहुँचा।
कमिश्नर- तुम इतने दिन कहाँ थे तिरंगा? हर दिन सुरक्षाचक्र रोशन कर रहा था पर तुम्हारा अता पता ही नहीं। पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ?
तिरंगा- सर्! मैं कहीं फँस गया था। अभी वो सब बताने का समय नहीं है और अगर मुझे आपसे बहुत ज़रूरी काम नहीं रहता तो मैं अभी किसी और खोजबीन में व्यस्त रहता। इस बार सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि कई महानगर खतरे में हैं सर्। सर्वप्रथम आप वकील सत्यप्रकाश जी की सेक्यूरिटी बढ़ाइए। उनकी जान को तो ख़तरा नहीं होना चाहिये, क्योंकि अभी उन पर हुआ कोई भी हमला शक की सुई को सीधा मुख्यमंत्री हेगड़े पर घुमायेगा। पर उनके पास मौजूद सबूतों और दस्तावेजों पर हमला हो सकता है इसलिये आप व्यक्तिगत रूप से उनकी सुरक्षा पर नज़र रखिये। दूसरी बात ये है कि आप पुलिस डिपार्टमेंट की एक मीटिंग रखिये। देश के सभी शहरों में चेकपोस्ट्स पर कड़ी नाकाबंदी करवाइये। कोई भी वाहन बिना चेकिंग के निकलने ना पाये। विशेष रूप से दिल्ली में हर जगह पर अपने खोजी दलों को नियुक्त कीजिये।
कमिश्नर- एक मिनट, एक मिनट। तिरंगा! साँस तो लो। मुझे विस्तार से समझाओ कि क्या हो रहा है? क्यों पूरी सुरक्षा व्यवस्था को एक ही चीज़ की खोज में लगवाना चाह रहे हो? और हमें ढूंढ़ना क्या है?
तिरंगा- वह वापस आ गया है सर्। एक्स वापस आ गया है और इस बार उसके पास RDX का इतना बड़ा कन्साइनमेंट है कि एक साथ लाखों ज़िंदगियाँ एक झटके में ख़त्म कर सकता है। इतना बारूद वह सिर्फ़ दिल्ली में तो नहीं लगायेगा। वह ऐसी जगह लगायेगा जहाँ की जनसंख्या बहुत ज्यादा हो। यानी सभी बड़े शहरों के व्यस्त इलाकों में।
कमिश्नर- ओह माई गॉड! तुम्हें यह सब कैसे पता चला?
तिरंगा- सर्! मेरे व्यक्तिगत राज़ खुल जाने के डर से मैं आपको सब कुछ नहीं बता सकता लेकिन मेरी बात पर यकीन कीजिये। मैं बाकी ब्रह्मांड रक्षकों को भी RDX की खोज में लगाता हूँ और TV, रेडियो, इंटरनेट, सोशल मीडिया हर जगह एक अनाउंसमेंट करना है कि जहाँ कहीं भी कुछ संदिग्ध इंसान, गतिविधि या वस्तु दिखे तो तुरंत पुलिस को ख़बर करना है। एक बात और सर्! इस खोज में ध्रुव, नागराज और डोगा के कारण बहुत सारे पशु-पक्षी, सर्प और विशेष कर कुत्ते RDX और संदिग्ध वस्तुओं की तलाश में रहेंगे। चूँकि वो स्वयं कुछ नहीं कर सकते इसलिए वे जिस किसी को भी किसी दिशा में जाने का इशारा करें, लोगों से अपील कीजिये कि वो उनके पीछे पीछे जायें और कुछ संदेहास्पद दिखते ही पुलिस को ख़बर करने में ज़रा भी ढील ना बरतें।
कमिश्नर- ठीक है तिरंगा। काम तो ज्यादा है पर ख़तरा भी बड़ा है। मैं अभी ही हर कुछ की तैयारी में लग जाता हूँ।
तिरंगा- मैं निकलता हूँ सर्। (इंस्पेक्टर धनुष के कंधे पर हाथ रखते हुये) थैंक यू इंस्पेक्टर धनुष। आपने अदालत में बिना डरे जो बयान दिया उसके लिये मैं आभारी हूँ। मैं आपकी बहादुरी, निडरता, जज़्बे और कर्तव्यनिष्ठा को सलाम करता हूँ।
इंस्पेक्टर धनुष ने बिना कुछ कहे बस हाँ में सिर हिला दिया। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट थी। वह दोनों तिरंगा को मुख्यालय की छत से दूसरी बिल्डिंग्स पर उछलते कूदते जाते देख रहे थे।
एक्स-स्क्वाड हेडक्वार्टर:
समाचार चल रहा था। दिल्ली पुलिस कमिश्नर के इंटरव्यू का सजीव प्रसारण आ रहा था।
रिपोर्टर- आज पहली बार दिल्ली पुलिस कमिश्नर हमारे चैनल पर लाइव आ रहे हैं। सर्! पहले तो आपका बहुत बहुत स्वागत हमारे चैनल पर। क्या यह सच है कि आज एकदम सुबह सुबह अत्यंत महत्वपूर्ण बैठक की गई थी जिसमें देश के कई राज्यों और बड़े शहरों के कमिश्नर और डेप्युटी कमिश्नर वीडियो कॉलिंग के द्वारा शामिल हुये थे?
कमिश्नर- हाँ यह सच है। अभी पूरे देश में सुरक्षा बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं। हमें शक है कि कोई आतंकवादी संगठन कई बड़े शहरों में बम विस्फोट करना चाहता है। उसके लिये उसके पास अत्यधिक मात्रा में RDX भी मौजूद है। तभी हमलोगों ने हर टोल नाके पर चेकिंग और सुरक्षा बहुत ज्यादा बढ़ा दी है।
रिपोर्टर(अपने माथे का पसीना पोछते हुये)- तो अब हम शहरवासियों के लिये आपका क्या संदेश है?
कमिश्नर- सबसे पहले तो घबराइए नहीं। पूरे देश की पुलिस एकजुट होकर इस पर कार्यवाही कर रही है। इसके अलावा कई ब्रह्मांड रक्षक इस मामले में हमारी मदद कर रहे हैं। तिरंगा व्यक्तिगत रूप से……..
कर्नल एक्स-रे(टीवी बंद करते हुये)- ओफ्फो! इन सबको RDX की भनक कैसे लगी?
एक्स- तिरंगा के अलावा और कौन इतनी दूर सोचेगा?
कर्नल एक्स-रे- तुमने अभी तक कितनी जगहों पर RDX लगा दिया है?
एक्स- देश भर में फैले मेरे स्लीपर सेल ने अपने काम को बख़ूबी अंजाम दिया है कर्नल। कई शहरों के कई भीड़ भाड़ वाले इलाकों में, मॉल्स में, बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों में इतना बारूद लगा दिया है कि एक ही साथ कई बच्चे अनाथ और कई औरतें विधवा हो जायेंगे। सभी में एक सिग्नल रिसीवर लगा है और सबको सिग्नल सिर्फ़ एक ट्रांसमीटर से जायेगा जो कि इस कंट्रोल पैनल में लगा हुआ है। इसका पासवर्ड सिर्फ़ मुझे पता है और आपातकाल की स्थिति के लिये मैं तुम्हें बता कर रखूँगा।
कर्नल एक्स-रे- और तिरंगा के बारे में क्या सोचा है तुमने?
एक्स- वह तो अब ख़ुद ही यहाँ चल कर आयेगा और हमारे जाल में फँस कर जल बीन मछली की तरह छटपटायेगा। कफ़न या रोनिन से उसे यहाँ का पता मिल भी चुका होगा, पर अपनी बहन को बचाने के लिये और बम फटने के जोख़िम के डर से वह अकेला आने का नाटक करेगा पर ये तय है कि उसके साथ छुपकर कफ़न भी आयेगा। एयर कंडिशनिंग डक्ट में भी मैंने बारूद भर दिया है तो वहाँ से आने का कोई रास्ता नहीं है। अब बस बैठ कर तिरंगा और कफ़न की मौत का तमाशा देखो कर्नल।
चण्डीगढ़:
एक ट्रक से उतरकर पगड़ी बाँधे एक बूढ़ा व्यक्ति और सलवार सूट में एक लड़की पास के लाइन होटल में खाना खाने गये।
लड़की- भैया! थोड़ा मेनू देना।
तभी उसका और उस बूढ़े आदमी का ध्यान टीवी पर गया। जहाँ कमिश्नर का इंटरव्यू चल रहा था। उसने पास बैठे बूढ़े व्यक्ति को वह इंटरव्यू देखने को कहा और तुरंत ही दोनों होटल से निकलने लगे।
ढाबे वाला- अरे पाजी! क्या हुआ कुछ खा तो लो।
लड़की- नहीं सरदार जी। बस भूख नहीं है और हमें जल्दी से जल्दी कहीं पहुँचना है।
यह कह कर तुरंत ही दोनों ट्रक पर बैठ गए। बूढ़े व्यक्ति ने ट्रक स्टार्ट किया और तेज़ी से दिल्ली की तरफ़ बढ़ने लगे।
नरेला बॉर्डर:
चंडीगढ़ की तरफ़ से दिल्ली आने वाली ज़्यादातर गाड़ियाँ इसी रास्ते से आती हैं इसीलिए यहाँ ट्रैफिक बहुत ज्यादा होता है। सुरक्षा की दृष्टि से सबसे ज्यादा चेकिंग भी इसी नाके में हो रही थी। कोई भी गाड़ी बिना चेक हुये दिल्ली प्रविष्ट नहीं कर पा रही थी ना ही बाहर जा पा रही थी। खुद इंस्पेक्टर धनुष आज यहाँ मौजूद था। नाके में 5 6 गाड़ियों के पीछे वह ट्रक भी था जिसमें वह लड़की और पगड़ी बाँधे बूढा व्यक्ति थे।
लड़की- अब क्या होगा अंकल? चेकिंग तो बहुत ज्यादा है।
बूढा व्यक्ति- तुम चिंता मत करो बेटी। इंस्पेक्टर धनुष दिखाई पड़ रहा है मुझे। मैंने कोर्ट में दिया गया उसका बयान पढ़ा है। मुझे अंदर से महसूस हो रहा है कि वह ही हमारे यहाँ से निकलने की चाबी है। तुम जाकर उससे बात करो।
लड़की ट्रक से उतरकर इंस्पेक्टर धनुष की ओर जाने लगी।
इंस्पेक्टर धनुष(चिल्लाते हुये)- हर गाड़ी अच्छे से चेक होनी चाहिये। बोनट और डिग्गी सब खोल कर चेक करो।
लड़की- हैलो इंस्पेक्टर साहब! आप इंस्पेक्टर धनुष हैं ना? मुझे आपसे बात करनी है।
इंस्पेक्टर धनुष- अभी इतना समय नहीं है मैडम। अभी इमरजेंसी वाले हालात हैं।
लड़की- मैं ज्योति हूँ। वकील सत्यप्रकाश जी की भतीजी।
इंस्पेक्टर धनुष- क्या!! आप यहाँ क्या कर रही हैं ज्योति जी?
ज्योति- अंकल पर खतरा मंडरा रहा है सर्। उनपर कोई दबाव ना डाल पाये इसलिए उन्होंने ही मुझे शहर छोड़ने को कहा था। अब मुझे पता है कि इस केस के बाद अंकल पर खतरा मंडरा रहा है। थोड़ा जल्दी निकलने दीजिये इंस्पेक्टर साहब।
इंस्पेक्टर धनुष- सॉरी ज्योति जी। अभी हमलोग चेकिंग में नरमी नही बरत सकते। आपको वैसे ही जाना पड़ेगा जैसे बाकी गाड़ियाँ जा रही हैं।
ज्योति- अच्छा एक काम कीजिये। आप मेरे साथ ट्रक के पास चलिये।
कहकर ज्योति इंस्पेक्टर धनुष को ट्रक के पास ले गयी। वहाँ ड्राइविंग सीट पर वह बूढ़ा बैठा था।
इंस्पेक्टर धनुष- आप कौन हैं?
बूढ़ा व्यक्ति(मशीनी आवाज़ में)- खुद मेरे बारे में बयान देकर खुद मुझे नहीं पहचान रहे इंस्पेक्टर?
इंस्पेक्टर धनुष- यह! यह मशीनी आवाज़! ओह माई गॉड! आप! आप हवलदार रामनाथ देशपाण्डे हैं? (तुरंत ही इंस्पेक्टर धनुष की रिवॉल्वर उसके हाथ में आ गयी थी)
हवलदार- बंदूक निकालने की ज़रूरत नहीं इंस्पेक्टर। मैं कानून का अपराधी हूँ यह मुझे पता है। मैं खुद ही कानून को आत्मसमर्पण कर दूँगा और मुझे हथकड़ी भी तुम ही लगाओगे। यह मेरा वादा है। बस अभी हमलोगों को निकलने दो। सत्यप्रकाश और मेरे बेटे की जान ख़तरे में है।
इंस्पेक्टर धनुष- आपका बेटा? अभय? वह तो कुछ सालों पहले एक्स के हाथों मारा गया था ना?
हवलदार- मैं तुम्हें सब बताऊंगा इंस्पेक्टर। तुमसे कुछ भी नहीं छुपेगा। बस अभी जाने दो।
इंस्पेक्टर धनुष- ठीक है। ठीक है। अब्दुल, गेट खोल दो। यह ट्रक मैंने चेक कर लिया है। इसको साइड से जाने दो।
हवलदार ने ट्रक स्टार्ट किया और फाटक से बाहर निकल गया। इंस्पेक्टर धनुष ने कुछ देर ट्रक को जाते देखा, फिर वापस अपने काम में लग गया। ट्रक के पीछे ही वो हथियार छुपा कर रखे हुये थे जो ज्योति लेकर आई थी।
ज्योति- अंकल! आपने यह क्यों कहा कि आप आत्मसमर्पण कर देंगे?
हवलदार- बेटी! मैं कानून की इज़्ज़त करता हूँ। मैं खुद कानून का ही एक सिपाही था जब मेरी दुनिया को उजाड़ दिया गया और मेरे बदला लेने की ख़्वाहिश भी अब ख़त्म हो गयी है। अब बस मुझे अपने बेटे को बचाना है और फिर मैं खुद को कानून के सुपुर्द कर दूंगा।
ज्योति- एक आप पिता हैं और एक मेरा बाप था। यकीन नहीं होता कि वह सत्यप्रकाश जैसे सच्चे आदमी का भाई था। उसने अपने गुनाहों की लिस्ट इतनी ज्यादा कर ली थी कि अपनी बेटियों को भी नहीं बख्शा। मुझे और ज्वाला को बचपन से ही हथियार और कुछ युद्धकलाओं की ट्रेनिंग दिलवाता था ताकि हम दोनों उसका कार्यभार संभालें। किस्मत से हम दोनों को ही उस ट्रेनिंग में ज्यादा मन नहीं लगा और दोनों अपने अपने रास्ते चल दिये। ज्वाला लेकिन केमिस्ट्री की इतनी अच्छी छात्र होकर भी वापस पापा के साथ चली गयी और मैं सत्यप्रकाश अंकल के पास आ गयी क्योंकि मुझे पापा के रास्ते से घिन्न आती थी।
हवलदार- तुम अपने आप में एक हीरा हो बेटी। ऐसा बहुत बार देखने मिलता है कि घर से संस्कार अच्छे मिले पर सन्तान बिगड़ गयी। पर ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि घर से संस्कार ऐसे मिले पर सन्तान नेकी के रास्ते पर चली।
ज्योति(हँसते हुये)- बस अंकल! और कितनी तारीफ़ करेंगे? पहले तिरंगा के पास जाना है हमें और अब कुछ ही किलोमीटर बचे हैं उस तक पहुँचने में।
हवलदार- पर हमें तो सत्यप्रकाश जी के पास जाना था ना?
ज्योति- सत्यप्रकाश अंकल जैसे ईमानदार हैं वैसे ही तेज़ दिमाग वाले भी। उन्होंने अपने सुरक्षा का इंतज़ाम कर रखा है और तिरंगा अभी जो लड़ाई लड़ने जा रहा है उसके लिये उसे जितनी मदद मिल सके उतना ही बेहतर है।
कफ़न का अड्डा:
तिरंगा और कफ़न प्लान बना रहे थे और उधर डॉक्टर साठे समाचार देख रहा था।
डॉक्टर साठे- तिरंगा! तुम्हारा प्लान काफ़ी रंग ला रहा है। जगह जगह से बारूद बरामद हो रहा है और हर जगह बम डिफ्यूज किये जा रहे हैं।
तिरंगा- यह काफी नहीं है डॉक्टर साहब। हमलोग रिस्क कम करने में कामयाब तो हो रहे हैं पर जड़ से ख़त्म करना बहुत ज़रूरी है वरना क्षति तो होनी ही है।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। कफ़न और साठे चौंक पड़े पर तिरंगा खुश था।
तिरंगा- कफ़न! दरवाजा खोल दो। ज्योति आयी है।
दरवाजा खुलते ही ज्योति दौड़ कर तिरंगा के गले लग गयी।
ज्योति- मुझे पता था कि तुम जासूस हो और वह ट्रैकिंग डिवाइस ढूँढ ही लोगे, पर मेरी स्थिति तुम्हें कैसे पता लगी?
तिरंगा- तुम्हारे ही ट्रांसमीटर से। जो ट्रैकिंग डिवाइस तुमने छुपकर मेरी बेल्ट के बकल में लगाया था, मैंने उसको ही रिवर्स इंजीनियर कर के तुम्हारे GPS के साथ भी प्रोग्राम कर दिया। अब जैसे तुम मेरी स्थिति जान पा रही थी, मैं भी जान पा रहा था। मुझे पता था कि तुम जान गई हो कि मैं ही तिरंगा हूँ, पर तुम्हें इसकी जानकारी कब हुई यह मुझे नहीं पता।
ज्योति- पर बीच में कुछ दिन मुझे तुम्हारी स्थिति की जानकारी क्यों नहीं हो रही थी?
तिरंगा: मैंने जान बूझकर ट्रैकिंग डिवाइस बंद कर दिया था। मैं खतरों में घिरा था और मुझे पता था कि अगर मुझे कुछ हुआ तो तुम मुझे ढूंढती हुई ज़रूर आओगी। इसलिये मैंने डिवाइस ऑफ कर दिया ताकि तुमपर या किसी और पर ख़तरा न हो।
ज्योति- उफ़्फ़! ख़ैर वह सब छोड़ो। देखो साथ में कौन आया है।
हवलदार जैसे ही अंदर आया, तिरंगा की भृकुटियाँ तन गयी। उसने अपनी भावनाओं को काबू में रख कर अपने पिता के पैर छुये।
हवलदार- जुग जुग जियो बेटे। मुझे पता है कि तुम मुझसे किस कदर ख़फ़ा हो लेकिन ये तुम बहुत अच्छी तरह से जानते हो कि मेरे पास कानून तोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। जिनको हज़ारों ज़िन्दगियों से खेलने के बदले बहुत पहले मौत मिल जानी चाहिये थी, वो खुले घूम रहे थे और सरकारी पैसों पर ही ऐश भी कर रहे थे। और मुझे कानून से वफादारी का क्या ईनाम मिला? मेरा पूरा परिवार ज़िन्दा जला दिया गया। मेरी मासूम सी नन्हीं सी गुड़िया को भी नहीं बख्शा गया। मैं चुप नहीं रह सकता था अभय।
बाप-बेटे दोनों रुआँसे हो गये थे। फिर कफ़न ने चुप्पी तोड़ी।
कफ़न- आगे का प्लान क्या है तिरंगा?
तिरंगा- कुछ नहीं। जैसा है वैसा ही रहेगा। अब ये दोनों आ गये हैं तो डॉक्टर साहब के साथ इसी सेफ हाउस में रहेंगे।
ज्योति- नहीं भारत। हमलोग तुम्हारी मदद करने ही आये हैं। अगर सुरक्षित ही रहना होता तो हमलोग पहले भी सुरक्षित थे। तुम्हारी माँ को हमने सुरक्षित रखा है। आंटी को कोई दिक्कत नहीं है और अब दिक्कत बस उनको होने वाली है जिन्होंने इतना घिनौना षड्यंत्र रचा है।
तिरंगा- उफ्फ! तुमलोग समझ क्यों नहीं रहे। शिखा पहले ही बंदी है उनके पास। मानसी मर चुकी है। मैं कितने लोगों को खोऊँ अब? मैं ऐसा नहीं कर सकता ज्योति।
ज्योति- ठीक है। कम से कम इतना करने का मौका दो कि शिखा सुरक्षित हो जाये। मैंने आँटी से वादा किया है।
तिरंगा- ठीक है। फिर अब डबल सरप्राइज अटैक होगा।
तभी डॉक्टर साठे ज़ोर से चीखा।
“ओह माई गॉड।”
तिरंगा- (उसकी तरफ भागते हुये) क्या हुआ डॉक्टर साहब?
डॉक्टर साठे- (TV की तरफ़ इशारा करते हुये) वकील सत्यप्रकाश का पूरा घर किसी ने बम से उड़ा दिया। उसके सारे बॉडीगार्ड्स की भी बस लाशें दिखाई दे रही हैं लेकिन इन सब के बीच वकील सत्यप्रकाश की लाश नदारद है।
तिरंगा- हे भगवान! हे भगवान! यह क्या हो गया? अब और कितनों को छिनेगा तू मुझसे?
ज्योति (तिरंगा को झकझोरते हुये)- भारत! भारत! अंकल को कुछ नहीं हुआ है। वह सुरक्षित हैं मैं इसकी गारंटी देती हूँ और यह हमला हुआ तो एक तरह से अच्छा ही हुआ। अब दुश्मन उनकी तरफ़ से निश्चिंत होगा। जब कि मुझे पता है कि वह कहाँ हैं। वह सुरक्षित हैं भारत। तुम प्लान पर ध्यान दो। जल्दी से जल्दी अब इन सबसे इस देश और समाज को मुक्ति दिलाओ।
तिरंगा- ज्योति! मैं क्या करूँ? कुछ भी प्लान के हिसाब से नहीं चल रहा है। अभी भी दो हिस्सों में लड़ाई लड़नी है मुझे और उसमें एक हिस्सा अभी तक सही चल रहा है फ़िलहाल पर यह एक्स मुझे कुछ सोचने का मौका भी नहीं दे रहा है।
कफ़न- तिरंगा! मैंने तुम्हें बताया नहीं कि यह एक्स का काम था क्योंकि मुझे ख़ुद भी नहीं पता था। मैंने अभी तक सारे आदेश कर्नल एक्स-रे से लिये हैं। फिर तुमने यह निष्कर्ष कैसे निकाला कि इन सबके पीछे एक्स है?
तिरंगा- अभी-अभी तुमने क्या कहा? कर्नल एक्स-रे। यही वो कड़ी है। पहले मुझे पता नहीं था कि मुझे इतनी फाइटिंग कहाँ से आती है। यह है कि मैंने बाद में बहुत अभ्यास किया है। एकदम शुरू में मुझे कैसे आता था यह नहीं पता था। इसी साल जब मेरे अवचेतन मस्तिष्क से धुँधली पड़ी बातें सामने आयी तब मुझे पता चला कि मैं क्या था और मैंने यह फाइटिंग आदि कहाँ से सीखी। अब आता हूँ एक्स पर। यह सब एक हादसे से शुरू हुआ था। जब वह बिल्डिंग गिराई गयी जिसमें मानसी थी। यह कोई अनियमित या सांयोगिक हादसा नहीं था। उस बिल्डिंग को जान बूझकर गिराया गया था और उस बिल्डिंग को ध्वंस करने वाले बारूद का नाम था RDX। वहाँ एक पहेली भी पड़ी हुई थी कफ़न। सिर्फ 2 लाइनें लिखी हुई थीं।
“जो मैं तब ख़त्म नहीं कर पाया था,
वो अब ख़त्म होगा।”
यानी किसी की व्यक्तिगत दुश्मनी थी मुझसे और सिर्फ इतना ही नहीं, वह मेरे मास्क के अंदर के चेहरे को भी पहचानता था क्योंकि मानसी हमेशा अभय उर्फ़ भारत के साथ ही दिखी है तिरंगा के साथ नहीं। अब यहाँ शक के दायरे में दो लोग आते हैं। कर्नल एक्स-रे और CNN। CNN उर्फ़ लेखराज भंडारी तो जेल में है इसलिए मेरा शक सीधा एक्स-रे पर गया क्योंकि वही जानता था कि अभय ही तिरंगा है, मगर अब फिर से वही बात उठी कि उसको तो बस यह पता है कि अभय ही तिरंगा है पर अभय का वजूद तो मैंने ख़त्म कर दिया था। पूरी दुनिया जानती है कि अभय मर चुका है। फिर कौन हो सकता है जो ये जानता हो कि भारत ही तिरंगा है? सुई घूमी वापस CNN पर। CNN कोई और ही था। लेखराज भंडारी सिर्फ़ बली का बकरा था। CNN के पास ही इंफॉर्मर्स का ऐसा चेन है जो इतने समीप पहुँच सकता है। आधा काम तो लेखराज ने ही कर रखा था जब वह अभय के करीब पहुँचा था। बाकी का काम असली CNN ने कर दिया।
कफ़न- हाँ CNN कोई और है, पर वह छुप कर रहता है। उसका राज़ किसी को नहीं मालूम।
तिरंगा- मुझे मालूम है, पर अभी सवाल यह है कि इतने साल बाद ही वह अचानक क्यों दुश्मनी निकाल रहा था। वह पहले भी निकाल सकता था या बाद में भी लेकिन CNN पैसों के लिये काम करता है और कोई व्यक्तिगत रूप से दुश्मनी निकालने वाला ही CNN को पैसे देकर ऐसा करवा सकता है। एक बार को मेरा शक तुम पर भी गया। ना तो तुम पहेलियों में खेलते हो ना ही मेरे मास्क के पीछे के चेहरे में तुमको दिलचस्पी है।
कफ़न- हाँ! मुझे बस तुमको ख़त्म करना था। हमेशा से तिरंगा बनाम कफ़न रहा है। तुम मास्क के पीछे क्या हो, कौन हो, फर्क नहीं पड़ता। अरे पर इसमें एक्स वाला ट्विस्ट कहाँ से आया?
तिरंगा- सारा ट्विस्ट ही वहीं है। दुनिया की नज़रों में अभय मर चुका है। यानी कि CNN भी वही जानता था, यानी अभय के तिरंगा होने का शक उसके दिमाग से निकल गया था। पर एक्स-रे जानता था कि अभय ज़िन्दा है क्योंकि उसे पता था कि अभय ही तिरंगा है, लेकिन यह नहीं पता था कि अब तिरंगा के मास्क के पीछे कौन सा चेहरा है। अब अभय दो रूपों में ज़िन्दा था। एक भारत के रूप में जिसका चेहरा उसका नहीं है और एक एक्स के रूप में जिसके ऊपर अभय का चेहरा है। अब यहाँ तीन अलग अलग ऑर्गनाइजेशन के चेहरे आपस में मिले। सबसे पहले तो एक्स और कर्नल एक्स-रे और उसके बाद उन दोनों ने संपर्क किया CNN से। एक्स के ऊपर अभय का चेहरा देख कर दोनों बहुत ज्यादा चौंके होंगे। उसके बाद एक्स ने उसे कहानी बताई होगी कि कैसे एक्स और अभय के चेहरे आपस में बदल गये थे। RDX का प्रयोग और उस पहेली ने पहले ही मुझे शक में डाल रखा था कि इन सबके पीछे एक्स हो सकता है। एक्स-रे की इन्वॉल्वमेंट समझ नहीं आ रही थी। उसके बाद मैंने पुराने तबाह हो चुके एक्स-स्क्वाड हेडक्वार्टर की खोजबीन की और एक बहुत ही आश्चर्यजनक बात से रूबरू हुआ।
कफ़न, ज्योति, हवलदार और साठे सब तिरंगा की तरफ़ उत्सुकता से देख रहे थे। तिरंगा हल्का मुस्कुरा रहा था।
तिरंगा- वह जगह खण्डहर हो चुकी थी पर वहाँ एक पुरानी फ़ोटो दिखाई पड़ी मुझे। फ्रेम कराई हुई फ़ोटो थी और काँच टूटा हुआ था। थोड़ी धुँधली हो चुकी तस्वीर में भी एक चीज़ साफ़ दिखाई पड़ रही थी। वह एक्स-स्क्वाड की पहली टीम की फ़ोटो थी। पहला बैच जिसको कर्नल ने ट्रेनिंग दी थी। उस फ़ोटो में कर्नल सामने बैठा हुआ था और उसके पीछे सारे प्रशिक्षार्थी थे। कोने में खड़ा एक्स का चेहरा मैं दुनिया में कहीं भी पहचान सकता था। उसको देखते ही मेरा दिमाग भक्क से उड़ गया और सारी बातें साफ हो गयी। एक्स-स्क्वाड देश की रक्षा के नाम पर सिर्फ़ हत्यारों की फौज बनाता था और अब वही एक्स-स्क्वाड, H.O.W. अर्थात हाउंड्स ऑफ वॉर के कमांडोज़ के नाम से अपना काम कर रहा है और एक बात। एक्स की फाइटिंग स्टाइल लगभग मेरे जैसी है। मुझे अब समझ में आ गया था कि ऐसा कैसे है।
सबके मुँह फटे रह गये थे। इतना गहरा षड्यंत्र और इतने सारे राज़ एक साथ खुल रहे थे।
तिरंगा- मैं सबका पर्दाफ़ाश कर के जेल की सलाखों की पीछे डालने की पूरी प्लानिंग कर चुका था पर उन्होंने शिखा को किडनैप कर के मेरे हाथ बाँध दिए हैं। अब मेरी प्राथमिकता शिखा को छुड़ाना है तभी मैं शांत दिमाग से कुछ कर पाऊँगा। आज रात ही हम लोग हमला करेंगे। सब लोग तैयारी कर लो। ज्योति और पापा के साथ हमलोग अचानक चौंका सकते हैं।
“जलती मशालों के साथ निकलेंगे, ये मौत के परवाने।
दुश्मनों की लंका जला कर ही लौटेंगे, ये देश के दीवाने।”
एक्स-स्क्वाड हेडक्वार्टर:
आज की रात कयामत की रात थी। हर कोई अपने अपने हथियार चेक कर रहा था। एक्स को छोड़ कर हर कोई गंभीर मुद्रा में था। CNN नज़र नहीं आ रहा था वहाँ। उसने अपने आपको इस प्रत्यक्ष लड़ाई से दूर रखा था। कर्नल एक्स-रे पूरे अड्डे में कमांडोज़ का जाल बिछा चुका था। हर कोई इंतेज़ार में था कि कब तिरंगा और कफ़न वहाँ आयें और उनकी गोलियों का शिकार हों। एक्स ने अपने आपको कंट्रोल पैनल में व्यस्त रखा था। अड्डे के बाहर से लेकर अंदर तक के सारे कैमरों में उसकी नज़रें भाग रही थीं। पर कहा जाता है ना कि मृत्यु ऊपर से आती है। आज भी कुछ ऐसा ही होने वाला था। तभी एक्स ने देखा कि मेन गेट के सामने गोलियाँ चल रही हैं और चारों तरफ़ धुआँ धुआँ हो रखा है।
एक्स- सभी तैयार हो जाओ। वो लोग आ चुके हैं।
सभी कमांडोज़ ने अपनी अपनी पोजीशन ले ली। उस अंडरग्राउंड अड्डे के हर गलियारे में धीरे-धीरे धुआँ पसरता जा रहा था। H.O.W. कमांडोज़ धीरे-धीरे ढेर होते जा रहे थे। तिरंगा और कफ़न से मानों गोलियाँ दुश्मनी कर के बैठी थीं। कोई उनको छू भी नहीं रही थी। कफ़न की एरो-गन से निकला हर तीर कमांडोज़ के हृदय को छेद रहा था। किसी को बचने का मौका भी नहीं मिल रहा था। तभी एक कमांडो जबरदस्त एक्रोबेटिक प्रदर्शन करते हुये कफ़न के पास पहुँच गया और उसकी कनपटी पर डेज़र्ट ईगल सटा दी।
H.O.W. कमांडो- तिरंगा! अपना हमला रोक दे और कर्नल के पास चल।
वह कमांडो दोनों को लेकर अड्डे के अंदर पहुँचा। अंदर अभी भी एक दर्जन कमांडो बचे थे और साथ में खड़े थे एक्स-रे और एक्स।
कर्नल एक्स-रे- शाबाश जीतेन। तुमने हमारी लाज रख ली। तिरंगा! बहुत परेशान किया तूने मुझे। ट्रेनिंग के दौरान भी और ट्रेनिंग के बाद भी। आज तक के सबसे सफल मिशन्स तुमने ही दिए थे एक्स-स्क्वाड को। अब अपने हथियार फेंक दो।
कफ़न ने अपना एरो-गन वहीं गिरा दिया। जब कि तिरंगा ने अपनी ढाल वहाँ पास में बँधे शिखा के पास फेंक दी। किसी का ध्यान नहीं गया था कि तिरंगा ने उसमें कोई बटन दबाया था।
शिखा- तिरंगा! मुझे पता है सब ठीक हो जायेगा।
तिरंगा उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुरा दिया।
एक्स- परिवार। परिवार ही वह कमज़ोरी है जिसके कारण लोगों के हाथ बँध जाते हैं। लोग परिवार के लिये ही हर कुछ कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं चाहे वह ग़ैरकानूनी ही क्यों न हो और लोग परिवार के कारण ही कुछ भी नहीं कर पाते चाहे वह आत्मरक्षा ही क्यों न हो। परिवार, समाज, देश इन सबने लोगों को पंगु बना दिया है। मेरा कोई परिवार नहीं है और देखो ना मुझे किसी की फ़िक्र करने की ज़रूरत है ना कोई ज़िम्मेदारी है ना कोई कमज़ोरी। है ना तिरंगा? तुझे बड़ा मिस किया मैंने वैसे। तुझे मारने को जी तो नहीं चाहता है। क्योंकि तू ही तो है जो मुझे इतना चैलेंज कर पाता है। पर क्या करें? मजबूरी है मरना तो तुझे है ही। मैंने तेरी बहन को वादा किया था कि उसको सबसे आखिर में मारूँगा ताकि वह अपने हर एक चाहने वाले को अपनी आँखों के सामने मरता देख सके। फिर से परिवार। अगर उसका परिवार नहीं होता तो आज वह यहाँ बँधी ही ना होती और ना तेरी मौत से उसको इतना कष्ट होता।
तिरंगा- परिवार कमज़ोरी नहीं होती एक्स। परिवार ही वह ताकत है जिसके कारण इंसान कभी कमज़ोर नहीं पड़ता। परिवार ही वह प्रेरणा है जिसके लिये वह अपना सर्वस्व झोंक सकता है। परिवार से ही उसको संस्कार मिलते हैं और परिवार से ही इंसानियत इस धरती पर ज़िन्दा है, वरना तुझ जैसे कमीनों ने कब का इस धरती का सर्वनाश कर दिया होता। परिवार ही जीवन का स्रोत है जो हमें जन्म देने से लेकर खिला-पिला पढ़ा कर एक इंसान बनाता है। परिवार की ख़ुशी ही हमें खुशी देती है और उनका ग़म हमें अपना लगता है। परिवार कमज़ोरी नहीं होती। वैसे आज मेरे परिवार के कारण ही तेरा भी सर्वनाश होगा। (कहकर तिरंगा फिर से मुस्कुरा दिया)
एक्स- क्या? क्या कहा?
तभी बहुत जोर का धमाका हुआ और ऊपर की छत ढहने लगी। छत के मलबे में ही दबकर एक कमांडो ने वहीं दम तोड़ दिया। C4 चार्जेज़ ने अपना काम बखूबी किया था। छत से स्लिंगिंग रस्सी के सहारे हवलदार और विषनखा की कॉस्ट्यूम में ज्योति उतरे और गोलियों की बौछार कर दी। तिरंगा ने इसका फायदा उठाते हुये शिखा की तरफ़ दौड़ लगा दी। ढाल के एक ही वार से नाईलो स्टील की वह डोरी कट कर टुकड़ों में गिर गयी और शिखा आज़ाद हो गयी। तिरंगा शिखा को उठा कर दूसरे कमरे में ले गया। अचानक हुये हमले से किसी को कुछ समझ पाने का मौका ही नहीं मिला।
दूसरे कमरे में:
शिखा (लगभग रोते हुये)- मुझे पता था भैया तुम ज़िन्दा हो। इन दरिंदों ने मुझे बहुत रुलाया है भैया। हर पल इसका एहसास दिलाया है कि तुम मर चुके हो। घुट-घुट कर रोती थी मैं लेकिन मुझे विश्वास था कि तुम आओगे।
तिरंगा- तू चिंता मत कर बहना। तेरी राखी की डोर इतनी कमज़ोर नहीं है कि तेरा भाई इतनी आसानी से तुम सबसे दूर चला जाये। अरे! अभी तो तेरी शादी भी करनी है। धूमधाम से एकदम।
शिखा यह सुनकर हँसने लगी। तिरंगा ने उसके माथे को चूमा और उसे वहीं रुकने का इशारा कर के वापस एक्स के पास पहुँचा। वहाँ हवलदार और ज्योति बचे हुये कमांडोज़ से उलझे हुये थे और कफ़न अकेला एक्स-रे और एक्स से उलझ हुआ था।
कर्नल एक्स-रे- साले गद्दार। तू तिरंगा से जाकर मिल जायेगा यह कभी नहीं सोचा था।
कफ़न- मैं गद्दार? मैं तो तिरंगा को मारने ही पहुँचा था लेकिन तुम लोगों ने तो उल्टा मुझे ही मारने का प्लान बना रखा था? तिरंगा मुझे बचाने के लिये खुद मौत के मुँह में कूद गया। आज मैं उसी की वजह से ज़िन्दा हूँ। बाद में तुमने रोनिन को भी भेजा। मैं गद्दार नहीं एक्स-रे, तेरी मौत हूँ।
एक्स-रे से उलझने के चक्कर में कफ़न का ध्यान पलभर के लिए एक्स से हट गया था और उसी का फ़ायदा उठाते हुये एक्स ने उसपर गोलियां बरसा दी। तिरंगा अभी भी कुछ दूरी पर था पर उसकी ढाल नहीं। उसने तेज़ी से एक बटन दबाते हुये ढाल को कफ़न की तरफ़ फेंका और बहुत शक्तिशाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड ने सभी गोलियों को अपनी तरफ़ खींच लिया पर एक गोली डिफ्लेक्ट होकर एक्स-रे को पेट में लग गयी। एक्स-रे वहीं गिर पड़ा और कफ़न एक्स से उलझ गया। इस दौरान तिरंगा भाग कर कंट्रोल पैनल पर पहुँचा। वहाँ उसने सारे कंट्रोल्स देखने शुरू किये। जहाँ जहाँ RDX लगा हुआ था सबको निष्क्रिय करना शुरू किया। उसका ध्यान पीछे की ओर नहीं था। कर्नल एक्स-रे एक हाथ से पेट पकड़े और दूसरे हाथ में खंजर लेकर उसकी तरफ़ बढ़ रहा था, पर उसके खंजर चलाते हाथ को बीच में ही दो शक्तिशाली मशीनी हाथों ने रोक लिया।
हवलदार- कहते हैं गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर होता है। मगर तूने तो आज हर गुरु को बदनाम कर दिया कर्नल। द्रोणाचार्य भी वचनबद्ध और विवश होकर अर्जुन के विरुद्ध खड़े हुये थे, तूने तो अपने स्वार्थ में आकर ही अपने शिष्य को हर कदम पर मारना चाहा, मगर उसका बाप अभी ज़िन्दा है और अब तू ज़िन्दा नहीं रहेगा।
हवलदार ने एक्स-रे को उछाल फेंका और उसपर चढ़ कर उसके ऊपर मशीनी घूँसों की बरसात कर दी। एक्स-रे मुँह से खून उगल रहा था। तभी तिरंगा ने आ कर हवलदार के हाथ थाम लिये।
तिरंगा- बस पापा। अब और खून नहीं। आपके हाथों अब और किसी का खून नहीं होगा। आपका बेटा अब आपको ऐसा नहीं करने देगा। छोड़ दीजिए उसे। मैं देख लूँगा सब।
हवलदार ने उठकर तिरंगा के कंधे पर हाथ रखा और सिर हिलाया। उधर एक्स ने भी पहले से ही कमज़ोर कफ़न को घायल कर के कंट्रोल पैनल पर जाकर RDX एक्टिवेट कर दिया।
एक्स- अब बचे हुये बारूद से भी हज़ारों लोग मरेंगे तिरंगा और तू कुछ नहीं कर पायेगा।
तिरंगा- तू यह तो देख लेता कि तूने कौन सा RDX एक्टिवेट किया है। वह कंट्रोल मैंने यहाँ मौजूद हथियारों और टैंकों के जखीरे पर सेट कर दिया था। अब 2 मिनट में यह सारा अड्डा तबाह हो जायेगा।
एक्स की नजरें कंट्रोल पैनल की स्क्रीन पर जाते ही उसके होश उड़ गये। वह तुरंत ही अड्डा छोड़ कर भागने लगा।
तिरंगा- आप सब जल्दी से जल्दी निकलिये। मैं शिखा को लेकर निकलता हूँ। ज्योति और हवलदार कफ़न को पकड़ कर बाहर भागने लगे। जाते-जाते हवलदार ने घृणा की दृष्टि से बुरी तरह घायल एक्स-रे को देखा और तिरंगा भी शिखा को लेकर दूसरे रास्ते से भाग खड़ा हुआ।
पूरा एक्स-स्क्वाड हेडक्वार्टर धमाकों से तबाह हो गया और साथ में कर्नल एक्स-रे की भी इहलीला समाप्त हो गयी। तिरंगा, हवलदार, शिखा, ज्योति और कफ़न धू-धू कर के जलते हुये पूरे अड्डे को देख रहे थे। सुबह का सूरज धीरे धीरे रात के आगोश से निकल कर सिर उठा रहा था।
तिरंगा- एक्स निकल गया है पर अब वह ज्यादा दिन छुप नहीं पायेगा। पर आज उसे ढूंढना मुश्किल है क्योंकि आज मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा केस है जो सत्यप्रकाश जी लड़ रहे हैं। मैं उनकी खोज में जा रहा हूँ। पता नहीं वह किस हालत में हैं। (हवलदार की ओर देखते हुये) पापा आप शिखा को लेकर घर पहुँचिये। मैं ज्योति के साथ सत्यप्रकाश जी को ढूँढने जा रहा हूँ। (कफ़न की ओर देखते हुये) कहीं नज़र मत आ जाना वरना फिर पिटेगा तू।
कफ़न- मैं नज़र नहीं आऊँगा तो तुझे पूछेगा भी कौन।
दोनों हँसने लगे। फिर सबने विदा ली। तिरंगा का चेहरा गंभीर हो चला था। वह बिल्कुल भी नहीं सोया था और ना उसके पास सोने का समय था।
वकील सत्यप्रकाश का बंगला:
आज दिल्ली में जगदीश हेगड़े के ख़िलाफ़ केस की आखिरी सुनवाई थी जिसको एक फास्टट्रैक कोर्ट में सुना जाने वाला था। पर उससे पहले सत्यप्रकाश को ढूँढना ज़रूरी था। सारी फाइल्स और सबूत उसके पास ही रखे थे तिरंगा ने। वह ज्योति के साथ भारत के रूप में सत्यप्रकाश के उजाड़ हो चुके बंगले में पहुँचा। उसने मोटरसाइकिल बाहर ही खड़ी कर दी थी। वह बंगला पूरी तरह टूट चुका था। बारूद की महक अभी भी आ रही थी। अंदर क्राइम सीन की पट्टियाँ लगी हुई थीं जिसके अंदर जाना मना था। अब तक रिपोर्टर्स वगैरह सब जा चुके थे और सिर्फ़ दो गार्ड अंदर बैठे हुये थे।
भारत- गार्ड साहब यहाँ क्या हुआ था? सत्यप्रकाश जी कहाँ हैं?
गार्ड 1- यहाँ बहुत बड़ा धमाका हुआ था। सत्यप्रकाश जी का कुछ पता नहीं चला है। हमने मलबा हटा कर सब जगह देख लिया परंतु कहीं भी उनकी बॉडी नहीं मिली।
भारत- क्या मैं अंदर देख सकता हूँ?
गार्ड 1- नहीं नहीं! क्राइम सीन के अंदर किसी का भी जाना मना है।
गार्ड 2- अरे चुप कर। यह भारत जी हैं। सत्यप्रकाश जी के अंडर काम करते हैं और पुलिस की बहुत मदद की है इन्होंने पहले। (भारत की ओर देखते हुये) आप जाइये भारत जी।
भारत और ज्योति पट्टियाँ उठा कर मलबे की ओर गये। इधर-उधर बहुत ढूँढने पर भी उन्हें कुछ नहीं मिला। तभी भारत की नज़र मलबे से कुछ दूरी पर लॉन में बने कुत्ता-घर पर गयी। वह ज्योति के साथ उधर गया। कुत्ता-घर में कोई कुत्ता नहीं था। वहाँ कुछ कागज़ात रखे हुये थे। भारत ने नीचे ध्यान दिया तो एक फर्श पर कालीन बिछा हुआ था। कुत्ते घर मे कुत्ते के न होने, कुछ कागज़ात होने और कालीन के बिछे होने ने तुरंत ही उसे सब कुछ साफ कर दिया। उसने कालीन उठाया तो अंदर एक तहख़ाने का रास्ता नज़र आया। वह मुस्कुरा दिया और ज्योति के साथ तहख़ाने में चला गया। अंदर सत्यप्रकाश बैठा हुआ था। भारत जाते ही उनके गले लग गया।
भारत- भगवान का लाख लाख शुक्र है कि आप ठीक हैं। वरना मैं अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाता।
सत्यप्रकाश(हँसते हुये)- अरे भूल क्यों जाते हो मैं तुम्हारा गुरु हूँ। तुमसे चार कदम आगे ही रहूँगा। अब चलो आज केस की आखिरी सुनवाई है और हमारे पास पर्याप्त सबूत अभी भी नहीं हैं।
भारत- मेरे पास हैं सत्यप्रकाश जी। आप चिंता मत कीजिये। मेरे पास पर्याप्त सबूत भी हैं और एक मुख्य गवाह भी। आज जगदीश हेगड़े बच कर नहीं निकल पायेगा। उसके पापों की सज़ा उसे मिल कर रहेगी। आप ज्योति को लेकर अदालत पहुँचिये। मैं आपकी सुरक्षा का इंतेज़ाम करता हूँ।
सत्यप्रकाश- नहीं भारत उसकी जरूरत नहीं। हेगड़े या कोई भी अब ऐसी हरकत नहीं करेगा क्योंकि सबको लगता है कि मैं मर चुका हूँ या लापता हो चुका हूँ। तुम बस उन सबूतों और गवाहों को अदालत में लाने की तैयारी करो।
नई दिल्ली:
तीस हज़ारी कोर्ट परिसर:
आज तीस हज़ारी कोर्ट परिसर में बहुत कम भीड़ थी। सारी भीड़ बाहर थी। कुछ वकीलों और सपोर्ट स्टाफ के अलावा किसी को अंदर आने नहीं दिया जा रहा था। कोर्ट परिसर के बाहर मेले जैसी भीड़ थी। पूरी दिल्ली में कई सारी रैलियाँ निकल रही थी। कोर्ट के बाहर भी लोगों ने कई सारे बैनर, झंडे इत्यादि उठा रखे थे। सत्यप्रकाश के ऊपर हमले से हर कोई कुपित था।
“मुख्यमंत्री हाय हाय! मुख्यमंत्री इस्तीफा दो! हेगड़े मुर्दाबाद! जगदीश हेगड़े चोर है! गद्दार मंत्री को फाँसी दो!” इत्यादि नारे चारों तरफ़ लग रहे थे।
तभी मुख्यमंत्री जगदीश हेगड़े की गाड़ी वहाँ पहुँची। लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। बचते बचाते बॉडीगार्डों के साथ हेगड़े फास्टट्रैक कोर्ट के कमरे में पहुँचा। वहाँ पहुँचते ही उसे झटका लगा। अंदर पुलिस कमिश्नर, इंस्पेक्टर धनुष, हवलदार बाण और कुछ पुलिसवालों के साथ मौजूद थे वकील सत्यप्रकाश और ज्योति। बचाव पक्ष से वकील आदित्य शर्मा भी मौजूद था।
अंदर कमरे में एक बड़ी सी एलिप्टिकल टेबल के चारों तरफ़ कुर्सियाँ लगाई हुई थीं। अदालत जैसी बड़ी जगह की जगह इस कमरे को चुना गया था। सुरक्षा बहुत ज्यादा कड़ी थी। तभी जज दीपक बेसरा आये और सब अपनी अपनी कुर्सियों से उठ गये। उनके बैठते ही सारे लोग एक एक कर के बैठ गये।
जज दीपक बेसरा- ओहो! सत्यप्रकाश जी कैसे हैं आप? आपके घर में तो जोरदार धमाका हुआ था न?
वकील सत्यप्रकाश- जी मीलॉर्ड! हुआ तो था लेकिन मैं सही सलामत हूँ अभी तो।
जज दीपक बेसरा- बहुत बढ़िया। खैर अब कार्यवाही आगे बढ़ाई जाये।
वकील सत्यप्रकाश- मीलॉर्ड! जैसे कि आप सब लोगों को पता होगा कि कल मुझे मारने के लिये एक हमला हुआ था। मेरा पूरा घर धमाके से तबाह कर दिया गया था। हमलावर ने सोचा होगा कि मेरे साथ साथ सारे सबूत भी ख़त्म हो जायेंगे। मगर अफसोस कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वैसे तो मुझे पता है हमला किसने करवाया पर मैं बिना सबूत के इल्ज़ाम नहीं लगाऊँगा। वैसे भी आज सच-झूठ का फैसला हो ही जायेगा, किसी अन्य संगीन गुनाह के लिये।
आदित्य शर्मा- आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर। बिना किसी सबूत के मेरे मुवक्किल पर इल्ज़ाम लगा कर अदालत को गुमराह किया जा रहा है।
सत्यप्रकाश- पर मैंने तो आपके मुवक्किल का नाम लिया ही नहीं। मीलॉर्ड! मैं कठघरे में अपना एक गवाह पेश करना चाहता हूँ जो इस केस को शीशे की तरह साफ कर देगा।
जज दीपक बेसरा- इजाज़त है।
कमरे का दरवाजा खोल कर दो शख्शियत अंदर आये। एक भारत और एक हेगड़े की ही पार्टी के जाने माने मंत्री कुलभूषण। उसको देखते ही हेगड़े और आदित्य शर्मा के होश फ़ाख्ता हो गए।
आदित्य शर्मा- ऑब्जेक्शन मीलॉर्ड! इनका नाम तो गवाहों की सूची में है ही नहीं।
सत्यप्रकाश- वह इसलिये ताकि मेरी तरह इनपर भी हमला न किया जाये। मीलॉर्ड! मैं दरख्वास्त करूँगा कि इनके बयान को यहाँ पर रखने की इजाज़त दी जाये। यह इस केस के सबसे महत्वपूर्ण गवाह हैं।
जज दीपक बेसरा- इज़ाज़त है। कुलभूषण जी हमें आपकी भतीजी की अकस्मात मृत्यु के लिये बहुत दुःख है और पूरे परिवार से सहानुभूति है। उसकी ऐसी मृत्यु बिल्कुल भी न्यायतः नहीं थी। यहाँ कटघरा तो नहीं है खड़े होने के लिये, तो आप वहीं कुर्सी के बगल में खड़े होकर भी गवाही दे सकते हैं।
मंत्री कुलभूषण- धन्यवाद जज साहब। जैसा कि आप देख सकते हैं कि वकील सत्यप्रकाश जी पर भी बिल्कुल वैसा ही हमला हुआ है जैसे हमले से मेरी भतीजी मानसी की जान गई थी। इन दोनों हमलों में RDX का प्रयोग हुआ था। वही RDX जिसको एक बार एक्स नामक आतंकवादी ने पूरी दिल्ली की मौत के लिये उपयोग करना चाहा था। वही एक्स जो तिरंगा से हुये मुठभेड़ में यमुना में बह गया था। वह एक बार फिर सक्रिय है और कल की रात ही तिरंगा के साथ वापस मुठभेड़ हुई जिसमें वह बचकर निकलने में फिर से सफ़ल हो गया।
आदित्य शर्मा- ये कैसी कैसी दलीलें पेश कर रहे हैं लोग? पहले हवलदार रामनाथ देशपाण्डे के बारे में कहानी कि वही मशीनी हाथों वाला हवलदार है। फिर अब एक्स की कहानी। अरे बच कर निकल गया तो पुलिस और तिरंगा पकड़े ना उसको। इस केस से क्या लेना देना है?
कुलभूषण- लेना देना है वकील साहब। हवलदार रामनाथ देशपाण्डे का भी और एक्स का भी। मानसी की मौत के बाद हम सब सदमे में थे। कुछ रातों के बाद मुझसे मिलने तिरंगा आया। उसने कहा कि उसने पता लगा लिया है कि इसके पीछे किसका किसका हाथ है पर कुछ सबूतों के लिये उसे मेरी ज़रूरत है। मैं उसी दिन से हेगड़े जी पर नज़र रखने लगा। क्या कर रहे हैं, किससे मिल रहे हैं इत्यादि। उधर तिरंगा ने चोरी छिपे इनके बंगले, फार्महाउस इत्यादि में माइक्रो कैमरे लगा दिये जो किसी को आसानी से ना दिखें। उससे एक ऐसी बात पता चली जो किसी का भी दिमाग उड़ाने के लिये काफ़ी थी। (भारत की तरफ़ देखते हुये) भारत!
भारत- जी कुलभूषण जी! मीलॉर्ड! क्या आगे का केस मैं लड़ सकता हूँ?
जज दीपक बेसरा- हाँ बिल्कुल। अदालत से बाहर यह फास्टट्रैक अदालत लगाने का मतलब ही यही था कि रेड टेपिज्म कम हो और चीज़ें साफ हों।
सत्यप्रकाश ने भारत के कन्धे पर गर्व से हाथ रखा। भारत ने अपना बैग खोला जिसमें एक प्लास्टिक बैग में कुछ पेनड्राइव थे और कुछ कागज़ात।
भारत- मीलॉर्ड! इसमें वह रिकार्ड्स हैं जो तिरंगा ने मुख्यमंत्री जी के फार्महाउस से बरामद किये हैं। इसमें एक आश्चर्यजनक बात दिखाई पड़ रही है। हेगड़े जी दो लोगों से मिल रहे हैं। एक का नाम एक्स-रे है और एक का नाम है एक्स।
आदित्य शर्मा- ऑब्जेक्शन मीलॉर्ड! यह क्या नाटक है। एक्स एक मोस्ट वांटेड आतंकवादी है। उसका चेहरा सबको पता है। यह एक्स कहाँ है?
जज दीपक बेसरा- ऑब्जेक्शन ओवर रूल्ड। (अपने सपोर्ट स्टाफ को वो पेनड्राइव देते हुये) इसकी सत्यता की पुष्टि करो कि डॉक्टर्ड तो नहीं है? भारत! आप आगे बोलिये।
भारत- थैंक यू मीलॉर्ड। यह आतंकवादी एक्स ही है, जिसने अपना चेहरा एक लड़के अभय देशपाण्डे से बदल लिया था। वह अभय देशपाण्डे हवलदार रामनाथ देशपाण्डे का ही बेटा था। आप वीडियो में आगे की बातें सुनिये।
लगभग 30 मिनट बाद उन पेनड्राइव्स को लाया गया। उनमें मौजूद वीडिओज़ की सत्यता की पुष्टि हो चुकी थी। और चूंकि वह तिरंगा ने दिया था, एक ब्रह्मांड रक्षक ने, तो ज्यादा रेड टेपिज़्म ना कर के सीधा पहला वीडियो चलाया गया।
हेगड़े- एक्स-रे! यह लड़का कौन है? यह तो मुझे अभय लग रहा है जिस पर मुझे एक बार तिरंगा होने का शक हुआ था।
कर्नल एक्स-रे- खा गये ना धोखा? यह एक्स है जिसने उसी लड़के अभय का चेहरा लगाया है और तुम्हारा शक बिल्कुल सही था। वह लड़का अभय देशपाण्डे ही तिरंगा है।
हेगड़े- पर अभय के तो मरने की खबरें आयी थी और तिरंगा अभी भी ज़िन्दा है और अब अभय का चेहरा एक्स के ऊपर। यह क्या माज़रा है?
कर्नल एक्स-रे- यह एक लंबी कहानी है। बस इतना समझ लो कि एक्स और अभय के चेहरे आपस में बदल गए थे क्योंकि एक्स का चेहरा एक मोस्ट वांटेड आतंकवादी का चेहरा है इसलिये अभय ने दोबारा चेहरा बदल लिया और खुद के मरने की खबरें प्रचारित करवा दी।
वीडियो के बीच में मंत्री कुलभूषण ने टोकते हुये कहा- “मीलॉर्ड इस घटना का गवाह मैं ख़ुद हूँ। यहाँ तक कि एक्स का चेहरा लगाए अभय को अरेस्ट भी मैंने ही करवाया था। तब मुझे नहीं पता था कि वह अभय नहीं एक्स है।”
इसी बीच अदालत में एक ओर खड़ा कमिश्नर भी बोल पड़ा
कमिश्नर- मीलॉर्ड! अगर आपकी इज़ाज़त हो तो मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ।
जज दीपक बेसरा: हाँ कमिश्नर साहब! बिल्कुल कहिये।
कमिश्नर: जज साहब! मैं हैरान हूँ। किसी के अंदर इतनी ज्यादा वतनपरस्ती कैसे हो सकती है! पहली बार एक्स और अभय के चेहरे आपस में मेरी देखरेख में डॉक्टर रे ने बदले थे। तब तिरंगा ने कहा था कि वह एक देशभक्त लड़के को भेजेगा जो एक्स से अपना चेहरा बदलने को तैयार था। मुझे आज पता चल रहा है कि तिरंगा खुद ही अपने असली रूप में आ गया था। उसकी देशभक्ति इस देश के लिये मिसाल है जज साहब।
यह वाकया सभी के लिये चौंकाने वाला था। जज दीपक बेसरा वीडियो को आगे चलाने का इशारा करते हैं।
कर्नल एक्स-रे- अब कुछ ऐसी बातें बताऊँगा जो तुम्हारे होश उड़ा देगी। एक्स और अभय को मैंने ही ट्रेन किया है। एक्स मेरे सबसे पहले ग्रुप का सबसे ट्रेंड लड़ाका था। सैंकड़ो लोगों को इसने मौत के घाट उतारा था। फिर इसने खुद का एक संगठन बना लिया था। RDX संगठन। अभय को कुछ सालों बाद हमने ट्रेनिंग के लिये उठाया था, उसका जज़्बा देखकर। कुछ महीनों में उसे हमारी असलियत पता चल गई थी कि देश के दुश्मनों को मारने की आड़ में हम अपनी ही रोटी सेंक रहे हैं। उसने तुरंत ही एक्स-स्क्वाड छोड़ दिया और हमने उसकी एक्स-स्क्वाड से संबंधित सारी मेमोरी वाश कर दी। उसे पता तक नहीं था कि उसे कभी इतनी कठिन ट्रेनिंग भी दी गयी थी। अब एक बात याद करो CNN, पहली बार तिरंगा को कब देखा गया था।
वीडियो को वहाँ रोक दिया था कुलभुषण ने। “CNN! CNN!” सबलोग सकते में आ गये थे। मुख्यमंत्री जगदीश हेगड़े ही CNN है। हेगड़े वहाँ से भागने लगा पर भारत का एक ही घूँसा खा कर वह वहाँ गिर पड़ा। वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उसे हिरासत में ले लिया। इस घटना से आदित्य शर्मा ने माथे पर हाथ रख लिया था। उसके करने को कुछ बचा नहीं था। उसने अपना सामान उठाया और जज दीपक बेसरा से आदेश लेकर अदालत से निकल गया।
भारत- मीलॉर्ड! यह हेगड़े सिर्फ़ मामूली खूनी नहीं है, बल्कि हज़ारों मासूमों की ज़िन्दगियों के बर्बाद होने का जिम्मेदार है। CNN ही पूरी दिल्ली का अपराध कंट्रोल करता है। जिस बात के लिये असल में इसके ख़िलाफ़ क्रिमिनल रीट की गई थी उसे जानने के लिये आपको आगे की वीडियो देखनी पड़ेगी।
वीडियो को आगे चलाया गया।
हेगड़े- तिरंगा पहली बार वही कुछ साल पहले दिखा था। पूरी तरह तो याद नहीं।
कर्नल एक्स-रे- भारतनगर दंगा याद है, जो तुम्हारे इशारे पर करवाया गया था? हवलदार रामनाथ देशपाण्डे और उसका परिवार याद है? अभी तो हवलदार उस मंत्री को मार कर ही अपना बदला पूरा हुआ समझ रहा है, पर यह किसी को नहीं पता कि वह सब मोहरे थे। जिस अभय से एक्स का चेहरा बदला गया था उसका पूरा नाम जानते हो?
हेगड़े- हाँ! अभय देशपाण्डे नाम था उसका। ओह माई गॉड! ओह माई गॉड! यह अभय हवलदार रामनाथ का बेटा था, जो तिरंगा बना था? (हेगड़े के सिर से पसीना गिर रहा था)
एक्स- हाँ! अभय, तिरंगा, रामनाथ देशपाण्डे ऊर्फ़ हवलदार का बेटा, सब एक ही हैं। अब असली सवाल यह है कि अभय के चेहरे के ऊपर अभी किसका चेहरा है।
हेगड़े- मैं अपने नेटवर्क से पता लगाता हूँ।
एक्स- नहीं! मैंने इंतेज़ाम कर लिया है। मैंने अभय की पिछली ज़िन्दगी से जुड़े सभी तार पता कर लिये हैं। अभय के खुद के परिवार के ख़त्म होने पर उसको एक नया परिवार मिला था और मिली थी उसकी प्रेमिका मानसी। अब अभय का चेहरा भले ही बदल गया हो पर उसका लगाव तो अभी भी होगा इन सबसे। अब मानसी चारा बनेगी तिरंगा के असली चेहरे को जानने का। तिरंगा की आधी ज़िन्दगी तुमने बर्बाद की CNN और बाकी ज़िन्दगी मैं बर्बाद करूँगा।
भारत ने वीडियो रोक दिया। वह अंदर से रो रहा था पर सामने ज़ाहिर नहीं होने दे रहा था।
भारत(भर्राते हुये गले से)- मीलॉर्ड! वह एक्स ही था जिसने मानसी के साथ साथ कई मासूमों को एक झटके में ख़त्म कर दिया था। उसने पूरी बिल्डिंग ही RDX से उड़ा दी। यह पूरा खेल, पूरे देश के हर बड़े शहर में RDX का ख़तरा यह सब इन तीनों का किया कराया था। एक्स-रे की मौत कल रात में उसी के हेडक्वार्टर के बम धमाके से उड़ने से हुई। एक्स अभी भी खुला घूम रहा है और भारतनगर दंगे का असली गुनाहगार आपके सामने बेड़ियों में जकड़ा हुआ है।
इतनी बड़ी कहानी! इतना बड़ा षड्यंत्र! इतने सालों तक चलती हुई हर कहानी एक दूसरे से संबंधित थी। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि कोई क्या बोले। लगभग 5 मिनट के अंतराल के बाद जज दीपक बेसरा ने पहले पानी पिया फिर चुप्पी भंग की।
जज दीपक बेसरा- अभय देशपाण्डे। यह नाम मुझे पूरी ज़िंदगी याद रहेगा। तिरंगा एक सुपरहीरो है, उसका काम है गुंडों से लड़ना, अपराध के ख़िलाफ़ खड़ा होना, मज़लूमों की रक्षा करना, दुनिया बचाना, इत्यादि ऐसा हर आदमी सोचता है, पर कभी कोई यह नहीं सोचता कि उसके मास्क के पीछे के चेहरे की क्या असलियत है, उसकी खुद की ज़िंदगी क्या होगी? आज मैं उस नौजवान के जज़्बे और देशभक्ति के सामने नतमस्तक हूँ। वह जहाँ भी, जिस भी रूप में हो, भगवान उसकी रक्षा करें। मैं राज्यपाल से गुज़ारिश करूँगा कि मुख्यमंत्री जगदीश हेगड़े उर्फ़ CNN से सारी पावर और उत्तरदायित्व तुरंत छीन लें ताकि इसको सज़ा दी जा सके। मैं जगदीश हेगड़े ऊर्फ़ CNN को भारतनगर में दंगा भड़काने और एक्स और एक्स-रे के साथ मिलकर आतंकवादी घटना को अंजाम देने के ज़ुर्म में फाँसी की सज़ा सुनाता हूँ। टू बी हेंग्ड टिल डेथ। यह अदालत यहाँ बर्खास्त की जाती है। (जज दीपक बेसरा ने हस्ताक्षर कर के कलम तोड़ दिया।)
उनके अदालत से निकलते ही रिपोर्ट्स की भीड़ जमा हो गयी और फैसला सुनते ही वह तुरंत ही पूरे देश का सबसे सनसनीखेज समाचार बन गया। हर कोई इस फैसले से खुश था। हथकड़ियों में जकड़ा जगदीश हेगड़े अदालत परिसर से निकल रहा था। भारत, ज्योति और सत्यप्रकाश साथ में निकले। ज्योति भारत का हाथ ज़ोर से पकड़े हुये थी। भारत की आँखों में आँसू थे। आखिरकार उसके परिवार को और भारतनगर के कई मासूमों को इंसाफ़ मिल गया था। एन ओल्ड डेट वाज़ फाइनली सेटल्ड।
भारत का घर:
सत्यप्रकाश के बंगले के धमाके में उड़ने के बाद अभी कुछ दिन सत्यप्रकाश और ज्योति भारत के यहाँ ही रहने वाले थे। हवलदार, शिखा और शिखा की माँ भी वहाँ मौजूद थे। ज्योति ने शिखा की माँ को लद्दाख़ से बुला लिया था। आज सबके लिये खुशी का दिन था। सबने मिलकर केक मँगाया था।
हवलदार- बेटा! आज सालों बाद मैं इतना खुश हूँ। अपने परिवार को खोने के बाद जैसे मैं हँसना भूल गया था। आज इतने दिन बाद जैसे मेरा पूरा परिवार मिल गया हो या फिर उससे भी ज्यादा।
भारत- हाँ पापा। इस खुशी को पाने के लिये कितनी ही कुर्बानियाँ देनी पड़ीं। मम्मी, गुड़िया और अब मानसी। आपको भी खो ही दिया था मैंने। मुझे माफ़ कर दीजिये पापा, मैं पुलिस ऑफिसर नहीं बन पाया। आपने जो सोचा था वह नहीं हो पाया। इस समाज को मेरी ज़रूरत दूसरे रूप में थी।
हवलदार- अरे पगले! तू उससे बहुत बड़ा बन गया है। तू सच्चा रक्षक बन गया है। मुझे तब तुझ पर गर्व करने का मौका नहीं मिल पाया था। आज गर्व है तुझ पर। जो मैं तब नहीं कर पाया था, अब कर रहा हूँ।
भारत- क्या! क्या कहा आपने?
हवलदार- क्या कहा मैंने?
भारत- थैंक यू पापा। हमेशा की तरह आपने रास्ता दिखा दिया। जो मैं तब ख़त्म नहीं कर पाया था, वो अब ख़त्म होगा। यस! यही तो थी वह पहेली। थैंक यू सो मच पापा। मैं अभी निकल रहा हूँ, सुबह से पहले आ जाऊँगा।
हवलदार- अरे बता तो सही कहाँ जा रहा है।
भारत (तिरंगी पोशाक पहनते हुये)- बस पापा यह खुशी, यह उत्सव अधूरे हैं। एक आखिरी कर्ज़ बाकी है, वही चुकाने जा रहा हूँ।
ज्योति भागते हुये आयी- “ये भारत कहाँ गया अंकल?”
हवलदार- पता नहीं बेटी। अचानक से किसी बात पर खुश होकर थैंक यू बोला और तिरंगा के वेश में बाहर निकल गया। जाते जाते कह गया कि एक आखिरी कर्ज़ चुकाना बाकी है।
ज्योति- आखिरी कर्ज़? ओह गॉड! अंकल! मुझे भी निकलना होगा। भारत मौत से खेलने गया है।
ज्योति भी अपना बैग उठा कर तुरंत बाहर निकल गयी।
यमुना नदी:
सिग्नेचर ब्रिज:
पूरे इलाके में सिर्फ एक धड़धड़ाती मोटरसाइकिल की आवाज गूँज रही थी जिस पर बैठकर तिरंगा यमुना सिग्नेचर ब्रिज की ओर बढ़ रहा था। उसने अपनी मोटरसाइकिल यमुना ब्रिज के एक किनारे खड़ी की और ब्रिज के तले व ब्रिज का भार संभाले खंभों पर अपनी नजरें दौड़ाने लगा। लेकिन किसी भी खंभे पर कोई बम नहीं लगा था बल्कि वहाँ पर एक्स अपने शरीर पर RDX बाँधे मौजूद था। तिरंगा रस्सी पर झूलता पुल के नीचे खड़े एक्स के नजदीक उतर गया।
एक्स- बहुत देर कर दी आने में? कब से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ।
“हाँ बस दिल्ली में ट्रैफिक बहुत हो गया है। मोटरसाइकिल से आने में देर हो गई। अगली बार मेट्रो ले लूँगा।”, तिरंगा कन्धे उचकाते हुए बोला।
एक्स- तुझे लगता है कि अगली बारी भी आएगी?
तिरंगा- (चारों तरफ़ नज़रें दौड़ाते हुए) लगता तो नहीं है पर भविष्य किसने देखा है?
एक्स- तूने देखा है ना? जासूस है तू। हर कुछ पहले ही भाँप रखा है तूने।
तिरंगा- ना इतना भी भविष्य नहीं देखा मैंने। जैसे कि मुझे पता नहीं कि आज तू ज़िन्दा बचेगा या नहीं। अब बोल तू ख़ुद मरना पसंद करेगा या मैं तुझे पुलिस को सौंप दूँ?
एक्स: पुलिस से बचकर निकल जाऊँगा मैं। आज मर ही जाता हूँ पर तुझे मार कर। हिया$$$$$।
एक्स का पूरा शरीर RDX से लिपटा हुआ था, वह इसी अवस्था में तिरंगा के ऊपर कूद पड़ा लेकिन तिरंगा उसकी उम्मीद से ज़्यादा ही फुर्तीला था, वह फुर्ती से एक तरफ हट गया और एक्स की लात तिरंगा के शरीर के बजाय कठोर धरातल पर लगीं। इससे पहले की एक्स कोई और हरकत कर पाता, तिरंगा ने ढाल का जोरदार वार उसके मुँह पर किया जिसके कारण वह खून उगलने लगा।
एक्स- हाँह! तुझे एक्स-रे ने ही यह सारे गुर सिखाये?
तिरंगा- नाह! बहुत कुछ ख़ुद भी सीखा है।
एक्स- पर मुझसे ज्यादा तू नहीं सीखा होगा।
एक्स फिर से तिरंगा के करीब गया और लगातार घूँसों पर घूँसे बरसाने लगा लेकिन तिरंगा बला की फुर्ती के साथ उसका हर एक वार बचा गया जो देखकर एक्स को निराशा के साथ साथ आश्चर्य भी हुआ और वह असंतुलित होकर ज़मीन पर गिर गया।
एक्स- (हाँफते हुये) क्या हो गया है तुझे? एक भी वार लग क्यों नहीं रहा तुझे?
तिरंगा- तुझे घूँसा चलाना ही नहीं आता। चल फिर से कोशिश कर।
एक्स- नहीं! पहले तू मुझे उठा यहाँ से।
तिरंगा ने एक्स को उठाने के लिये जैसे ही हाथ बढ़ाया, एक्स ने दूसरे हाथ से तिरंगा की आँखों में धूल झोंक दिया। तिरंगा के लिए यह एकदम अप्रत्याशित हमला था, वह बुरी तरह तिलमिला गया। एक्स ने इस मौके का फायदा उठाया और फुर्ती से तिरंगा की ढाल उठाकर उसी पर लगातार पूरी ताकत से कई सारे वार कर दिए, अचानक हुए इन तेज़ हमलों से तिरंगा संभल नहीं पाया और उसका मस्तिष्क बुरी तरह झनझना गया, उसकी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा। एक्स उसे घसीटता हुआ पुल के ऊपर ले गया।
एक्स- देख तिरंगा! आज तू फिर से असफल हो गया मुझे पकड़ने में। अब मैं फटूँगा और मेरे साथ-साथ तू भी फटेगा और तबाह हो जायेगा यह पुल भी। मेरे बटन दबाने के एक मिनट बाद मेरे बदन पर लगा RDX इस पूरे पुल के परखच्चे उड़ा देगा।
मगर इससे पहले कि एक्स वह बटन दबा पाता, उसके ऊपर बला की तेजी से किसी ने उछलते हुये वार किया। यह वार इतना अप्रत्याशित था कि उसे संभलने का मौका नहीं मिला और उसके कुछ कर पाने से पहले ही पैने नाखूनों ने उसका मुँह नोचना शुरू कर दिया। तिरंगा के ढाल में लगे ट्रांसमीटर के सहारे वहाँ विषनखा ऊर्फ़ ज्योति आ चुकी थी।
विषनखा- तू इस चेहरे के क़ाबिल नहीं है एक्स। यह चेहरा देशभक्ति और बलिदानी की मिसाल है। यह चेहरा कभी किसी आतंकवादी के ऊपर लग ही नहीं सकता। बहुत ख़ून के आँसू रुलाये हैं तूने अभय को। अब तुझ पर मौत बन कर टूटेगी विषनखा।
एक्स का चेहरा बुरी तरह से ज़ख्मी हो गया था। उन अकस्मात वारों से थोड़ी देर के लिये एक्स अचंभित रह गया था पर वह तुरंत ही संभला। उसके चेहरे से खून टपक रहा था पर फ़िर भी वह विषनखा के अगले वारों को रोकने में कामयाब हो गया। ज्योति एक मामूली फाइटर थी और एक्स के सामने इतनी देर टिक जाना भी उसके लिये बहुत ज्यादा था। एक्स के कुछ घूँसे खा कर ही वह बेहोश हो गयी। अब एक्स ने RDX का बटन दबा दिया। टाइमर टिक-टोक टिक-टोक कर के आवाज़ कर रहा था लेकिन अब तिरंगा होश में आ चुका था। वह एक्स को लेकर पुल से नीचे कूद गया और हवा में ही झटका देकर एक्स को खुद से दूर कर दिया और ढाल को आड़े कर के पानी में गिर गया। छपाक की आवाज़ के साथ ही एक जोरदार धमाके की भी आवाज़ सुनाई पड़ी। एक्स का शरीर चीथड़ों में बदल चुका था। तिरंगा भी धमाके के झटके से दूर उछल गया था। वह संभलकर पानी से बाहर निकला। उसके लिये अब घटनास्थल पर कुछ करने को नहीं बचा था। वह बेहोश विषनखा को मोटरसाइकिल में बैठा कर खुद के पीछे बाँध कर अपने घर की तरफ़ जाने लगा। उसका मन शान्त था और यह शांति किसी और तूफ़ान की सूचक नहीं थी। यह शांति उसी बड़े तूफ़ान के बाद आई थी।
अगले दिन का अख़बार बड़ी बड़ी खबरों से भरा हुआ था। जगदीश हेगड़े ऊर्फ़ CNN को फाँसी की सज़ा सुनाये जाने के साथ साथ एक और बड़ी खबर थी जिसे पढ़कर हर देशवासी के रोंगटे खड़े हो गए थे, तिरंगा और एक्स के बीच घमासान युद्ध और एक्स का ख़ुद के बम से उड़ जाना। भारत चाय की चुस्कियाँ लेता हुआ उन खबरों को पढ़ रहा था तभी उसकी नज़र नीचे के पैनल पर पड़ी और उसने अपना सिर पीट लिया। किसी ने पुलिस स्टेशन में अँधेरा कर के लॉकअप में घुस कर CNN की ज़ुबान और दोनों हाथ काट दिये थे। भारत ने तुरंत अपने पिता रामनाथ की तरफ़ देखा तो उसने नज़रें फेर ली। भारत सब समझ चुका था पर अब उसके करने को कुछ नहीं बचा था।
उपसंहार-
2030:
नई दिल्ली:
शाम हो चुकी है। भारत और ज्योति सोफे पर बैठ कर चाय पी रहे हैं। सामने बड़ी सी TV स्क्रीन पर समाचार चल रहा है।
एंकर- नई दिल्ली फिर से प्रदूषण का शिकार हुई है। दिन, महीने, साल बीत गए हैं पर इसका इलाज नहीं हो पाया है। आज लोग प्राइवेट गाड़ियाँ कम उपयोग कर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट ज्यादा उपयोग कर रहे हैं पर स्थिति वही है। आखिर कब तक लोग यूँ ही घरों में बैठे रहेंगे? आखिर कब तक लोगों को मास्क पहन पहन कर काम करना पड़ेगा और यह अब सिर्फ़ दिल्ली में ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी बड़े शहरों में हो रहा है।
ज्योति- भारत! इस स्थिति का इलाज क्या है? सरकार कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाती?
भारत- इस स्थिति के लिये सिर्फ़ सरकार नहीं हम सब दोषी हैं ज्योति। ग्लोबल वार्मिंग अभी दुनिया के लिए सबसे बड़ी समस्या है। अगर अब भी हमलोग नहीं सुधरे तो दुनिया को कोई सुपर विलेन नहीं, बल्कि पृथ्वीवासी ही ख़त्म कर देंगे।
तभी उनकी प्यारी सी बेटी दौड़ती हुई आती है।
“पापा! पापा! कल संडे है। आपने कहा था कि इस संडे एम्यूजमेंट पार्क लेकर जायेंगे।”
भारत- हाँ मानसी। कल संडे है। पर बाहर देखो धुंध के कारण कुछ नज़र नहीं आ रहा है। 3-4 दिनों में यह ठीक हो जायेगा। फिर अगले संडे हमलोग एम्यूजमेंट पार्क भी जायेंगे और बाहर खाना भी खायेंगे। फिर हमारी नन्हीं सी गुड़िया के लिये खिलौने और कॉमिक्स भी खरीदेंगे।
मानसी- येssssss! येssssss!
तभी समाचार में कुछ और चलने लगता है।
एंकर- अभी अभी एक सनसनीखेज ख़बर आयी है। कुछ देर पहले ही DRDO के सस्पेंडेड असिस्टेंट डायरेक्टर की किसी ने बेरहमी से हत्या कर दी है। उनपर देश की सुरक्षा को लेकर कुछ सीक्रेट पेपर्स को बेचने का इल्ज़ाम था। हत्या के तरीके से लगता है कि यह कफ़न का काम है। उनके शरीर पर एक तीर पाया गया है जो उनके हृदय को छेद कर गया है। कफ़न ने आज से वर्षों पहले कसम खायी थी कि गद्दारों को मौत की सज़ा वह देगा, अदालत नहीं। लोग उसको हीरो समझ रहे हैं पर कानून की नज़र में वह भागा हुआ मुजरिम है। क्या तिरंगा फिर इस मुजरिम को सलाखों के पीछे डाल पायेगा?
भारत- (मुस्कुराते हुये) यह कभी नहीं सुधरेगा।
मानसी- कौन नहीं सुधरेगा पापा?
भारत- कोई नहीं बेटा। तुम्हारे पापा का पुराना दोस्त है एक। ज्योति! बैग लाना मेरा।
ज्योति: (हँसते हुये)- हाँ रात की कालिमा के साथ ही तिरंगा की ड्यूटी शुरू हो गई। जाओ जाओ। वैसे इस दाढ़ी-मूँछ वाले लूक में हैंडसम लग रहे हो और यह नई आधुनिक ढाल, नए गैजेट्स, क्या बात है तिरंगा जी? किसको इम्प्रेस करने जा रहे हैं?
भारत- हाहाहाहा! तुमको इम्प्रेस कर लिया इतना ही काफ़ी है। अब थोड़ा अपराधियों को अचंभित करना है।
मानसी- पापा अपने दोस्त को ज़रूर सुधार दीजियेगा।
भारत: हाँ बेटा! बिल्कुल।
भारत ने एक बार फिर तिरंगी पोशाक को धारण कर लिया था, उसके पीठ पर बँधी ढाल इस बात की गवाही दे रही थी कि वह भले ही नागराज जितना शक्तिशाली ना हो पर फिर भी देश की राजधानी के लिए वह उस अभेद्य दीवार की तरह रहेगा जिससे पार पाना किसी शत्रु के बस की बात नहीं। उसके हाथों में थमा न्यायदंड उसकी न्यायप्रियता का सूचक था, जब उसने सामने वाली इमारत पर नाइलो स्टील का तार बाँधकर छलाँग लगाई तो उसका तिरंगा लबादा हवा के साथ लहराने लगा, इसी लहराते लबादे को देखकर करोड़ों देशवासी चैन की नींद सोते थे। उन्हें पता था कि जिस तरह बॉर्डर पर सैनिक बाहरी आक्रमण से देश की रक्षा करते हैं, ठीक वैसे ही देश को भीतर से खोखला बनाने वाली दीमकों का नाश करने के लिए हमेशा…………..लहराता रहेगा तिरंगा।
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जबरदस्त स्टोरी है